18 जून 20, मुंबई
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
शुरुआत एक कहानी से करते हैं. "घडा भर अक्ल". पुरानी कहानी है, दो राज्यों की, जिनमे से एक राज्य को उनके मंत्रीजी की समझदारी के लिए जाना जाता था. मात्र एक बार, राजा का एक परम मित्र, उन्हें अपना मंत्री बदलने की सलाह देता है. कहता है, कि उसके पास एक व्यक्ति है जो काफी पढ़ालिखा है, अक्लमंद है, और वो काफी अच्छा मंत्री साबित होगा. राजा उसकी बात मानकर अपना मंत्री बदलता है.
यह बात जब पड़ोस के राजा को पता चली तो वो मुस्कुराया, और अपने ओर से एक पहले वाले राजा को संदेसा भेजा. संदेसा ये था, के, "हमे पता चला है कि नए मंत्रीजी काफी अकलवान है, इसलिए हमे एक घडा (मटका) भर अकल भेजे". नए मंत्रीजी परेशान! सोच-सोच कर नींद उड़ गई, और अंतमे अपनी कुर्सी छोड़ भाग गए. राजाजी ने फिर अपने पुराने मंत्री को तलब किया, और जो कुछ हुआ वो सब उन्हें बताया.
पुराने मंत्रीजी मुस्कुराए और कहा "मुझे पाच घडे भिजवा दीजिए". घडे पाने के बाद वे बगीचे मे गए, और कद्दू के पौधे के फूलवाली एक डाल एक-एक घडे मे डाल दी. कुछ दिनों के बाद ये फूल, कद्दू बन गए और बड़े हो गए. जब कद्दू और घडा एक दूसरे को चिपक गए तो उन्होंने वे घडे (जिनमे कद्दू अभी भी है) निकाल लिए. उनमे से दो घडे पड़ोसी राजा को भेज दिए, साथ मे संदेसा भी भेजा "ईन दो घडो मे पूरी तरह अकल भरी है. आप उन घडो को बिना तोड़े अकल को निकालिए. अगर घडा टूट गया तो हम और भिजवा देंगे". पड़ोसी राजा खुश हो गया, समझ गया कि पुराना मंत्री लौट आया है.
तात्पर्य यह है कि अकल दिखाने की नहीं, प्रतीत करने के लिए होती है. दूसरों को पता चलना चाहिए के आप उसका उपयोग सही तरीके से करते है.
भारतीय राजनीति के परिवेश मे कई ऐसे "स्वयंघोषित" या फिर "लादे हुए" अकलवान नेता है.अपनी अकल के अकाल को रोजाना जनता के सामने प्रदर्शित करते है.
महाराष्ट्र मे भी ऐसे महानुभावों की कमी नहीं है. फ़िलहाल तो दिनबदिन यही प्रतीत हो रहा है. खैर.
पुराने बाजीगर लौट आए..
15-16 जून की रात हुए भारतीय सेना और चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के बीच पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी मे संघर्ष हुआ. इसमे भारतीय सेना के 22 जवान वीरगति को प्राप्त हुए.
2018 - 19 मे "काग़ज़ी राफाल" उड़ाने वाले, सर्जिकल स्ट्राइक ( LOC और बाद में बालाकोट) के सबूत मांगने वाले, और दिल्ली के तथाकथित राजपुत्र, अपनी अकल का प्रदर्शन करने के एक बार फिर अग्रेसित हो गए है. हमेशा की तरह, विषय की पूरी जानकारी ना लेकर राजपुत्र ने अपने अकल के घोड़े दौडायें, पूछा कि, "भारतीय सेना के जवान निहत्थे क्यों थे?, कौन है जिम्मेदार ?".
क्या हुआ था उस रात?
पिछले दो महीनों से लद्दाख मे, लाइन ऑफ एचयूएल कंट्रोल (LAC) पर चीनी सेना के साथ भारतीय सेना संघर्षरत है. LAC का विषय 1993 मे भी हुआ था, जब भारत और चीन मे बातचीत हुई.
लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) मे सीमांकित (demarcated) होती है, लेकिन LAC मे कोई ऐसी कोई बॉर्डर नहीं होती. यह खुली जगह होती है.
भारत और चीन का विवाद इस खुली जगह के हिस्से पर है. चीन कहता है कि LAC 2000 किलोमीटर ही है, जबकि भारत इसे 3488 किलोमीटर मानता है. यह LAC तीन क्षेत्रो मे बटी है - उत्तर मे लद्दाख, उत्तरमध्य मे हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, और पूर्वोत्तर मे अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम मे.
1962 के बाद से चीन ने समय-समय पर अपनी ओर से कब्जा बढ़ाना शुरू किया. कुछ इतिहासकारों की माने, तो तत्कालीन सरकारों ने इन हिस्सों को बर्फ मे ढ़की बंजर जमीन, जहा घास-फूस भी नहीं उगती है कर के चीन के अतिक्रमण को अनदेखा किया (जानबूझकर, या किसी के दबाव मे, या फिर ये उनकी "अकल" थी, ये तो जानकर ही बता सकेंगे).
चीन का अतिक्रमण बढ़ता गया. 1993 मे तत्कालीन सरकारों ने बातचीत कर LAC पर समझौता किया. इसी समझौते मे LAC पर शस्त्र चलाने की मनाही भी शामिल की गई. लेकिन चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया - देसपांग क्षेत्र मे 2013 मे, चुमार क्षेत्र में 2014 मे और दोकलाम क्षेत्र मे 2017 मे उसकी सेना आक्रमीत हुई थी. भारतीय सेना ने हरबार मुँहतोड़ जवाब दिया और उन्हें खदेड़ दिया.
चीन अब फिर एक बार अग्रसित हुआ है. इस बार लद्दाख मे गलवान घाटी मे, जो समुद्रस्तर से 14000 फिट की ऊंचाई पर है. रात मे यहा का तापमान माइनस 20 डिग्री होता है! पिछ्ले कुछ महीनों से वहा पर संघर्ष शुरू है. दोनों तरफ के कमांडिंग ऑफिसर आमने सामने आते है, खड़े होकर बातचीत करते है. उस वक्त वहा पर किसीको भी कोई भी शस्त्र चलाने की इजाजत नहीं होती. यह कुछ दिन चला.
इसी बीच दिल्ली मे दोनो देशों के राजनयिकों मे भी बातचीत हो रही थी, और मामला जस का तस रखने पर जोर दिया गया, दोनों देशों को अपने सैनिक पीछे ले जाने की बात हुई, चीन राजी हुआ. लेकिन परसों रात (15-16 Jun) मे फिर कुछ संघर्ष हुआ. कहा जाता है, चीन के 300 सैनिक थे, और भारत के 55. यह संघर्ष देर रात तक चला. पारंपरिक शस्त्रों के ईस्तेमाल की मनाही थी. चीन की तरफ से कील लगे लकड़ी के डंडों का भरपूर ईस्तेमाल हुआ, जिससे कई भारतीय सेना के जवानों को चोटे आई. चोट की और देर रात तक मे बर्फ जमाने वाली ठंड (-20 डिग्री) मे औसत से ज्यादा समय गुजारने के कारण भारतीय सेना के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए. इसमे भारतीय बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर, कर्नल सुरेश बाबु भी शामिल है. चीन की तरफ भी जानमाल का काफी नुकसान हुआ है, लेकिन अबतक कोई सटीक आकड़ा बाहर नहीं आया है. शायद कभी भी ना सामने आए.
चीन के इस आक्रमण से पूरा देश आक्रोशित है. सामान्य भारतीय क्रोधित है.
जनाब की राजनीति शुरू..
लेकिन कुछ भारतीय राजनैतिक दल और उनके अकलवान नेता राजनीति भांजने मे लगे है. पिछ्ले कुछ दिनों से भारतीय प्रधानमंत्री पर तंज कस रहे थे, उन्हें डरपोक, भगोड़ा बता रहे थे. अपने आप को भारतीय राजनीति की सबसे पुराना और ऐतिहासिक दल बतानेवाले दल के नेता का यह सवाल बौद्धिक दिवालिएपन से भी निचला है!
इसका जवाब है जनाब?
2008 मे कॉन्ग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) का राजनैतिक समझौता हुआ था. एकही देश के दो राजनैतिक दलों का आपसी समझौता समझ सकते है. लेकिन, दो देशों के राजनैतिक दलों का आपस में समझौता? कैसा समझौता? वो भी जब दोनों दल सत्ता मे हो? फिर देश की विदेशनीति किसलिए है?
2017 मे जब दोकलाम मे चीन के सेना के साथ का भारतीय सेना का संघर्ष शुरू था, तब, यही राजपुत्र अपने कुनबे के साथ चीनी राजनयिकों की मेहमाननवाज़ी कर रहे थे. ग़ज़ब है.
शुरू है राजनैतिक रुदन..
अब इनके साथ, इनके सिपहसलार और सिपाही भी चल पड़ेंगे. वैसे तो भारत मे चीन से हमदर्दी रखने वालों की कोई कमी नहीं है. इसके लिए उनका कम्युनिस्ट पार्टी मे होना ऐसा कोई जरूरी नहीं है. एक तरफ कॉँग्रेस है, बीच मे लेफ्ट लिबरल है और फिर कट्टर कम्युनिस्ट. जिहादी. माओवादी नक्सली तो है ही. ये सब मिलकर, उनके चीन का घनिष्ठ मित्र होने के सबूत दिनरात देते रहे हैं. लेफ्ट लिबरल में कलाकार, मीडिया हॉउस, पत्रकार, लेखक, खिलाड़ी, विधिज्ञ, और युवाछात्र नेता जैसे विविध क्षेत्रो के लोगों का जमावड़ा है.
(ये भी पढ़िए, ये लाल रंग , https://windcheck.blogspot.com/2020/06/blog-post_14.html )
ये लेफ्ट लिबरल, मोदी सरकार से हर कारवाई का सबूत मांगते आए है, लेकिन उनके सबूत देने की बात आती है तो फिर "काग़ज़ नहीं दिखाएंगे" का रुदन करते है. युवाछात्रों को भारत के टुकड़े टुकड़े करने की भाषा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि, 2014 से पहले इनका कोई वज़ूद ही नहीं था. केंद्र मे जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, और नरेंद मोदी जबसे पंतप्रधान बने है तब से लेफ्ट लिबरलो की संख्या दिनदुगुनी, रात चौगुनी हुई है. हो सकता है आज इनकी संख्या लाखो मे हो, शायद कोई आपके पड़ोस मे ही रहता हो!
खैर, चीन के इतने सारे हमदर्द, दोस्त शायद किसी और देश मे ना हो जितने भारत में है. सामन्य भारतीय नागरिको को इनसे जुझना है, इनको झुठलाना है, बेनकाब करना है.
बौखलाया है चीन..
किसी जानकारी को माने तो, वैश्विक कोरोना महामारी फैलाने की जिम्मेदारी चीन की है. इस वजह से दुनियाभर मे चीन के खिलाफ रोष है. जिससे चीन बौखलाहट मे है. पहले ही अमरिका के साथ उनके व्यपारसंबंध निचले स्तर पर है. जापान, दक्षिण कोरिया और पश्चिमी यूरोप के कई देश आपने व्यावसायिको चीन से अपने व्यवसाय कम या बंद करने की सलाह दे रहे हैं, प्रोत्साहित कर रहे हैं. जैसे, दक्षिण कोरिया ने करीब एक बिलियन अमरीकी डॉलर (साढ़े सात हजार करोड़) का फ़ंड बनाया है जो चीन से निकलनेवालों व्यावसायिको की मदत करेगा.
वोकल फॉर लोकल..
पंतप्रधान मोदी ने भी "आत्मनिर्भर भारत अभियान" का संकल्प लेकर उसे पूर्णसिद्धि की ओर ले जाने के लिए कदम उठाए है. चीन से आनेवाली मशीनों और उत्पाद का उपयोग कम से कम करने के लिए सरकारी विभागों, उद्यमों (PSU) और नागरिको को आवाहन किया है. चीन अपने उद्यमियों को निर्यात सब्सिडी देकर उनके माल को सस्ता बनाता है. सस्ते चीनी कच्चे माल की जगह, भारतीय उद्यमियों को उनके स्त्रोत भारत मे ही ढूंढ़ने होंगे. शायद वे थोड़े महंगे होंगे.
है तैयार हम..
भारतीय उद्यमियों मे भी जागृती हो रही है. कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने बॉलीवुड के सितारों और खिलाड़ियों से अपील की है कि देशहित में चाइनीज सामानों का विज्ञापन बंद कर दें. पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारतीय सैनिकों पर बर्बर हमले के विरोध में CAIT ने चाइनीज प्रॉडक्ट्स के बहिष्कार की अपील की है.
भारत चीन व्यापार..
भारत औसतन पाच सौ बिलियन अमरीकी डॉलर (करीबन अड़तीस लाख करोड़ रुपये) का सामान हर साल आयात करता है. चीन से करीबन साठ बिलियन अमरीकी डॉलर (करीबन साढ़े चार लाख करोड़ रुपये) का सामान आयात होता है (ज्यादातर खिलौने, प्लास्टिक, सेमी कंडक्टर सर्किट्स, पेट्रोलियम प्रॉडक्टस, खनिज, इलेक्ट्रॉनिक वस्तूए (मोबाइल फोन, टीव्ही सेट, लॅपटॉप, कॉम्प्युटर), खाद, केमिकल इत्यादी वस्तुए है). अपने देश से निर्यात बढ़ाने के लिए चीन की अपने व्यापरियों को इंसेंटिव या सब्सिडी (औसतन 15%) देता है. इसको पकड़े तो ये आकडा और काफी बढ़ सकता है. भारत के पूरे आयात का लगभग 12% हिस्सा चीन की तरफ से आता है.
अगर CAIT की मानो तो इनका असर सालाना एक लाख करोड़ रुपये (करीबन 13-14 बिलियन अमरीकी डॉलर) के आयात पर गिर सकता है. शुरुआत तो कहीं से करना ही होगा. अगर हम चाहे तो ये मुमकिन हो सकता है. देर लगेंगी लेकिन मुमकिन है. चीन को जहा दर्द होता है वही चोट पड़ेंगी.
कहा चोट ज़्यादा लगेंगी?
प्लास्टिक. खिलौने, खनिज, कैमिकल जैसी चीजों का आयात बंद कर लेने से असर हो, लेकिन शायद ज्यादा ना हो. चीन के हुकुम के इक्के है, टेलीफोन नेटवर्क, रेल सिग्नल सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक वस्तूए जैसे मोबाइल, और सबसे महत्वपूर्ण इक्का है सेमीकंडक्टर चिप और सर्किटस (ICs). जब आप सिर्फ एक इक्के को लेना चाहते है, तो वो धूर्तता से आपको पूरा कुनबा खरीदने पे मजबूर करता है. अगर हम चीन के इस (और दूसरे) हुकुमी इक्के (क्रिटिकल पार्ट्स) के लिए वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी कर लेते है तो उसका असर जबरदस्त होगा.
घर आजा परदेसी..
IIT, IISC या उन जैसे अग्रेषित संस्थाओ से निकले, विदेशों में डॉलर कमाने वाले भारतीय इंजीनियरो को वापिस भारत लौटकर, यहा एक सुदृढ़ और शाश्वत इकोसिस्टम बनाने मे अपना योगदान देने के लिए यह एक सुहाना अवसर है. हालांकि, भारत मे अभी भी लाखो प्रतिभाशाली उद्योजक है, लेकिन नए और आने से उनको मदत ही मिलेंगी.
जहा चाह, वहा राह..
भारतीय सेना और भारतीय सरकार, चीन को मुँहतोड़ जवाब देने मे पूर्णतः सक्षम है. मिलिटरी और राजनीतिक लीडरशिप एकसाथ है. कडे से कडे निर्णय के लिए कटिबद्ध है. उनकी चाह भी है.
चीन से सामरिक और राजनयिक संघर्ष तो होता ही रहेगा. सामान्य भारतीय नागरिको ने चीन के प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष पैरवीकारों (कॉन्ग्रेस, लेफ्ट लिबरल, कम्युनिस्ट) को पहचानकर, उनके साथ वैचारिक चर्चा कर उनका ढोंगीपन दुनिया के सामने लाना चाहिए. उन्हें उचित सबक सिखाना चाहिए. जहा उन्हें दर्द होगा वहा चोट करनी चाहिए - जैसे उनके टीव्ही चॅनल ना देख कर, या उनकी फ़िल्में ना देख कर, या किताबें ना खरीद कर, या उनके उद्योगधंधों से निकले माल ना खरीद कर या होटलो मे ना जाकर. डिमांड खत्म, तो सप्लाई भी खत्म हो जाती है.
जोश तगडा है..
भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं मे से एक है (करीबन चौदह लाख संख्या). अपने साहस, अनुशासन, और कर्तव्य दक्षता के वजह से भारतीय सेना दुनिया के चंद प्रोफेशनल सेनाओं मे से एक है. पिछ्ले कुछ वर्षो से सेनाओं का मनोबल भी ऊंचा है. खासकर, जम्मू और कश्मीर मे जो कारवाई शुरू है उसको लेकर (पिछ्ले चार महीनों मे 100 से ज्यादा आतंकवादियों को ढेर किया है). सेना के अफसर कहते है - "हमारा झण्डा इसलिए नहीं फहराता कि हवा चल रही होती है, ये हर उस जवान की आखिरी साँस से फहराता है जो इसकी रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देता है।"
जय हिंद, जय हिंद की सेना..
हम, सामान्य नागरिक, सेना का अंदरुनी अंग बनकर देशी - विदेशी - अर्बन जिहादी और नक्सली ताकतो को जमीनदोस्त करके देशसेवा कर सकते है. जयहिंद की सेना बन सकते है.
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे. वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीररस के कवि के रूप में स्थापित हैं. उन्हीं की एक कविता "जियो जियो अय हिन्दुस्तान!" की कुछ पंक्तिया..
व्यर्थ ना जाएगा ये बलिदान. वीर जवान अमर रहे. 🙏
चलते चलते..
उपरोक्त कथा मे घडे से अकल कैसे निकलेगी? घडे मे पानी और मसाला डाल कर उसे उबालने पर कद्दू नर्म हो जाएगा और आपको सूप मिलेगा. घडा भी बचा और सेहतमंद सूप भी मिला!! खैर, अकल अपनी अपनी.
धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
Dhan1011@gmail.com
(इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा की गई है).
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
शुरुआत एक कहानी से करते हैं. "घडा भर अक्ल". पुरानी कहानी है, दो राज्यों की, जिनमे से एक राज्य को उनके मंत्रीजी की समझदारी के लिए जाना जाता था. मात्र एक बार, राजा का एक परम मित्र, उन्हें अपना मंत्री बदलने की सलाह देता है. कहता है, कि उसके पास एक व्यक्ति है जो काफी पढ़ालिखा है, अक्लमंद है, और वो काफी अच्छा मंत्री साबित होगा. राजा उसकी बात मानकर अपना मंत्री बदलता है.
यह बात जब पड़ोस के राजा को पता चली तो वो मुस्कुराया, और अपने ओर से एक पहले वाले राजा को संदेसा भेजा. संदेसा ये था, के, "हमे पता चला है कि नए मंत्रीजी काफी अकलवान है, इसलिए हमे एक घडा (मटका) भर अकल भेजे". नए मंत्रीजी परेशान! सोच-सोच कर नींद उड़ गई, और अंतमे अपनी कुर्सी छोड़ भाग गए. राजाजी ने फिर अपने पुराने मंत्री को तलब किया, और जो कुछ हुआ वो सब उन्हें बताया.
पुराने मंत्रीजी मुस्कुराए और कहा "मुझे पाच घडे भिजवा दीजिए". घडे पाने के बाद वे बगीचे मे गए, और कद्दू के पौधे के फूलवाली एक डाल एक-एक घडे मे डाल दी. कुछ दिनों के बाद ये फूल, कद्दू बन गए और बड़े हो गए. जब कद्दू और घडा एक दूसरे को चिपक गए तो उन्होंने वे घडे (जिनमे कद्दू अभी भी है) निकाल लिए. उनमे से दो घडे पड़ोसी राजा को भेज दिए, साथ मे संदेसा भी भेजा "ईन दो घडो मे पूरी तरह अकल भरी है. आप उन घडो को बिना तोड़े अकल को निकालिए. अगर घडा टूट गया तो हम और भिजवा देंगे". पड़ोसी राजा खुश हो गया, समझ गया कि पुराना मंत्री लौट आया है.
तात्पर्य यह है कि अकल दिखाने की नहीं, प्रतीत करने के लिए होती है. दूसरों को पता चलना चाहिए के आप उसका उपयोग सही तरीके से करते है.
भारतीय राजनीति के परिवेश मे कई ऐसे "स्वयंघोषित" या फिर "लादे हुए" अकलवान नेता है.अपनी अकल के अकाल को रोजाना जनता के सामने प्रदर्शित करते है.
महाराष्ट्र मे भी ऐसे महानुभावों की कमी नहीं है. फ़िलहाल तो दिनबदिन यही प्रतीत हो रहा है. खैर.
पुराने बाजीगर लौट आए..
15-16 जून की रात हुए भारतीय सेना और चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के बीच पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी मे संघर्ष हुआ. इसमे भारतीय सेना के 22 जवान वीरगति को प्राप्त हुए.
2018 - 19 मे "काग़ज़ी राफाल" उड़ाने वाले, सर्जिकल स्ट्राइक ( LOC और बाद में बालाकोट) के सबूत मांगने वाले, और दिल्ली के तथाकथित राजपुत्र, अपनी अकल का प्रदर्शन करने के एक बार फिर अग्रेसित हो गए है. हमेशा की तरह, विषय की पूरी जानकारी ना लेकर राजपुत्र ने अपने अकल के घोड़े दौडायें, पूछा कि, "भारतीय सेना के जवान निहत्थे क्यों थे?, कौन है जिम्मेदार ?".
क्या हुआ था उस रात?
पिछले दो महीनों से लद्दाख मे, लाइन ऑफ एचयूएल कंट्रोल (LAC) पर चीनी सेना के साथ भारतीय सेना संघर्षरत है. LAC का विषय 1993 मे भी हुआ था, जब भारत और चीन मे बातचीत हुई.
लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) मे सीमांकित (demarcated) होती है, लेकिन LAC मे कोई ऐसी कोई बॉर्डर नहीं होती. यह खुली जगह होती है.
भारत और चीन का विवाद इस खुली जगह के हिस्से पर है. चीन कहता है कि LAC 2000 किलोमीटर ही है, जबकि भारत इसे 3488 किलोमीटर मानता है. यह LAC तीन क्षेत्रो मे बटी है - उत्तर मे लद्दाख, उत्तरमध्य मे हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, और पूर्वोत्तर मे अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम मे.
1962 के बाद से चीन ने समय-समय पर अपनी ओर से कब्जा बढ़ाना शुरू किया. कुछ इतिहासकारों की माने, तो तत्कालीन सरकारों ने इन हिस्सों को बर्फ मे ढ़की बंजर जमीन, जहा घास-फूस भी नहीं उगती है कर के चीन के अतिक्रमण को अनदेखा किया (जानबूझकर, या किसी के दबाव मे, या फिर ये उनकी "अकल" थी, ये तो जानकर ही बता सकेंगे).
चीन का अतिक्रमण बढ़ता गया. 1993 मे तत्कालीन सरकारों ने बातचीत कर LAC पर समझौता किया. इसी समझौते मे LAC पर शस्त्र चलाने की मनाही भी शामिल की गई. लेकिन चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया - देसपांग क्षेत्र मे 2013 मे, चुमार क्षेत्र में 2014 मे और दोकलाम क्षेत्र मे 2017 मे उसकी सेना आक्रमीत हुई थी. भारतीय सेना ने हरबार मुँहतोड़ जवाब दिया और उन्हें खदेड़ दिया.
चीन अब फिर एक बार अग्रसित हुआ है. इस बार लद्दाख मे गलवान घाटी मे, जो समुद्रस्तर से 14000 फिट की ऊंचाई पर है. रात मे यहा का तापमान माइनस 20 डिग्री होता है! पिछ्ले कुछ महीनों से वहा पर संघर्ष शुरू है. दोनों तरफ के कमांडिंग ऑफिसर आमने सामने आते है, खड़े होकर बातचीत करते है. उस वक्त वहा पर किसीको भी कोई भी शस्त्र चलाने की इजाजत नहीं होती. यह कुछ दिन चला.
इसी बीच दिल्ली मे दोनो देशों के राजनयिकों मे भी बातचीत हो रही थी, और मामला जस का तस रखने पर जोर दिया गया, दोनों देशों को अपने सैनिक पीछे ले जाने की बात हुई, चीन राजी हुआ. लेकिन परसों रात (15-16 Jun) मे फिर कुछ संघर्ष हुआ. कहा जाता है, चीन के 300 सैनिक थे, और भारत के 55. यह संघर्ष देर रात तक चला. पारंपरिक शस्त्रों के ईस्तेमाल की मनाही थी. चीन की तरफ से कील लगे लकड़ी के डंडों का भरपूर ईस्तेमाल हुआ, जिससे कई भारतीय सेना के जवानों को चोटे आई. चोट की और देर रात तक मे बर्फ जमाने वाली ठंड (-20 डिग्री) मे औसत से ज्यादा समय गुजारने के कारण भारतीय सेना के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए. इसमे भारतीय बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर, कर्नल सुरेश बाबु भी शामिल है. चीन की तरफ भी जानमाल का काफी नुकसान हुआ है, लेकिन अबतक कोई सटीक आकड़ा बाहर नहीं आया है. शायद कभी भी ना सामने आए.
चीन के इस आक्रमण से पूरा देश आक्रोशित है. सामान्य भारतीय क्रोधित है.
जनाब की राजनीति शुरू..
लेकिन कुछ भारतीय राजनैतिक दल और उनके अकलवान नेता राजनीति भांजने मे लगे है. पिछ्ले कुछ दिनों से भारतीय प्रधानमंत्री पर तंज कस रहे थे, उन्हें डरपोक, भगोड़ा बता रहे थे. अपने आप को भारतीय राजनीति की सबसे पुराना और ऐतिहासिक दल बतानेवाले दल के नेता का यह सवाल बौद्धिक दिवालिएपन से भी निचला है!
इसका जवाब है जनाब?
2008 मे कॉन्ग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) का राजनैतिक समझौता हुआ था. एकही देश के दो राजनैतिक दलों का आपसी समझौता समझ सकते है. लेकिन, दो देशों के राजनैतिक दलों का आपस में समझौता? कैसा समझौता? वो भी जब दोनों दल सत्ता मे हो? फिर देश की विदेशनीति किसलिए है?
2017 मे जब दोकलाम मे चीन के सेना के साथ का भारतीय सेना का संघर्ष शुरू था, तब, यही राजपुत्र अपने कुनबे के साथ चीनी राजनयिकों की मेहमाननवाज़ी कर रहे थे. ग़ज़ब है.
शुरू है राजनैतिक रुदन..
अब इनके साथ, इनके सिपहसलार और सिपाही भी चल पड़ेंगे. वैसे तो भारत मे चीन से हमदर्दी रखने वालों की कोई कमी नहीं है. इसके लिए उनका कम्युनिस्ट पार्टी मे होना ऐसा कोई जरूरी नहीं है. एक तरफ कॉँग्रेस है, बीच मे लेफ्ट लिबरल है और फिर कट्टर कम्युनिस्ट. जिहादी. माओवादी नक्सली तो है ही. ये सब मिलकर, उनके चीन का घनिष्ठ मित्र होने के सबूत दिनरात देते रहे हैं. लेफ्ट लिबरल में कलाकार, मीडिया हॉउस, पत्रकार, लेखक, खिलाड़ी, विधिज्ञ, और युवाछात्र नेता जैसे विविध क्षेत्रो के लोगों का जमावड़ा है.
(ये भी पढ़िए, ये लाल रंग , https://windcheck.blogspot.com/2020/06/blog-post_14.html )
ये लेफ्ट लिबरल, मोदी सरकार से हर कारवाई का सबूत मांगते आए है, लेकिन उनके सबूत देने की बात आती है तो फिर "काग़ज़ नहीं दिखाएंगे" का रुदन करते है. युवाछात्रों को भारत के टुकड़े टुकड़े करने की भाषा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि, 2014 से पहले इनका कोई वज़ूद ही नहीं था. केंद्र मे जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, और नरेंद मोदी जबसे पंतप्रधान बने है तब से लेफ्ट लिबरलो की संख्या दिनदुगुनी, रात चौगुनी हुई है. हो सकता है आज इनकी संख्या लाखो मे हो, शायद कोई आपके पड़ोस मे ही रहता हो!
खैर, चीन के इतने सारे हमदर्द, दोस्त शायद किसी और देश मे ना हो जितने भारत में है. सामन्य भारतीय नागरिको को इनसे जुझना है, इनको झुठलाना है, बेनकाब करना है.
बौखलाया है चीन..
किसी जानकारी को माने तो, वैश्विक कोरोना महामारी फैलाने की जिम्मेदारी चीन की है. इस वजह से दुनियाभर मे चीन के खिलाफ रोष है. जिससे चीन बौखलाहट मे है. पहले ही अमरिका के साथ उनके व्यपारसंबंध निचले स्तर पर है. जापान, दक्षिण कोरिया और पश्चिमी यूरोप के कई देश आपने व्यावसायिको चीन से अपने व्यवसाय कम या बंद करने की सलाह दे रहे हैं, प्रोत्साहित कर रहे हैं. जैसे, दक्षिण कोरिया ने करीब एक बिलियन अमरीकी डॉलर (साढ़े सात हजार करोड़) का फ़ंड बनाया है जो चीन से निकलनेवालों व्यावसायिको की मदत करेगा.
वोकल फॉर लोकल..
पंतप्रधान मोदी ने भी "आत्मनिर्भर भारत अभियान" का संकल्प लेकर उसे पूर्णसिद्धि की ओर ले जाने के लिए कदम उठाए है. चीन से आनेवाली मशीनों और उत्पाद का उपयोग कम से कम करने के लिए सरकारी विभागों, उद्यमों (PSU) और नागरिको को आवाहन किया है. चीन अपने उद्यमियों को निर्यात सब्सिडी देकर उनके माल को सस्ता बनाता है. सस्ते चीनी कच्चे माल की जगह, भारतीय उद्यमियों को उनके स्त्रोत भारत मे ही ढूंढ़ने होंगे. शायद वे थोड़े महंगे होंगे.
है तैयार हम..
भारतीय उद्यमियों मे भी जागृती हो रही है. कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने बॉलीवुड के सितारों और खिलाड़ियों से अपील की है कि देशहित में चाइनीज सामानों का विज्ञापन बंद कर दें. पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारतीय सैनिकों पर बर्बर हमले के विरोध में CAIT ने चाइनीज प्रॉडक्ट्स के बहिष्कार की अपील की है.
भारत चीन व्यापार..
भारत औसतन पाच सौ बिलियन अमरीकी डॉलर (करीबन अड़तीस लाख करोड़ रुपये) का सामान हर साल आयात करता है. चीन से करीबन साठ बिलियन अमरीकी डॉलर (करीबन साढ़े चार लाख करोड़ रुपये) का सामान आयात होता है (ज्यादातर खिलौने, प्लास्टिक, सेमी कंडक्टर सर्किट्स, पेट्रोलियम प्रॉडक्टस, खनिज, इलेक्ट्रॉनिक वस्तूए (मोबाइल फोन, टीव्ही सेट, लॅपटॉप, कॉम्प्युटर), खाद, केमिकल इत्यादी वस्तुए है). अपने देश से निर्यात बढ़ाने के लिए चीन की अपने व्यापरियों को इंसेंटिव या सब्सिडी (औसतन 15%) देता है. इसको पकड़े तो ये आकडा और काफी बढ़ सकता है. भारत के पूरे आयात का लगभग 12% हिस्सा चीन की तरफ से आता है.
अगर CAIT की मानो तो इनका असर सालाना एक लाख करोड़ रुपये (करीबन 13-14 बिलियन अमरीकी डॉलर) के आयात पर गिर सकता है. शुरुआत तो कहीं से करना ही होगा. अगर हम चाहे तो ये मुमकिन हो सकता है. देर लगेंगी लेकिन मुमकिन है. चीन को जहा दर्द होता है वही चोट पड़ेंगी.
कहा चोट ज़्यादा लगेंगी?
प्लास्टिक. खिलौने, खनिज, कैमिकल जैसी चीजों का आयात बंद कर लेने से असर हो, लेकिन शायद ज्यादा ना हो. चीन के हुकुम के इक्के है, टेलीफोन नेटवर्क, रेल सिग्नल सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक वस्तूए जैसे मोबाइल, और सबसे महत्वपूर्ण इक्का है सेमीकंडक्टर चिप और सर्किटस (ICs). जब आप सिर्फ एक इक्के को लेना चाहते है, तो वो धूर्तता से आपको पूरा कुनबा खरीदने पे मजबूर करता है. अगर हम चीन के इस (और दूसरे) हुकुमी इक्के (क्रिटिकल पार्ट्स) के लिए वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी कर लेते है तो उसका असर जबरदस्त होगा.
घर आजा परदेसी..
IIT, IISC या उन जैसे अग्रेषित संस्थाओ से निकले, विदेशों में डॉलर कमाने वाले भारतीय इंजीनियरो को वापिस भारत लौटकर, यहा एक सुदृढ़ और शाश्वत इकोसिस्टम बनाने मे अपना योगदान देने के लिए यह एक सुहाना अवसर है. हालांकि, भारत मे अभी भी लाखो प्रतिभाशाली उद्योजक है, लेकिन नए और आने से उनको मदत ही मिलेंगी.
जहा चाह, वहा राह..
भारतीय सेना और भारतीय सरकार, चीन को मुँहतोड़ जवाब देने मे पूर्णतः सक्षम है. मिलिटरी और राजनीतिक लीडरशिप एकसाथ है. कडे से कडे निर्णय के लिए कटिबद्ध है. उनकी चाह भी है.
चीन से सामरिक और राजनयिक संघर्ष तो होता ही रहेगा. सामान्य भारतीय नागरिको ने चीन के प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष पैरवीकारों (कॉन्ग्रेस, लेफ्ट लिबरल, कम्युनिस्ट) को पहचानकर, उनके साथ वैचारिक चर्चा कर उनका ढोंगीपन दुनिया के सामने लाना चाहिए. उन्हें उचित सबक सिखाना चाहिए. जहा उन्हें दर्द होगा वहा चोट करनी चाहिए - जैसे उनके टीव्ही चॅनल ना देख कर, या उनकी फ़िल्में ना देख कर, या किताबें ना खरीद कर, या उनके उद्योगधंधों से निकले माल ना खरीद कर या होटलो मे ना जाकर. डिमांड खत्म, तो सप्लाई भी खत्म हो जाती है.
जोश तगडा है..
भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं मे से एक है (करीबन चौदह लाख संख्या). अपने साहस, अनुशासन, और कर्तव्य दक्षता के वजह से भारतीय सेना दुनिया के चंद प्रोफेशनल सेनाओं मे से एक है. पिछ्ले कुछ वर्षो से सेनाओं का मनोबल भी ऊंचा है. खासकर, जम्मू और कश्मीर मे जो कारवाई शुरू है उसको लेकर (पिछ्ले चार महीनों मे 100 से ज्यादा आतंकवादियों को ढेर किया है). सेना के अफसर कहते है - "हमारा झण्डा इसलिए नहीं फहराता कि हवा चल रही होती है, ये हर उस जवान की आखिरी साँस से फहराता है जो इसकी रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देता है।"
जय हिंद, जय हिंद की सेना..
हम, सामान्य नागरिक, सेना का अंदरुनी अंग बनकर देशी - विदेशी - अर्बन जिहादी और नक्सली ताकतो को जमीनदोस्त करके देशसेवा कर सकते है. जयहिंद की सेना बन सकते है.
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे. वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीररस के कवि के रूप में स्थापित हैं. उन्हीं की एक कविता "जियो जियो अय हिन्दुस्तान!" की कुछ पंक्तिया..
जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज ला सकता ।
सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
पर की हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,
जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे।
हम प्रहरी यमराज समान
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
व्यर्थ ना जाएगा ये बलिदान. वीर जवान अमर रहे. 🙏
चलते चलते..
उपरोक्त कथा मे घडे से अकल कैसे निकलेगी? घडे मे पानी और मसाला डाल कर उसे उबालने पर कद्दू नर्म हो जाएगा और आपको सूप मिलेगा. घडा भी बचा और सेहतमंद सूप भी मिला!! खैर, अकल अपनी अपनी.
धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
Dhan1011@gmail.com
(इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा की गई है).
Comments
Post a Comment