25 मे 20, मुंबई बदलना है जरूरी. कई सालो पहले विज्ञापन या फिल्म मे एक दृश्य देखा था. एक गाव से शहर जाकर पढ़-लिखकर एक लड़की नौकरी करने एक दूसरे गाव आती है. मुखिया को बच्चों के स्कूल के बारे मे पूछती है, तो जवाब मिलता हैं कि उस गाव मे स्कूल नहीं है, और गाव के लोग उनके छोटे बच्चों को शहर की स्कूल मे भेजना नहीं चाहते. तब वह लडकी कहती है, कि अगर हमारे बच्चे शहर के स्कूल मे नही जा सकते तो ना सही, स्कूल तो गाव मे आ सकता है. गाववालो की मदद से वो फिर एक छोटी स्कूल बनवाती है. बात डिलीवरी की है. बात है बदलाव की! मतितार्थ ये है कि, अगर कोई चीज़ दूर हो तो भी उसे पाने का तोड़ हम निकाल सकते हैं. अमूमन निकालते ही है. नॉवेल कोरोना वायरस (कोवीड़-19) वैश्विक महामारी से दुनिया मे सभी जगह हाहाकार मचा है. पहले शायद यह अनुमान था कि शायद दो - चार महीनों में इसका असर कम हो जायेगा. ठीक वैसे ही जैसे सार्स, मर्स या एबोला का हुआ था. लेकिन लगता नहीं है कि कोवीड़-19 का प्रभाव इतने जल्दी कम होंगा. इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए हमे हर उस कड़ी को तोड़ना होंगा जो ...
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