Skip to main content

ढब्बूजी फिर याद आते हैं..

२३ अप्रैल २०२१ , मुंबई
आज विश्व पुस्तक दिन (International Book Day)  है. बचपन से आज तक हमने हजारो किताबे पढ़ी है. पढ़ाई, नॉलेज, कथा, कादंबरी, धार्मिक, कॉमिक्स, ग्रंथ, रहस्मय, इत्यादि..
 
पुस्तक से मुझे याद आते है कई दुकाने, और हर बार उन दुकानों मे जाते वक्त का उत्साह - कुछ नया लेने का उत्साह. बडनेरा और अमरावती की कई दुकाने और जगहे आज भी याद है. बडनेरा की लाइब्रेरी, रेल्वे स्टेशन का बूक स्टॉल और दुल्हानी स्टोर्स. अमरावती मे राजकमल चौक का नवयुग, लाठिया बुक स्टोर्स. शारदा मंदिर के पास भी एक दुकान थी. और रेल्वे स्टेशन के पास का सरस्वती बुक स्टोर्स. कौन भूल सकता है अमरावती बस डेपो का बूक स्टॉल जहा से मैं अक्सर क्रिकेट की किताबे शटकार, स्पोर्ट्सवर्ल्ड और क्रिकेट सम्राट लिया करता थाहालांकि बाद मे Business World, Business India जैसी किताबे खरीदता था
 
कॉमिक्स के लिए तो बडनेरा का रेल्वे स्टेशन बूक स्टॉल हमारा अड्डा था. चंपक, टिंकल, मधुमुस्कान, लोटपोट, अमर चित्र कथा, चाचा चौधरी, पिंकी, बिल्लू, फ़ौलादी सिंग, बहादुर, इन्द्रजाल कॉमिक्स (बहादुर ,मैनड्रैक, फैंटम) से लेकर पराग, चंपक, नंदन और बाद मे पॉकेटबुक्स जैसे, राजन-इकबाल लाया करते थे. कभी कभी साथ मे मायापुरी, धर्मयुग भी जाया करती थी.
 
हालांकि कुछ किताबे जैसे मराठी चांदोबा हमारे पेपर वाले काका हर महीने लाकर दिया करते थेइनके अलावा बड़े भाई साहब Frontline, Illustrated Weekly जैसे अंग्रेजी मॅगझिन भी लाया करते थे. पढ़ने के अलावा, उन किताबों से पन्ने ये मेरी पढ़ाई की किताबों के लिए अच्छे कवर भी बन जाती थी. Sports Star मे हर बार एक सेंटर पेज हुआ करता था. मैं इन्हें मेरे वर्गमित्रों को दिखाया करता था

ये तो खरीद के लीं हुई किताबे थी. बडनेरा मे हम हर हफ्ते लायब्ररी जाया करते थे जहा से धर्मयुग, सरिता, और बड़ी कथा कादंबरी (मराठी - पानिपत, स्वामी, राऊ, छावा, युगंधर, शहनशाह, जैसे ऐतिहासिक कादंबरी) पढ़ने के लिए लाया करते थेउसके पड़ोस मे ही पंड्या भाई अपनी एक और लाइब्रेरी चलाते थे, जहा ज्यादातर हिन्दी कॉमिक्स, पॉकेट बुक्स, उपन्यास मिलते (वेदप्रकाश शर्मा) थे. किताबों का लेन देन भी हुआ करता था. बडनेरा मे रहते हुए मैंने एक दो साल लाइब्रेरी भी चलाई थी -कॉमिक्स और पॉकेट बुक्स की

इन सभी के साथ एक दुकान का जिक्र करना जरूरी है. गजानन बुक डेपो, ये अंबादेवी मंदिर के पास था. यहा पर पुरानी किताबे मिलती थी पढ़ाई की. गाइड और दूसरी किताबे. इस दुकान का भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है

किताब की बात आई तो स्टेशनरी ही जाती है. सभी किताबों की दुकानों मे पेन, पेन्सिल मिलते थे लेकिन जो बात बडनेरा के दुल्हानि स्टोर्स, अमरावती रेल्वे स्टेशन के पीछे डेल्टा पेन हाउस, और बस स्टँड रोड पर स्थित आनंद पेन हाउस मे थी वो कहीं नहीं थी. ये मुझे हमेशा बुलाते रहते थे. हालांकि मणिबाई गुजराती हाई स्कूल के पास के कल्पेश स्टेशनरी ने टेढ़े वक्त काफी मदत की थी.
 
मुंबई मे आकर कुछ सालो तक साहित्यिक किताबों से संपर्क कम हुआ. लेकिन फिर 2005 के बाद फिर किताबे (मराठी, ऐतिहासिक, कादंबरी) लाना शुरू हुई, खासकर बोरिवली पश्चिम स्थित "शब्द" इस किताबों की दुकान से. हालांकि बीच में किताबे ली जाती थी लेकिन वो सब बिजनेस, finance या करंट अफेयर्स वाली मॅगझिन होती थी. उस दौरान ऑडियो कॅसेट का ज्यादा चलन था

ढब्बूजी...
ढब्बू जी धर्मयुग पत्रिका के लिए आबिद सुरती जी ने आम आदमी को चित्रित करती हुई एक कार्टून स्ट्रिप बनायीं थी, जो प्रसिद्ध पत्रिका का एक लोकप्रिय अंग बन गया थ. छोटी कद-काठी के और ऊपर से लेकर नीचे तक काले लबादे में ढंके ढब्बूजी ने अपने व्यंग और कटाक्ष से पाठको का दिल जीत लिया था. "ढब्बूजी की वेशभूषा आबिद सुरती साहब ने अपने वकील पिता से ली थी और ढब्बूजी का आगमन एक गुजराती अख़बार / पत्रिका से हुआ था.
 
ढब्बूजी धर्मयुग में कैसे आये इसके पीछे भी एक रोचक वाकया है, दरअसल, धर्मयुग के संपादक धर्मवीर भारती उस समय एक जाने-माने कार्टूनिस्ट की रचना अपनी पत्रिका में प्रकाशित करने की सोच रहे थे जिसमे कुछ हफ़्तों की देरी थी जिसे भरने के लिए उन्होंने आबिद साहब को उन कुछ हफ़्तों के लिए कुछ बनाने को कहा. इस एकदम से मिली पेशकश के चलते आबिद साहब को कुछ और नहीं सूझा तो उन्होंने अपने पुराने चरित्र को एक नया नाम ढब्बूजी देकर 'धर्मयुग' में छपवाना शुरू कर दिया और जो चरित्र सिर्फ कुछ हफ़्तों के लिए फ़िलर की तरह इस्तेमाल होना उसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी की वो पत्रिका का एक नियमित फीचर बन गया (https://m.bharatdiscovery.org/india/).

चलते चलते ..
आज फिर घर मे कॉमिक्स आती है -हिंदी और अंग्रेजी मे, Tinkle, इत्यादी. कहते है क़िताब की उम्र नहीं होती. उनसे मिली हुई शिक्षा, अनुभव और विश्वास जीवन भर काम मे आता है.किताबों के साथ किताब पढ़ने वाले दोस्त, और किताब बेचने / देने / लाने वाले सभी याद आते है. हमारे ढब्बू जी फिर खूब याद आते हैं

सम्पूरण सिंह कालरा उर्फ़ "गुलज़ार" साहब  की "किताबे" इस कविता की कुछ पंक्तिया -
"किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से,
बड़ी हसरत से तकती हैं.
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं,
जो शामें इन की सोहबत में कटा करती थीं.
अब अक्सर .......
गुज़र जाती हैं 'कम्प्यूटर' के पदों पर.
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें ....
इन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
बड़ी हसरत से तकती हैं,

कभी सीने पे रख के लेट जाते थे,
कभी गोदी में लेते थे,
किताबें माँगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे,
उनका क्या होगा ?
वो शायद अब नहीं होंगे !"
 
किताबो को लेकर आपकी की क्या यादे है ?

- धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है.)

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

TrendSpotting : New and Rising - Pickleball

20 November 2022, Mumbai Let’s have a ball, Pickleball! A school friend of mine recently got transferred from Kolkata to Mumbai. Being a fitness-oriented person, he asked me if there are any good recreation (sports) facilities nearby. Knowing that he got an apartment in the heart of Vile Parle East, I was quick to recommend Prabodhankar Thackeray Krida Sankul (PTKS) – an obvious choice for anyone living in the western suburbs to relax, unwind, train and play!   While he was thrilled to see the Olympic size swimming pool, he got curious about a game that a group of boys were playing in the open area. While the game looked like lawn tennis, but it was not. It appeared to be an easy yet fitness-oriented game to him. When I told him that it is called “ Pickleball” he was like I was kidding! It was natural, A commoner may be amused to hear “Pickleball” being name of a sport! Well, that it is true.   I then took up the opportunity to introduce him to some trainers of the...

उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची!

23 एप्रिल 23, मुंबई  उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची! पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत केंद्र सरकारने अमरावतीमध्ये 'मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाईल पार्क' घोषित केला आहे. देशात सात शहरांत अशाप्रकारचे पार्क होणार असून यामध्ये अमरावतीचा समावेश आहे. अमरावतीसह गुजरात, मध्य प्रदेश, तामिळनाडू, तेलंगण, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश याठिकाणी पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहे. पहिल्या टप्प्यात सातही प्रकल्पांसाठी चार हजार कोटीची गुंतवणूक होणार आहे. अमरावतीच्या प्रकल्पात १० हजार कोटींची गुंतवणूक होणार आहे. नांदगाव पेठ औद्योगीक वसाहतीजवळील पिंपळविहीर येथे सदर प्रकल्प होणार आहे, जवळपास ३ लाख लोकांना रोजगार त्‍यातून मिळणार आहे.    ‘पाच एफ’ अर्थात ‘फार्म टू फायबर टू फॅक्टरी टू फॅशन टू फॉरेन’ याअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहेत. सदर प्रकल्पासाठी केंद्र सरकार ७०० कोटी खर्च करणार असून या पार्कचे मार्केटिंग केंद्र सरकार राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय स्तरावर करणार आहे. यातूनच अनेक मोठे राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय ब्रँड अमरावतीला येणार असल्याची माहिती आहे. ...

राजकीय आरसा - श्री देवेंद्र फडणवीस

21 जुलै 2022, मुंबई राजकीय आरसा – श्री देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस काल सर्वोच्च न्यायालयाने ओबीसी आरक्षणाचा मुद्द्यावर निर्णायक बाजू घेऊन त्यांचे राजकिय आरक्षण बहाल केले. गेले अडीच-तीन वर्ष फोफावलेल्या अनिश्चिततेला पूर्णविराम मिळेल असे दिसतेय. मागच्या जुलै मध्ये तत्कालीन विरोधीपक्षनेते आणि माजी मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फडणवीस यांनी सदनात घोषणा केली होती की त्यांचे सरकार आले तर तीन ते चार महिन्यात हे आरक्षण बहाल करण्यात येईल असे प्रयत्न करू. काळाची किमया बघा, आज ते उपमुख्यमंत्री आहेत आणि हा निर्णय आला. पदग्रहण केल्यापासून दोन-तीन आठवड्यात त्यांनी या विषयी निर्णायक हालचाली केल्या असे म्हंटले जाते. असो, राज्यात राजकिय स्थैर्यासाठी हे होणे आवश्यक होते. तसे बघितले गेले तर, राज्यात स्थैर्य येईल असे दर्शवणारी गेल्या चार आठवड्यात घडलेली ही एकमेव घटना नाही. याची नांदी जून मध्ये घडलेल्या राज्यसभा निवडणुकीत लागली होती. भाजपचे श्री धनंजय महाडिक यांनी भाजप आणि मित्र पक्षांकडे संख्याबळ नसतांना अटीतटीच्या लढतीत तिसरी जागा जिंकली. त्या वेळेस महाविकास आघाडीच्या तीन मतांवर आक्षेप आला होता, त्यातील...