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ये लाल रंग....

14 Jun 20, मुंबई
ये लाल रंग....
कल, 13 जून को, हमारे पड़ोसी देश नेपाल मे, वहा की विद्यमान सरकार ने एक नए राजनयिक नक्शे का प्रस्ताव अपनी संसद मे मंजूर करवा लिया है. अब इसे वहा के राष्ट्रपति के सहमती की जरूरी है. इस नक़्शे में लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख जैसे रणनीतिक क्षेत्र को नेपाल की सीमा का हिस्सा दिखाया गया है.

नेपाल और भारत करीबन 1880 किलोमीटर की खुली सीमा साझा करते है. कहते है, इसमे मे 98 % भूभाग पर कभी कोई विवाद नहीं था. लेकिन लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख के लिए नेपाल हमेशा से आग्रही रहा है. कहा जा रहा है कि, हमारा दूसरा पड़ोसी देश, चीन इस विषय मे मध्यस्थि करने के लिए उत्सुक है. 
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लद्दाख मे भारतीय सेना और चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के बीच बीते कुछ हफ्तों से संघर्ष शुरू था. कुछ दिन पहले PLA, ढाई किलोमिटर पीछे हटी. बातचीत शुरू है. 

कुछ दिनों पहले, पूर्वोत्तर मे सिक्किम से सटे नाकुला पास पर भारतीय सेना और चीन के जवानों मे भिड़ंत हो गई. 

करीबन तीन साल, पहले भारतीय सेना का चीनी सेना के साथ, भारत, चीन और भूटान की सीमा पर स्थित दोकलाम मे संघर्ष हुआ था. 

अक्साई चीन, जो भारतीय केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख मे शामिल है, भारत का अविभाज्य अंग है, उस के कुछ हिस्सों पर चीन का दावा काफी पुराना है. विशेष कर जबसे अनुच्छेद 370 हटाया गया और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित किया गया तबसे, चीन इस भूभाग पर और कड़ी नजर बनाए है. 

इन सारे विषयों मे चीन सरकार / सेना से सीधी बातचीत शुरू है.
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पाकिस्तान पिछले सत्तर सालों से जम्मू और कश्मीर मे छ्द्म युद्द (Proxy War) खेल रहा है. उसे हमेशा से चीन से शह मिलती है. पाकिस्तानी सेना मे चीनी उपकरणों की भरमार है, जिनमें मिसाइल और फाइटर प्लेन्स भी है. 

जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370, 35(a) हटाने के बाद, पाकिस्तान की तरफ से इसका विरोध हुआ था, टीका टिप्पणी हुई थी. पाकिस्तान इस बात से वाकिफ़ है कि देर सवेर, पाकिस्तान ने जबरन कब्जा किए हुए जम्मू और कश्मीर (PoJK) के भूभाग को भारत अपने साथ जोड़ लेंगा. सामान्य जनता की विद्यमान भारत सरकार से उम्मीदे भी यही है. 

इस वजह से वहा भी चीन भी अपनी भूमिका निभाना चाहता है. चीन का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट, साढ़े चार लाख करोड़ रुपये या USD 60 Bn निवेश वाला "चायना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडॉर (CPEC)" वहा के कुछ भूभाग से गुजरता है.
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पिछले दो साल से अमरिका और चीन मे ट्रेड वार (व्यवसायिक क्षेत्र का युद्ध) शुरू है. दोनों देश एक दूसरे के देश से आयात हुए वस्तुओ पर लगा कर बढ़ाने मे लगे थे. 

पिछ्ले आठ - दस सालो मे भारत और अमरिका के व्यापारिक और राजनयिक संबंधों मे काफी सुधार आया. कहा जाता है इस वजह से चीन मे नाराजी बढ़ी. 
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कुछ दिनों पहले अमरिका मे एक अश्वेत नागरिक की पुलिस के हातो हुई दुर्भाग्यपूर्ण मौत के वजह से हुई थी. इसी वजह से अमरिका मे "Black Lives Matter " नामक आंदोलन के अंतर्गत विरोध प्रदर्शन शुरू है. विरोध प्रदर्शन के नाम आगजनी, लूटपाट और दंगे हुए. 
अमरिका के बाद ये प्रदर्शन कई बड़े देशों, जैसे फ्रांस, ब्रिटेन, हॉलंड मे भी जा पहुचा. अमरिका मे यह आंदोलन एंटीफा (Antifa) माने एंटीफासिस्ट (Anti Fascit) इस लेफ्ट विचारधारा के संघटन चला रही है. इसका कोई एक नेता नहीं होता. ये छोटे छोटे गुटों मे रह कर काम करते. सामान्य लोगों को भडकाने और फिर उन्हें रस्तों पर उतरने की लिए उकसाने का काम करती है. इनकी कार्यपद्धती "हिट अँड रन " जैसी होती है. कहते है इनकी विचारधारा कम्युनिस्ट यानी लेफ्ट होने के वजह से, चीन के तरफ से इन्हें काफी मदत मिलती है. 

अमरिका मे हो रहे Black Lives Matter आंदोलन से प्रेरित होकर हर देश में कार्यरत एंटीफा के गुट अपने अपने देशों मे अराजकता का माहौल बनाने के लिए जुटने लगे है.
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भारत मे पिछ्ले दिसंबर से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जो माहौल बनाया गया था उसे इस आंदोलन का समर्थन देने की कोशिश की जा रही है.
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श्रीलंका जो भारत का एक और पड़ोसी है, हिंदमहासागर मे भारतीय प्रभुत्व को नकारने के लिए चीन से नजदीकियां बढ़ाता रहा है. चीन का एक और महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल (String of Pearl's)" है जिसके जरिए चीन हिंद महासागर मे अपनी सामरिक शक्ति का प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है. स्ट्रिंग ऑफ पर्ल ये चीन के "वन बेल्ट वन रोड (OBOR)" जिसे अब, "द बेल्ट अँड रोड इनीशीएटीव (The Belt and Road Initiative)" इस महा महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट का एक भाग है. OBOR के अंतर्गत चीन सत्तर देशों को जोड़ना चाहता है. 

श्रीलंका इस प्रोजेक्ट मे अहम भूमिका अदा कर रहा है. दो साल पहले तत्कालीन श्रीलंका सरकार ने, उनका प्रसिद्ध हंबणतोटा बंदर (पोर्ट) और करीबन पन्द्रह हजार एकर जमीन चीन को 99 सालों के लिए लीज पर दे दिया. हंबणतोटा बंदर भारतीय सीमा से महज देढ़सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. 
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पूर्वोत्तर राज्यों के अलगाव वादी गुट कई बार सीमा पार कर बांग्लादेश और म्यांमार के भाग मे शरण ले लेते है. हालांकि पिछ्ले साल भारत और म्यांमार की साझा कारवाई के अंतर्गत कई अलगाववादियों को मार गिराया. बांग्लादेश और म्यांमार की सीमाओं से रोहींग्या शरणार्थियों का अवैध रूप से भारत मे घुसने की कोशिश अमूमन होती रही है. बांग्लादेश मे हूजी जैसे कुछ जिहादी गुटों (जो भारत विरोधी गतिविधिया करते है) को शरण प्राप्त है. चीन की बांग्लादेश और म्यांमार से दोस्ती छुपी नहीं है. 
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भारत के अनेक राज्यों मे, विशेष रूप से उड़ीसा, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगड, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना मे आज भी कई माओवादी संघटन मौजूद है, अपनी दहशती गतिविधियों से प्रशासन, पुलिस और सैन्य बल को लक्ष्य करते है. आगजनी, लूटपाट, गोलीबारी जैसी आतंकवादी हरकतों को अंजाम देते हैं. इनके पास अत्याधुनिक हथियारों की कमी नहीं होती.
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पिछ्ले साल दिल्ली और एनसीआर प्रदेश मे काफी आंदोलन किए गए. इनमे विशेष रूप से उभरकर आते है छात्र आंदोलन, विशेषकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से जुड़े छात्रों का. चार साल पहले इसी विश्वविद्यालय मे 9 फरवरी 2016 को आतंकवादी अफजल गुरु की बरसी मनाई गई. मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर  "घर घर से अफजल निकलेगा" से लेकर "भारत तेरे तुकडे होंगे" जैसे भारत विरोधी नारे दिए गए. इस आंदोलन मे जुड़े छात्रों पर अब जाकर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है.
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पिछ्ली दिसंबर मे भारतीय सरकारने नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act, CAA) बनाया. यह एक एतिहासिक कानून है जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, और बांग्लादेश मे धर्म के नाम पर प्रताड़ित वहा के अल्पसंख्यक नागरिको को, अगर वे भारत आते है तो उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएंगी. लेकिन कुछ, तथाकथित मानवाधिकार और सामाजिक संघटनांओने  (NGO) ने छात्रों और एक विशेष समुदाय को अपने साथ लेकर, उनको भ्रमित कर, भडका कर आंदोलन, आगजनी, दंगे करने के लिए  प्रोत्साहित किया. उन्हें लगने वाली सभी सुविधाए, पैसा मुहैया कराए गए. राजनेताओ को पीछे छोड़ कर इस आंदोलन मे कई उल्लेखनीय (पत्रकार, लेखक, खिलाड़ी, कलाकार) व्यक्तियों ने ईन आंदोलनकारीयों का बढ़चढकर साथ दिया. उन्हें "कागज नहीं दिखाएंगे" ये बोलने के लिए प्रोत्साहित किया. कई विशिष्ट व्यक्ती इस आंदोलन मे शामिल भी हुए थे.
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कोरोना वैश्विक महामारी के चलते भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है. स्वावलंबी भारत के लिए जरूरी है हम ज्यादा से ज्यादा वस्तुओं का निर्माण भारत मे ही करे. उनकी निर्यात जितनी कम कर सकते है उतनी कम. विशेषकर चीन से आने वाले वस्तुओं की निर्यात कम से कम हो इसके लिए जनजागृती शुरू हो गई है. इस वजह से भी चीन बौखलाहट मे है. 

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अगर आप गौर से देखे तो उपरोक्त  सभी मामलों मे चीन की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में भूमिका है. ये भूमिका भारत के खिलाफ है. भारत की सम्प्रभुता के खिलाफ है. भारतीय सरकार, भारतीय सेना, और भारतीय पुलिसबल इनसे निपटने के लिए पूरी तरह से सक्षम है. उन्हें अधिकार है. इच्छाशक्ति भी है. सो यह आशा है कि ये सारे विवाद समय-समय पर निरसित किए जाएंगे. 

लेकिन एक विवाद जो आज देश मे फलफूल रहा है वो, है अर्बन नक्षली (Urban Naxals) का. बिहड / जंगलों में छुपे हुए माओवादी नक्सली शायद एक बार खोज भी निकाले जा सकते है, क्योंकि ज्यादातर ये सामान्य नागरिको से, शहरो से दूर रहते है.

लेकिन, इनकी पैरवी करने वाले, इनको साधन सामुग्री पहुचानेवाले, इनकी देश विघातक विचारधारा को आगे लेकर जाने का प्रयास करने वाले कई संघटन शहरी भागों मे कार्यरत हैं. और बढ़ रहे है. युवापीढ़ी को  "आजादी" या "काग़ज़ नहीं दिखाएंगे" जैसी भ्रामक घोषणा देने पर बाध्य करते है. हो सकता है इनमे से कोई शायद आपका पड़ोसी हो! 

अर्बन नक्सली या लेफ्ट लिबरल या उनके पैरवीगारों की संख्या दिनबदिन बढ़ रही है. इनमे मीडिया, पत्रकार, कलाकार, लेखक, खिलाड़ी, पूर्व प्रशासकीय अधिकारी, कानून जाननेवाले लोग शामिल है.

युवापीढ़ी को, विशेषकर जिन्हें हम, जनरेशन नेक्स्ट (1990 के बाद जन्मे हुए नागरिक) कहते है, उनको ये अर्बन नक्सली अपनी चपेट मे लेते है. मानवाधिकार, समानता, धर्मनिरपेक्षता, पर्यावरण जैसे विषयों का ईस्तेमाल कर ये लोग युवा पीढ़ी को अपने पास खींचते है, आकर्षित करते हैं. फिर अपनी लोकप्रियता या रसूख से उन्हें प्रभावित करते है, भ्रमित करते है. देशविरोधी ताकतो और संगठनों के लिए एक तरह का भर्ती अभियान (recruitment) चलाते है. 

कैसे हो रहा है? 
आजकल की युवा पीढ़ी इन्टरनेट पर काफी निर्भर है. सोशल मीडिया, ब्लॉग्स, यूट्यूब वीडियो इनके जरिए अर्बन नक्सली युवा पीढ़ी के पास पहुच जाते है. उनके दिमाग मे जगह बनाते है. देश के इतिहास के बारे बार-बार उन्हें गलत जानकारी देकर , सरकारविरोधी मुद्दो पर चर्चा थोप कर उन्हें ये लोग राष्ट्रविरोधी विचारधारा मे शामिल करते है. "कुछ नया करते है" इस उत्साह कुछ युवा भी इसमे शामिल होते है, लेकिन कई युवाओं को पता चलने से पहले ही वे जाने-अनजाने मे राष्ट्रविरोधी गतिविधियों मे शामिल हो जाते है. पकड़े जाते हैं. जीवन भर के लिए मुसीबत में आ जाते हैं. 

पिछ्ली दिसंबर मे दिल्ली मे CAA के विरोध मे जो आंदोलन हुए, और उसके बाद जो दंगे हुए उसे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) नामक एक संस्था से साधन-सामग्री मिली ऐसा प्राथमिक जांच पड़ताल में पाया गया है. PFI का संबंध एक प्रतिबंधित संघटन से बताया जाता है. 

ऐसा लगता है अब सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व मे कम्युनिस्ट और जिहादी शक्तियों का मिलाप हो गया है. नया खतरा पैदा हो गया है. लेफ्ट लिबरल नाम की इकोसिस्टम अब तयार हो चुकी है. इसमे सभी तरह के लोग जुड़े है - मीडिया, न्यायिक प्रक्रिया जानने वाले, लेखक, कलाकार, और अनेक प्रकार के. 

कम्युनिस्ट होना अपनी बात है. विचारधारा होना एक बात है. लोकतंत्र है. सभी को अधिकार है. लेकिन राष्ट्र द्रोह को बढावा देने वाली हरकते लोकतंत्र मे कदापि नहीं आती है. 


सो, जहां एक ओर भारतीय सेना, सरकारे और पुलिसदल, सीमा पार जिहादी आतंकवादियों का और देसी नक्सलियों का खात्मा करने के लिए कटिबद्ध है, वही दूसरी ओर, हमे, सामान्य नागरिको को अर्बन नक्सलियों से वैचारिक स्तर पर लड़ना है. जितनी हो सके वैचारिक बहस कर उन्हें राष्ट्रनिर्माण मे योगदान देने के लिए प्रेरित करना होगा. जो युवा इन अर्बन नक्सलियों के भ्रमजाल मे फंस गए है उन्हें सही उपबोधन (counseling) कर के समाज के मुख्यधारा मे वापिस लाना होंगा. 

इसके लिए उन्हें राष्ट्र की परिभाषा, हमारा इतिहास और संस्कृति, और हमारे संस्कार (वैल्यू सिस्टम) इनके बारे में सही और विश्वसनीय जानकारी  देनी होंगी.टेक्नोलॉजी और सायकॉलॉजी का उपयोग कर इन्हें आश्वासित करना होंगा की ये देश के प्रगति मे काफी अच्छा योगदान दे सकते है. उनकी जरूरत है. 

सभी नवयुवाओं और युवाओं के अभिभावकोंने (गार्डियन, जैसे माता पिता, दोस्त या बड़े भाई बहन)  अपनी युवापीढ़ी के साथ संवाद रखने की जरूरत है. राष्ट्र के बारे में उनकी संकल्पना, राष्ट्र का इतिहास, राष्ट्रहित, अपने देश के बारे मे उनके विचार, सरकारों या सेनाओं के तरफ उनका रुख, किसी व्यक्तीविशेष या संघटन से घृणा या अनुकंपा (सहानुभूति) और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होनेवाली राजनैतिक घटनाओ पर उनका रुख जानना बेहद जरूरी है. विशेषकर शुरुआती उपरोक्त विषयों पर उनके विचार और राय जानना जरूरी है. आजकी युवापीढ़ी को काफी जानकारी होती है. सो  "इन्हें कुछ पता नहीं, ये सब बाते जानने की अभी इनकी उमर नहीं है" इस मुगालते मे मत रहिए. 

अगर उनके विचार गलत है, विरुद्ध दिशा मे है तो उनका उचित उपबोधन करवाना चाहिए. जरूरी नहीं कि आपके या उनके विचार और सरकार के विचार हमेशा एक दूसरे से मिले. विचारधारा अलग हो सकती है, जनतंत्र मे सब मुमकिन है. मतभेद हो सकते है. जरूरी है जनतंत्र के स्वास्थ्य के लिए. लेकिन राष्ट्र की संकल्पना, इतिहास और संस्कृति और संस्कारों पर दो विचार होना शायद सही नहीं है. यहा पर मजहब / धर्म या जाति का कोई विषय नहीं है. राष्ट्र मे सब समान होते है. 

अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य
अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य सभी को है. उसका उचित उपयोग भी होना चाहिए. लेकिन अभिव्यक्ति स्वतन्त्रता के नाम पर हिंसा, दंगे, आगजनी, हत्या कदापि उचित नहीं. किसीकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना ये भी सहीं नहीं.

कम्युनिझम का लाल रंग हमारे देश को बाहर से घेर रहा है, और देश मे भी नक्सलियों और अर्बन नक्सलियों के जरिए राष्ट्र की सम्प्रभुता को धमकी दे रहा है, चेता रहा है.
समय रहते उन देश विघातक शक्तियों को पहचाने, लाल रंग को भारत मे और फैलने से रोके. भारत की युवा पीढ़ी बर्बाद करने से रोके. अमली पदार्थों के सेवन से भी इस विचारधारा का प्रभाव और असर गहरा होता है. 

जब युवा पीढ़ी के रूप कि रसद बंद हो जाएगी तो, उनके तथाकथित आका, या, प्रभाव डालनेवाले लेखक, मीडिया, कलाकार, खिलाड़ी, पत्रकार इत्यादी लोग अपनी सप्लाय लाइन बंद होने पर शायद अपनी हरकतों से बाज आए. युवा पीढ़ी पर इनका प्रभाव अगर रातोरात नहीं था, तो इनका पतन भी एकाएक नही होने वाला. उसके लिए हमे निरंतर प्रयत्नशील रहना होंगा. नए नौजवानों को इस कार्य के लिए प्रेरित करना होगा. ये लाल रंग फिका करना होगा. वर्ना सभी पर "ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा" कहने की स्थिति निर्माण होगी.

आखिर मे.. 
जनजागृती की शुरुआत, और राष्ट्र विघातक शक्तियों को जानने की शुरुआत हमे हमसे ही करनी होंगी. 

"हमारे पीछे कोई आए ना आए
हमें ही तो पहले पहुचना वहाँ है.. 
जिन पर हैं चलना नई पीढ़ीयों को
उन ही रास्तों को बनाना हमें हैं.. 
जो भी साथ आये उन्हें साथ ले ले
अगर ना कोई साथ दे तो अकेले
सुलगा के खुद को मिटा ले अँधेरा, 
दिशा जिस से पहचाने संसार सारा
हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा
जब भी खुलेगी चमकेगा तारा".
(उपरोक्त पंक्तिया फिल्म प्रहार, दरfफाइनल अटैक (1991) से साभार. रचना श्री मंगेश कुलकर्णी ) 
शुभम भवतु!
धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई

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