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मुंबई - बदलाव है जरूरी..

8 जून 2021, मुंबई
लेखमालिका - मुंबई - बदलाव है जरूरी..
"ख़ामोश शहर की चीख़ती रातें
सब चुप हैं पर कहने को हजार बातें" 
पिछ्ली बार हमने मुंबई शहर (पढ़िए ) के बारे में जाना, पहचाना. यहा की आर्थिक व्यवस्था, प्रशासकीय यंत्रणा और राजनैतिक स्थिती को भी समझा. मुंबई शहर की खूबियां हज़ारों जरूर है, लेकिन यहां की समस्याए भी कम नहीं है. 
कुछ समस्याएं आर्थिक है - जैसे असमानता, तो कुछ सामाजिक और शैक्षणिक समस्याए, कुछ कानून व्यवस्था (अंडर वर्ल्ड, ड्रग्स, महिलाओं के विरुद्ध गुनाह) से जुड़े है, तो कुछ शहर की भौगोलिक परिस्थिति, रखरखाव और भविष्य की जरूरतें के संदर्भ में. हर के रखरखाव और भविष्य की जरूरतें के लिए एक बड़े हदतक बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) जिम्मेदार है, जो देश की सबसे अमीर पालिका भी है.

"टीप-टीप" बारिश शुरू हो गई.. 
क्या कहा? "Rain is Dropping" लिखना ज्यादा अच्छा होता? खैर. तो हर साल की तरह इस साल भी 7 जून को मॉन्सून ने मुंबई मे आगाज कर दिया. हालांकि कईयों को बारिश मे मुंबई सुहानी लगती है, लेकिन यहा के रास्ते और नालों की वज़ह से ये "सुहानापन" कभी भी परशानियों मे बदल सकता है. बारिश की वज़ह मुंबई के काफी रास्तो पर गड्ढे गिरते है, गणेशोत्सव आते आते, रस्तों मे गड्ढे या गड्ढे मे रस्ते ये स्थिति आ जाती है. नालों की स्थिति भी कम भयानक नहीं, BMC के तरफ से हर साल 100-110% नाले सफाई करवाने का दाखिला दिया जाता है, लेकिन हालात फिर वहीं.रास्तो का रखरखाव या नालों की सफाई साल में एक बार करने से अच्छा, समय समय पर क्यों नहीं होता ये सोचने वाली बात है.

प्रदूषण 
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 मे करीबन 25000 मृत्यु हवा में के प्रदूषण से हुए. दिल्ली के बाद देश में ये सबसे ज्यादा है. वायु प्रदूषण के मृत्युदर (दस लाख मे 1200) के मामले मे मुंबई दुनिया में पांचवे स्थान पर है.

कई दहन प्रक्रियाएं हवा में कणों के मामले में योगदान करती हैं, जैसे थर्मल पावर प्लांट, नगरपालिका का ठोस कचरे का खुले मे जलाना और लैंडफिल आग, कमर्शियल खाद्य क्षेत्र और सड़क परिवहन. प्रदूषण को कम करने के लिए, सरकार को प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों को संबोधित करने की आवश्यकता है जो साल भर प्रदूषण फैलाते रहते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई का इंडस्ट्रियल उत्सर्जन (एमीशन) 33% है. मुंबई मे ध्वनी प्रदूषण भी एक बहुत बड़ी समस्या है. नियमावली होने के बावजूद, ये कानून व्यवस्था का विषय बन जाता है. 

अंडरग्राउंड ड्रेनेज.. 
मुंबई का  मुख्य ड्रेनेज  ब्रिटिश कालीन है, जिसमें सीमेंट या चीनी मिट्टी के पाइप का इस्तेमाल किया गया था. अब नई टेक्नोलॉजी आ गई जिसमें HDPE प्लास्टिक (DWC) पाइप का ईस्तेमाल हो सकता है, जो 50-70 साल बेहिचक चलता है. ये पाइप सीमेंट पाइप से हल्का, तुरंत लगा सके ऐसा, और उसके टूटने या जंग लगने की कोई गुंजाईश नहीं होती. देश के कई बड़ी शहरों में इसका ईस्तेमाल किया गया है (खासकर अमृत योजना (सीवेज ड्रेनेज) में) इसलिए रखरखाव की कीमत बिल्कुल कम. बावजूद इसके, शहर मे आज भी ज्यादातर सीमेंट पाइप ही ईस्तेमाल हो रहा है. 
गौरतलब है कि बाहरी देशों में भी इसका ईस्तेमाल काफी हो रहा है. 

कब बनेगी टोक्यो जैसी व्यवस्था? 
मुंबई शहर कभी एक टापू हुआ करता था, जो बाद में मिलकर एक बड़ा सामायिक टुकड़ा बन गया. आज भी जब शहर मे एक दिन मे 40-50 एमएम से ज्यादा बारिश होती है तो कई जगह पानी भरने और बाढ़ के हालात निर्माण होते हैं. कहते हैं शहर की स्टॉर्मवाटर ड्रेनेज सिस्टम जो ब्रिटिशकालीन है, ज्यादा से ज्यादा 25-30 एमएम की बारिश के लिए बनी थी. 26 जुलै 2005 को एक ही दिन मे 900 एमएम बारिश हुई थी और शहर मे जलप्रलय जैसी हालात हो गई थी जिसमें कई मौतें हुईं थीं. हालांकि उसके ऐसी बारिश फिर हुई नहीं, लेकिन फिर भी साल मे दो तीन बार मुंबई पानी मे डूब जाती है. दो साल पहले इन सब से निजात देने के लिए मुंबई में जापान के टोकियो शहर में बनी अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम जैसी सिस्टम बनाने की बात चली थी. शायद अभी उसपर एकराय नहीं बन पाई है? 
खैर, मुंबई को शंघाई, सिंगापुर बनाने के सपने अभी तक जिंदा है. 

हौसिंग सोसायटी को सॉलिड वेस्ट मॅनेजमेंट और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग करना जरूरी किया जाता है, लेकिन नगर निगम ने कितने ऐसे बड़े प्रोजेक्ट पिछले पाच साल मे लगे? 

जोर "सुशोभीकरण" पर? 
चुनाव से पहले शहर को सुशोभित करने की हलचल दिख रही है. 
पिछ्ले हफ्ते दक्षिण मुंबई में, मेट्रो सिनेमा के पास, फ‍िट्झगेराल्‍ड दीप स्तंभ और फॉऊंटन जो पहली बार 1867 मे लगाया गया था, उसे मरम्मत कर फिर लगाया गया. 
अब पवई तालाब की साफ सफाई कर वहा जॉगिंग और साइकिलिंग ट्रैक बनाने की बात चल रही है. 
बता दे कि, लगभग 2018 से पवई तालाब में उगी वनस्पती (hyacinths) को निकालवाने के लिए कई नागरिक प्रयासरत थे. आज लगभग तीन सालों बाद 2021 मे इस वनस्पती ने जब लगभग आधा तालाब अपनी चपेट में लिया है, तब उसे साफ़ करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. कुछ सालो पहले वीडियोकॉन टीवी का विज्ञापन आया करता था, "बड़ा है तो बेहतर है" (संयोग से रॉयल स्टेग का भी विज्ञापन कुछ इसी तर्ज़ पर बना है, "मेक इट लार्ज" ).

आनेवाले दिनों में शहर में ऐसे अनेक कॉस्मेटिक बदलाव देखने को मिल सकते हैं. सेल्फ़ी पॉइंट्स वगैरह. ठीक है, शायद नई पीढ़ी को ये बदलाव अच्छा लगे भी, लेकिन ज्यादा जरूरत शहर का बुनियादी ढांचा ठीक करने की है. खैर, बात प्राथमिकता की है.

एक अनार सौ बीमार.. 
जैसा के पहले बताया था, मुंबई शहर में सभी राज्य, भाषा, धर्म और जाति के नागरिक बसे है (कुछ शायद बसाए भी गए हैं). शायद उस वज़ह से (या राजनैतिक) इन राज्यों (चाहे वो जम्मू और कश्मीर हो या पश्चिम बंगाल या असम, बिहार हो या उत्तर प्रदेश, गुजरात हो या केरल या हैदराबाद) के सभी भाषा और धर्म के लोगों की मुंबई दिलचस्पी बनी रहती है जो कि दिन-ब-दिन बाकायदा बढ़ रही है , भले ही ये लोग मुंबई में ना रहते हो लेकिन फिर भी. चुनावो के वक़्त कुछ गुटों को इन्हीं प्रकार के लोगों से आर्थिक, संगठन और राजनैतिक रसद मिलती है. सोचने की जरूरत है.

गरिमा वाला पद है महापौर का पद.
BMC के महापौर पद की गरिमा विशेष है. इस पद पर काफी नामी गिरामी हस्तिया, शिवसेना और कॉंग्रेस के नेता विराजमान हुए हैं, जैसे डॉ. रमेश प्रभुु, सुधीर जोशी, प्रि.मनोहर जोशी, मुरली देवरा, और दिवाकर रावते.

देश की आर्थिक राजधानी होने के वज़ह से बाहरी देशों में और खासकर इंटरनॅशनल मीडिया मे शहर की प्रतिमा अच्छी रखना जरूरी है. कई बार बाहरी देश की सरकारे और बड़ी कंपनियां शहर के इन्फ्रास्ट्रक्चर मे निवेश करना चाहते हैं, उसके लिए नगर निगम के साथ समझौते करते है. जैसे 2014 मे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उपस्थिति में BMC के तत्कालीन महापौर श्रीमती स्नेहल आंबेकर ने शंघाई के मेयर के साथ करार पर हस्ताक्षर किए थे. सिंगापुर, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे अनेक देशों की बड़ी कंपनियां अक्सर BMC के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में निवेश करती है. इसलिए यह पद जितना मुंबई, महाराष्ट्र और देश में महत्वपूर्ण है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी अहमियत है. ये आप सोचिए की इस पद के लिए वर्तमान में और आनेवाले समय के लिए कौन ज्यादा पात्र है.

PR की चकाचौंध या काम का नाम?
आजकल PR एजंसी को साथ लेकर मनचाहे तरीके अपनी प्रसिद्धि (PR) की जा सकती है. PR एजंसी एक ऐसी इकोसिस्टम बनाती है जिसमें फिल्मी दुनिया के हस्तियां, उद्योजक, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी और अन्य क्षेत्रो से संबंधित दिग्गज लोग होते हैं. काम साधा और सरल होता है - ये इको सिस्टम तय समयसीमा मे, उन्हें दिए गए टूलकीट मे बताए गए तरीके से सोशल मीडिया पर आपकी तारीफ करेगी, या फिर आपके विरोधको से सवाल करेगी, या उनकी निंदा करेगी. याद कीजिए आज तक कितने सेलेब्रिटी मुंबई के खराब रास्तो के गड्ढों मे गिरे है, या उनकी पुरानी बिल्डिंग गिर गई या फिर उनके घर के सामने कचरे का अंबार लगा है? हाँ, एक सेलेब्रिटी का घर जेसिबी से तोड़ने की व्यथा जरूर देखी है.ये देखने वाली बात होगी कि जीत PR दिलाएगा या फिर काम. PR सोशल मीडिया पर माहौल बनाने में मदद जरूर करता है, लेकिन उसकी कीमत होती है जो जनता के पैसे से चुकाई जाती है.

कोरोना से उजागर हुआ खोखलापन.. 
देश की आर्थिक राजधानी में पिछ्ले 15 महीनों से कोरोना महामारी ने हाहाकार मचाया. हज़ारों परिवार उध्वस्त हुए. हजारो अभी भी डर के साये मे जी रहे हैं. शहर का मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से जुझ रहा है. कई खामियाँ नजर आई है. माना के महामारी सौ साल मे पहली बार आई है, लेकिन पिछले साल के अंत में वक़्त मिला था शहर के मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर को संवारने का. ख़बरों के अनुसार कई जंबो सेंटर मे ज्यादातर साधनसामग्री भाड़े पर ली गई है. कई डॉक्टरो को तय समय पर सैलरी ना मिलने की भी ख़बरें आई है. साथ ही मे, नगरसेवक द्वारा डॉक्टर के साथ दुर्व्यवहार होने की ख़बरें भी झलकी थी. कोरोना विषाणू कब और कैसे रंग बदलेगा, और ये कब तक सक्रिय रहेगा ये कोई नहीं जानता.

हाँ, वैक्सीनेशन एक मात्र उपाय दिखता है. लेकिन मुंबई में इस कार्यक्रम मे भी काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं. एक तरफ BMC सेंटर में वैक्सीन की कमी दिखाई दी, लेकिन दूसरी तरफ शहर के कुछ फाइवस्टार होटलों के वैक्सीनेशन पैकेज चर्चे मे थे. खैर, प्राथमिकता है.

बदलती डेमोग्राफी..
मुंबई शहर में कुछ विधानसभा क्षेत्र है जंहा पर पिछ्ले कुछ सालो मे डेमोग्राफी एक तरीके से बदल रही है, या बदलाई गई है. मालाड मालवणी मे पिछले कुछ महीनों मे धक्कादायक चीजे सामने आयी है. हालांकि मुंबई मे यह पहला उदाहरण नहीं है. भारत का संविधान किसी भी धर्म या संप्रदाय या भाषा या प्रांत के लोग को किसी एक विभाग मे स्थायिक होने पर रोक नहीं लगाता, लेकिन जोर जबरदस्ती या डर दिखा के लोगों को घर बेचने या छोड़ने के लिए मजबूर करना ये बात कितनी कानूनी है? ये साधारण लैंडग्रबिंग या अतिक्रमण का मुद्दा नहीं है, उसके परे है. इस तरह की घटनाएँ होती रहती है, और स्थानिक नगरसेवक या विधायक उन्हें अनदेखा करता है? गौरतलब है कि नए सिरे से बसने वाले लोग ज्यादातर काग़ज़ों के लिए नगरसेवक या विधायक के पास ही जाते हैं. समझना जरूरी है कि, मुंबई के एक विधानसभा क्षेत्र मे औसतन छह (6) वॉर्ड आते हैं (कहीं 9 भी है).

राह तक रहे हैं धारावी और बीडीडी..
कई दशकों से धारावी की झुग्गियों का, और वरली बीडीडी चाल के पुनर्वसन (redevelopment) अभी भी बस चर्चों मे ही है. वहां हालात जस के तस है, बल्कि बिगड रहे हैं.

भ्रष्टाचार का भस्मासुर.
शहर के रखरखाव के लिए ज्यादातर कॉन्ट्रैक्टर सिस्टम चलती है. पूर्ण रूप से नया बनाने से ज्यादा रिपेर और रेंटल को बढावा दिया जाता है. कॉन्ट्रैक्ट मे भाई भतीजावाद के कुछ मामले सामने तो लाएं गए लेकिन अभी तक उनका लॉजिकल अंत नहीं हुआ है. क्या नई पीढ़ी इसमे लिप्त होगी, या इसे न्यू नॉर्मल कह के नजरअंदाज करेगी?

रोड कम पार्किंग ज्यादा.
कहते है सोसायटी मे पार्किंग का मिलना गाड़ी की कीमत से महँगा होता जा रहा है. इस वजह से बहुतांश रास्तो पर पार्किंग देखने को मिलती है.

बेस्ट का हो रहा है "टेम्पो"करण? .
बेस्ट बसे लाखो मुंबईकर को दिनरात सेवा देती है. बेस्ट मे एक ज़माने मे अपनी 3200 बड़ी बसे थी. समय सीमा हो जाने के वज़ह से यह आकड़ा धीरे धीरे कम होने लगा. कुछ महीनों पहले बेस्ट ने 50 सीटोंवाली बड़ी बसों के जगह 21 सीटोंवाली फोर्स मोटर्स (ब्रँड "टेम्पो" था) की 1200 "ट्रैैैवेलर" मिडी बसे प्राइवेट कॉंट्रॅक्टर्स से "वेट-लीज" (मतलब बेस्ट, प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर को एक तय रेट से पैसा देगी, बस का रखरखाव सब बेस्ट के देखरेख में होगा) पर ली गई. अनुमान है कि बेस्ट की अब अपनी तकरीबन 2000 बसे ही बची है. बसों का आकड़ा तो 3200 है, लेकिन समिति के सदस्यों की माने तो बेस्ट की, मैनपावर लगभग उतनी ही है लेकिन पॅसेंजर क्षमता 50% से कम हो गई है. इसका सीधा असर बेस्ट की माली हालत पर हो रहा है. पहले डबलडेकर बसे कम हुई, क्या अब बड़ी बसों की बारी? समझना जरूरी है बेस्ट के लिए BMC का 
असली "रूट प्लान" क्या है.

सपने है हसीन.. 
एक नगरसेवक का विधायक या सांसद बनना अब नया नहीं रहा. एक पद पर काम करते करते दूसरा बड़ा पद अगर किसीको दिखाई देता है तो किसे दोष दोगे? बड़े सपने देखते-देखते, ये लोग अगर चुने हुए पद के जिम्मेदारी निभाने के लिए कम वक़्त, और खुद (और परिवार) के इमेज बिल्डिंग में ज्यादा वक़्त (और शायद पैसा?) खर्चा करते हैं तो उसमे चौंकने की जरूरत नहीं. आखिर सपने संजोने का हक सभी को है. हाँ, पार्टी को ध्यान रखना चाहिए कि उनके चुने हुए नगरसेवक क्या कर रहे हैं, बशर्ते उनके नगरसेवक या विधायक उन्हें ही "नॉट रिचेबल"ना हो जाए (ये होता है)! कई बार लॉन-टेनिस मे टीम का कप्तान नॉन-प्लैइंग होता है, शायद पार्टियों को विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी संगठन के ऐसे लोगों को देना चाहिए जो चुने नहीं गए हैं. शायद काम कर जाए.

बदलाव है जरूरी..
अब तक आप समझ गए होंगे कि मुंबई शहर में बदलाव की कितनी जरूरत है! शहर को भी साँस लेना है, जिसके लिए एक तरफ नए इंफ्रास्ट्रक्चर की सख्त जरूरत है, लेकिन साथ ही मे शहर मे बेतहाशा बढ़ रहे निर्माण पर नए सिरे से सोचना, और गैरकानूनी अतिक्रमण पर अंकुश लगाना जरूरी है. ऊपर दिए गए मुद्दे सभी वॉर्ड मे मौजूद  ज्यदा हैं कम.

जिम्मेदारियाँ सभी की है..
इसके लिए शहर मे बदलाव लाना जरूरी है. अगर आपको लगता है कि यह बदलाव एक विशिष्ट पार्टी ला सकती है तो आप उसके उम्मीदवार को वोट कीजिए. शहर को पटरी पर लाने और रखने की जिम्मेदारी जितनी प्रशासन और राजनैतिक दालों की है, उतनी ही जिम्मेदारी नागरिको की भी है. नागरिको ने सचेत रह कर, अपने विभाग के लोकप्रतिनिधीयों के साथ मिलकर अपना योगदान देना चाहिए. अगर वे कुछ गलत कर रहे हैं तो उसे उजागर करना चाहिए. सबसे अहम बात, जब भी महानगरपालिका के चुनाव होते है तब खुद और अपने परिवार के सभी सदस्योंद्वारा मतदान की जिम्मेदारी निभानी होगी. ये सबसे अहम है! जैसे लोग आप चुनेंगे, वैसा ही उनका काम होगा. अपना वोट किसी वोट बैंक (धर्म, भाषा, प्रांत) का हिस्सा ना बने इसका खयाल रखे. भाषिक या प्रांतिक या धार्मिक अस्मिता के भूलभुलैया मे ना खोए. नागरिको की अस्मिता किसी गुट की को गिरवी नहीं रहती.याद रहे, वोट ना करनेवालों की भी एक वोटबैंक होती है, "पप्पू बैंक", आप इसके भी सदस्य ना बने. वोट कीजिए, जिम्मेदारी बने, जिम्मेदार लोकप्रतिनिधी बनाएँ.

चलते चलते..
मुंबई शहर किसी एक परिवार, गुट या राजनैतिक दल की जागीर नहीं है, ना ही उसे बनने देना चाहिए. हाँ, ये बात सच है के करीबन तीन दशकों पहले शहर मे गदर मचा था, और इस शहर में ध्रुवीकरण हुआ था - राजनैतिक, साम्प्रदायिक और सामाजिक भी. लेकिन अब वो  शायद धुँधला पडते दिखाई दे रहा है, लेकिन इसके लिए सामान्य जनता जिम्मेदार नहीं है. साथ ही मे, बीच के समय मे दो नई पीढ़ियां आई है, उनका नजरिया अलग है, काम करने का तरीका अलग है, विचारधारा का महत्व शायद कम होता जा रहा है, उनकी प्राथमिकताए अलग है. जाहिर है इसका असर राजनीति, और राजनीति करने के अंदाज पर भी होगा.

फ़िलहाल इतना तय है कि मुंबई शहर को बुनियादी बदलाव की बेहद जरूरत है, जिनमे से ज्यादातर बदलाव BMC द्वारा ही हो सकते हैं - इसमे प्रशासकीय अधिकारी और सभी राजनैतिक दल या गुट शामिल होंगे (सत्ताधारी की अहम भूमिका और विरोधी पक्ष की सामायिक भूमिका).

आनेवाली पीढ़ियों को अगर अच्छी जिंदगी देना है तो मुंबई शहर में जीवन स्तर (क्वालिटी ऑफ लाइफ) मे सुधार की आवश्यकता है. शुरुआत कुछ हदतक हुई, लेकिन वो टिकने वाली होनी चाहिए. कॉस्मेटिक बदलाव काम मे नही आनेवाला, ठोस बुनियादी सुविधाओं की जरूरत है. प्रदूषण नियंत्रित होना चाहिए. शहर का हॅप्पीनेस इंडेक्स (खुशहाल रहने) अगर बढ़ाना है तो शहर के ढांचे मे बदलाव लाने ही होंगे, और उसके लिए जबरदस्त इच्छाशक्ति का होना जरूरी होंगा. 

बदलाव क्या हो, इसकी कल्पक सोच, उसे जमीन पर साकारने की क्षमता, और यह करते हुए पारदर्शिता और भ्रष्टाचार या भाईभतीजा वाद ना होने देने की कटिबद्धता - ये सब करने का माद्दा जो व्यक्ति, गुट या दल रख सकता है, उसे जनताने बेहिचक साथ देना चाहिए. शायद उसके लिए कईयों को दशकों पुराना रिवाज या भावनिक रिश्ता तोड़ना पड़ेगा.

शायद इस बदलाव की प्रक्रिया में संघर्ष कडा हो सकता है - राजकीय और गैर राजकीय भी. डराने धमकाने के प्रकार भी हो सकते हैं. सबको ईन सबसे ऊपर उठना होगा, अपनी राह पर अडिग रहना होगा, हौंसले बुलंद रखने होंगे, ठीक वैसे, जैसे किसी ने कहा है - 
"निकल पड़े है हम औरो की ज़मीन को बागीचा बनाने.
क्योंकि बंजर ज़मीन का हाल तो हमने ख़ुद देखा है!". 

ये मुंबई शहर है साहब, इसकी चाबी हथियाना इतना आसान भी नहीं है. कोरोना से ना डरे, मास्क नीचे ना करे स्वस्थ रहे, खुश रहें. 

कालाय तस्मै नमः. 
- धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है.)

Comments

  1. सहि है बदलाव जरूरी है

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  2. जब तक भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा । अधिकारी अपने कार्यों के प्रति दक्ष नहीं होंगे ये दुर्दसा बनी रहेगी । और ये स्थिति बदलने के लिए बदलाव ज़रूरी है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी. 🙏. शहर को बुनियादी बदलाव की जरूरत है, अब ये बदलाव जो कर सकता है इसका भरोसा उसे जनता को दिलवाना होगा, चाहे वो किसी भी पक्ष से हो.

      Delete

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