Skip to main content

ये रिश्ता क्या कहलाता है...

7 अगस्त 20, मुंबई 
अनोखी रिश्तेदारिया...
1990 मे बनी सुपरहिट हिन्दी फिल्म अग्निपथ मे विजय दिनानाथ चौहान (अमिताभ बच्चन) और इंस्पेक्टर गायतोंडे (विक्रम गोखले) के बीच एक संवाद है, जो हमारी आसपास की परिस्थिति का (खासकर मुंबई का) बड़ी बखुबी से वर्णन करता है.

 "कहने को तो यह शहर है, लेकिन आज भी यहा जंगल का कानून चलता है. यहा हर ताकतवर अपने से कमजोर को मारकर जीता है. चीटि को बिस्तूईया (छिपकली) खा जाती है, और बिस्तूईया को मेंढक. मेंढक को साप निगल लेता है. नेवला साप को फाड़ देता है. भेड़िया नेवले का खून चूस लेता है और शेर भेड़िये को चबा जाता है."

कहने को तो यह फिल्म का एक डायलॉग है, जंगल की परिस्थिति (ecosystem) को सही तरीके वर्णित भी करता है, लेकिन इसमे हमारे जीवन के लिए काफी बड़ी सीख है. खैर.

जंगल मे भी होती है रिश्तेदारीया.. 
एक ओर हम देखते है हर छोटे जानवर को बड़ा, ताकतवर जानवर खा जाता है. लेकिन यह जंगल का संपूर्ण चित्र नहीं दिखाता है. यहा छोटे - बड़े, कम ताकतवर - काफी ताक़तवर, जानवरों के बीच कुछ अद्भुत रिश्तेदारिया भी होती है. देखते है कुछ उदाहरण.

हम साथ साथ है .. 
सहभोजिता (Commensalism) : अलग-अलग जाति के दो जीवों के एक साथ भोजन करने और रहने की ऐसी अवस्था जिसमें एक को लाभ किन्तु दूसरे को विशेष लाभ होकर हानि भी नहीं पहुँचती. केवल एक प्रजाति को लाभ होता है.

आप शार्क मछली के बारे में तो जानते ही होंगे कि कितनी खूंखार और खतरनाक होती हैं. कभी कभी मनुष्यो के लिए तो यह जानलेवा भी साबित हो जाती है. इस मछली का वजन लगभग १४,५०० किलो (१४ टन) होता हैशार्क की लंबाई लगभग १० मीटर या ३३ फीट तक होती हैं. शार्क अपने से छोटी मछलियों को आहार के रूप में खा जाती हैं. इसके नुकीले आरी जैसे दांत वाकई डरावने होते है.

आपने देखा होगा कि बड़े बड़े पेड़ो के ऊपर छोटे बेल जैसे परजीवी पौधे उग जाते है, यह पौधे परजीवी होते है, जो मुख्य पेड़ से अपना अन्न ग्रहण करते है.ठीक ऐसा ही एक परजीवी शार्क मछली के साथ रहता है - रेमोरा मछली. सहजीवन का एक अनूठा उदाहरण शार्क और रेमोरा का संबंध है, जो कई उष्णकटिबंधीय महासागरों में पाया जाता है, यह रिश्ता सदियों से विकसित हुआ है.

क्या है रेमोरा मछली 
ये एक छोटी मछली है जो आमतौर पर लंबाई में एक से तीन फीट के बीच में होती है. उनके सिर के ऊपर सक्शन कप की तरह एक अंग बना होता हैं - इस अंग का उपयोग रिमोरा मछली शार्क से चिपककर जुड़ जाने के लिए करती है. आमतौर पर वह शार्क के पेट के नीचे के हिस्से पर चिपक जाती हैं. रेमोरा व्हेल मछली के साथ भी जुड़ जाती हैं.
 
शार्क और रेमोरा का संबंध दोनों को लाभ पहुंचाता है. रेमोरा शार्क द्वारा खाए गए शिकार के बचे हुए अवशेष खाने में माहिर हैंएक तरह से रेमोरा मछली बढ़िया सहजिवी होती है,जो शार्क मछली को साफ रहने में मदद करती है. हालांकि, यह सभी शार्क मछली यो के प्रजाति के साथ नहीं रहती

रेमोरा का लगाव तंत्र अन्य सक्शन कप-आधारित प्रणालियों, फास्टनरों या चिपकने से काफी अलग है जो केवल चिकनी सतहों को संलग्न कर सकते हैं या मेजबान को नुकसान पहुंचाए बिना अलग नहीं किया जा सकता है. ये मटेरियल एक्सपर्ट के संशोधन का विषय बन सकता है.

रेमोरा आम तौर पर तीन कारणों से बड़े समुद्री जानवरों से जुड़ते हैं: परिवहन - एक मुफ्त सवारी जो रेमोरा को ऊर्जा संरक्षण करने की अनुमति देती है; संरक्षण - जब शार्क के साथ संलग्न होने की संभावना नहीं है; और भोजन - शार्क बहुत ही टेढ़े-मेढ़े खाने वाले होते हैं, जो अक्सर रिमझिम फुहारों के बीच तैरते हुए बहुत सारे मनोरम तैरते हुए निकल जाते हैं.

एक दूजे के लिए.. 
पारस्परिक आश्रय (Mutualsim) : इसमे दोनों भागीदारों को लाभ होता है - जैसे मगरमच्छ और प्लोवर पक्षी. कई बार आपने मगरमच्छ को मुह खोले बैठा देखा होगा. थोडे देर बाद एक छोटा सा पक्षी उसके खुले मुह मे बेहिचक चला जाता है.

आप सोचने लगते है कि यह साहसी पक्षी मगरमच्छ के मुंह में क्या कर रहा है? मगरमच्छ उसके साथ कुछ भी क्यों नहीं कर रहा है? इस छोटे पक्षी को मिस्र का प्लोवर पक्षी कहा जाता है. (Egyptian Plover bird). वह मगरमच्छ के मुंह में चला जाता है और उसके दांतों में फंसे भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े बाहर निकालता है. वह उन्हें खाता है और अक्सर यह उसका आहार पूरा करती है. यह मगरमच्छ के दांतों को साफ करता है और उसके मुंह को ताजा और संक्रमण से मुक्त रखता है. तो, प्लोवर पक्षी को उसका भोजन मिलता है और मगरमच्छ के दात साफ हो जाते है. इस तरह, दोनों एक दूसरे की मदद कर देते हैं!

मैं तेरा खून पी जाऊँगा.. 
परजीवीवाद (Parasitism) : एक जीव (परजीवी) प्राप्त करता है, जबकि दूसरा (मेजबान) पीड़ित होता है. यह रिश्ता तो लगभग सब लोग जानते ही है. इसमे छोटे जंतू, बड़े पक्षी या प्राणी की त्वचा मे घुस कर उनका खून चूसते है. वैसे भी, खून चूसने वाले सभी जगह पाए जाते हैं.

है सभी हमारे आसपास.. 
अगर आप ध्यान से अपने आसपास देखों तो - खासकर खेल, मनोरंजन और राजनीती के क्षेत्र, तो आपको वहापर, उपरोक्त तीनों रिश्तेदारीया दिखाई देंगी. लेकिन यहां कौन मगरमच्छ और प्लोवर पक्षी बनेगा, या कब कौन रेमोरा मछली या शार्क ये तो वक़्त-वक़्त की बात होती है. फिर भी जिन्हें सहचारि रिश्तेदारी मे रुचि है, उन्हें यह उदाहरण काफी हद तक काम मे सकते है.

ये मुंबई है बाबू.. 
मुंबई राजनीती और फिल्म इंडस्ट्री के लिए मशहूर है. फ़िलहाल यहा का माहौल गरम है. महाराष्ट्र के फिल्मी और राजनीति के जंगल मे आपको लाखो की संख्या मे रेमोरा मछलियां और प्लोवर पक्षी दिखाई देंगे. बड़े मगरमच्छ और शार्क तो है ही ढेरों की संख्या मे!

कुछ पर्यावरणवादी गुटों की भूमिका से यहा की मेट्रो रेल तीन के निर्माण की गति पिछ्ले आठ महीनों से कम हो गई है, कहते हैं रोजाना रू पाच करोड़ का नुकसान भी हो रहा है सो अलग. अब इनको और इनके आक़ाओं को कौनसी श्रेणी में डालना है ये अपनी अपनी सोच. दूसरी ओर उदारमतवादी और खैर.

शेर होना ही काफी नहीं, झुंड होना जरूरी है.. 
कुछ महाभाग अपने आप को शेर कहलाने मे बड़प्पन महसूस करते हैं. अच्छा भी है, लकड़बग्घा भी शेर के आसपास घूमता फिरता रहता है, ताकि शेर का फेंका हुआ शिकार उसे खाने को मिले. शेर को शायद यह मालूम भी हो, लेकिन उसे क्या?, वो तो अपनी धुन में मशगूल रहता है.

लेकिन क्या आप जानते हैं, जब लकड़बग्घो का झुंड जमा हो जाता है तो फिर वे बड़ी धूर्ततापूर्ण उसी शेर का शिकार उसे घेर घेर कर करते है. शेर को पता भी नहीं चलता वो कब उनके मुह मे छापा गया, आखिर थक हार के वो बैठ जाता है. लकड़बग्घो के लिए एक बड़ी दावत बिछ जाती है.

गुरूर ना करो.. 
कई लोगों को जंगल के प्राणियों की तरह रहने का शौक होता है - खास कर शेर, उन्होंने उपरोक्त रिश्तेदारीया समझ लेनी चाहिए. फायदा उन्हींका है, क्योंकि यहां जानवरों के क्रूरता के साथ मानवी दिमाग भी है - जो कभी भी जान से हाथ धोने पर मजबूर कर सकता है. अकेले-अकेले शिकार करने वाले शेर भी कभी कभी लकड़बग्घो के हत्थे चढ जाता है. किसीने सही ही कहा है कि -
"ज़मीं पे टूट के कैसे गिरा ग़ुरूर उस का,

अभी-अभी तो उसे आसमाँ पे देखा था"
चलते चलते.. 
मुंबई मे एक ओर कोरोना महामारी से लोग परेशान हैं, मुंबई में करीबन एक लाख बिस हजार के आसपास कोरोना के केसेस है (जिसमे से नब्बे हजार के ऊपर रुग्ण अच्छे हो गए है ).
साथ ही शहर मे जोरदार बारिश हो रही, लोग और ज्यादा परेशान है 

मुंबई देश की सबसे अमीर महानगरपालिका है. नगरनिगम का सालाना बजट करीबन रु 33 हजार करोड़ है, दूसरी ओर इनकी करीबन साठ से सत्तर हजार करोड़ की फिक्स्ड डिपाजिट भी है. बावजुद इसके शहर की ढांचागत सुविधाओं पर बहुत दबाव है - शहर में एक दिन भी अगर जोर से बारिश होती है तो शहर में बाढ़ के असर होते है.सड़को पर खड्डे नजर आते  है - जिसकी वजह से नागरिको को काफी असुविधा होती है. गौरतलब है, मुंबई महानगरपालिका की सत्ता पिछले बिस सालो से शिवसेना के हाथो में है.

दूसरी ओर फिल्म और मनोरंजन क्षेत्र मे रहस्यमयी मौतों का दौर शुरू है. यह शृंखला है या अलग-अलग, यह तो जांच से ही पता चलेगा. लेकिन कुछ मामलों मे पैसों की बड़ी रकम के हेराफेरी की आशंका है. बड़े बड़े नाम आगे रहे है. राजनीति दलों की भूमिका संदेहास्पद नजर रही है.


CBI और ED की जांच मे क्या पता चलता है, कोई रेमोरा या शार्क फंसती है जाल मे, या फिर किसी प्लोवर पक्षी को किसी बड़े मगरमच्छ के मुह मे छोड़ कर उनके दात उखाड़ने का कार्यक्रम होता है या फिर शेर को घेरकर शिकार करने वाले लकड़बग्घो का शिकार होता है, या खून चूसने वालों को मार ये तो जांच के बाद ही सामने आएगा. इतना तो दिख रहा है कि, इस वजह से राज्य की राजनीति गरमाई है, पैतरेबाजी हो रही है, कई लोग परेशान लग रहे हैं. कुछ लोग पाला बदलने के फ़िराक़ मे होंगे. फिल्म अग्निपथ का ही एक और डायलॉग याद गया, "हवा तेज चलता है दिनकरराव, टोपी सम्भालो. नहीं तो उड जाएगी.

खैर, ऐसे मामलों मे शुरुआत मे यही होता, आखिर मे राजनीतिक सौदेबाजी का नुस्खा अपनाया जाता है. क्या पता आईपीएल मे मैच फिक्सिंग के बाद जो साफ सफाई हुई शायद कुछ वैसे ही फिल्म जगत मे भी हो? 

इसके चलते राजनीति का माहौल गरमा गया है.आरोप प्रत्यारोप के दौर चल रहे हैं. हालांकि मुंबई में यह कोई पहला मामला नहीं है. लेकिन अब वक़्त बदल गया है - जहा एक ओर डिजिटल तकनीक का ईस्तेमाल, मीडिया का ज़माना है तो दूसरी ओर, गुनहगारों और उनके आक़ाओं की लीगल और सोशल (जेल मे जाना कोई बड़ी बात नहीं रही) इम्यूनीटी बढ़ गई है. इसलिए एक आजकल ऐसी घटनाएँ ईन लोगों का मनोबल तोड़ती नहीं है. किसीने सच ही कहा है.
 "साफ़ दामन का दौर तो कब का खत्म हुआ साहब
अब तो लोग अपने धब्बों पे गुरूर करने लगे है.!"


नॅटजिओ, डिस्कवरी चैनल देखे, अपना ज्ञान बढाएहोशियार रहे, चौकस रहे. सुरक्षित रहे, खुश रहें. रेमोरा मछली बनना है याप्लोवर पक्षी ये अपनी अपनी सोच. हा खुद को से शेर या शार्क समझना गलतफहमी हो सकती है. कौन कमबख्त लकड़बग्घा बनना चाहेगा


शुभम भवतु.
धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
Dhan1011@gmail.com 
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और कविता / गीत  / श्लोक इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है. नए उद्यमियों को सशक्त बनाने के लिए बौद्धिक योगदान देने में इन्हे आनंद होंगा.)

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

TrendSpotting : New and Rising - Pickleball

20 November 2022, Mumbai Let’s have a ball, Pickleball! A school friend of mine recently got transferred from Kolkata to Mumbai. Being a fitness-oriented person, he asked me if there are any good recreation (sports) facilities nearby. Knowing that he got an apartment in the heart of Vile Parle East, I was quick to recommend Prabodhankar Thackeray Krida Sankul (PTKS) – an obvious choice for anyone living in the western suburbs to relax, unwind, train and play!   While he was thrilled to see the Olympic size swimming pool, he got curious about a game that a group of boys were playing in the open area. While the game looked like lawn tennis, but it was not. It appeared to be an easy yet fitness-oriented game to him. When I told him that it is called “ Pickleball” he was like I was kidding! It was natural, A commoner may be amused to hear “Pickleball” being name of a sport! Well, that it is true.   I then took up the opportunity to introduce him to some trainers of the...

उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची!

23 एप्रिल 23, मुंबई  उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची! पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत केंद्र सरकारने अमरावतीमध्ये 'मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाईल पार्क' घोषित केला आहे. देशात सात शहरांत अशाप्रकारचे पार्क होणार असून यामध्ये अमरावतीचा समावेश आहे. अमरावतीसह गुजरात, मध्य प्रदेश, तामिळनाडू, तेलंगण, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश याठिकाणी पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहे. पहिल्या टप्प्यात सातही प्रकल्पांसाठी चार हजार कोटीची गुंतवणूक होणार आहे. अमरावतीच्या प्रकल्पात १० हजार कोटींची गुंतवणूक होणार आहे. नांदगाव पेठ औद्योगीक वसाहतीजवळील पिंपळविहीर येथे सदर प्रकल्प होणार आहे, जवळपास ३ लाख लोकांना रोजगार त्‍यातून मिळणार आहे.    ‘पाच एफ’ अर्थात ‘फार्म टू फायबर टू फॅक्टरी टू फॅशन टू फॉरेन’ याअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहेत. सदर प्रकल्पासाठी केंद्र सरकार ७०० कोटी खर्च करणार असून या पार्कचे मार्केटिंग केंद्र सरकार राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय स्तरावर करणार आहे. यातूनच अनेक मोठे राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय ब्रँड अमरावतीला येणार असल्याची माहिती आहे. ...

राजकीय आरसा - श्री देवेंद्र फडणवीस

21 जुलै 2022, मुंबई राजकीय आरसा – श्री देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस काल सर्वोच्च न्यायालयाने ओबीसी आरक्षणाचा मुद्द्यावर निर्णायक बाजू घेऊन त्यांचे राजकिय आरक्षण बहाल केले. गेले अडीच-तीन वर्ष फोफावलेल्या अनिश्चिततेला पूर्णविराम मिळेल असे दिसतेय. मागच्या जुलै मध्ये तत्कालीन विरोधीपक्षनेते आणि माजी मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फडणवीस यांनी सदनात घोषणा केली होती की त्यांचे सरकार आले तर तीन ते चार महिन्यात हे आरक्षण बहाल करण्यात येईल असे प्रयत्न करू. काळाची किमया बघा, आज ते उपमुख्यमंत्री आहेत आणि हा निर्णय आला. पदग्रहण केल्यापासून दोन-तीन आठवड्यात त्यांनी या विषयी निर्णायक हालचाली केल्या असे म्हंटले जाते. असो, राज्यात राजकिय स्थैर्यासाठी हे होणे आवश्यक होते. तसे बघितले गेले तर, राज्यात स्थैर्य येईल असे दर्शवणारी गेल्या चार आठवड्यात घडलेली ही एकमेव घटना नाही. याची नांदी जून मध्ये घडलेल्या राज्यसभा निवडणुकीत लागली होती. भाजपचे श्री धनंजय महाडिक यांनी भाजप आणि मित्र पक्षांकडे संख्याबळ नसतांना अटीतटीच्या लढतीत तिसरी जागा जिंकली. त्या वेळेस महाविकास आघाडीच्या तीन मतांवर आक्षेप आला होता, त्यातील...