Skip to main content

जमीर जिंदा रखिए...

२२ अप्रैल २०२१, मुंबई
जमीर जिंदा रखिए...
पिछले एक वर्ष से देश कोरोना महामारी से जुझ रहा है. करीबन डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग इस महामारी के चपेट में आए, जिसमें से एक करोड़ पैंतीस लाख मरीज़ स्वस्थ होकर घर लौटे, करीबन एक लाख तिरासी हजार मृत हुए. अकेले महाराष्ट्र मे 39 लाख साठ हजार मरीज़ पाए गए, जिनमे से 61,900 मरीजों की मृत्यु हुई. देश मे हर जगह टीकाकरण / वैक्सीनेशन शुरू है, लगभग 11 करोड़ टीके लग भी चुके हैं, लेकिन उस पर भी टीका, राजनीति हो रही है.

राज्य की हालत गंभीर.. 

महाराष्ट्र मे हालात गंभीर बनते जा रहे हैं. गौरतलब है कि, जनवरी महीने के अंत से राज्य के अमरावती जिले मे कोरोना के मरीज़ अचानक से बढ़ने लगे, कुछ का कहना था कि यह बढ़त किसी यूरोपीय देश से यात्रा कर आए लोगों के आने के बाद से हुई. इस पर कोई ठोस सबूत नहीं है, लेकिन आकड़े बढ़ते गए, रोजाना 100 से ये आकड़ा फरवरी के अंत तक रोजाना 900 मरीजों तक पहुचा. अमरावती बहुत बडा जिला नहीं है, सो उस मायने मे यह एक तरह का विस्फोट ही था.

मरीजों की संख्या जब इतनी बढ़ रही थी तो राज्य की व्यवस्था क्या कर रही थी? प्रशासन, आरोग्य विभाग, राज्य सरकार, और प्रसार माध्यम
शायद ये सभी वक़्त राज्य मे दूसरी घटनाओ पर ज्यादा ध्यान देने मे व्यस्त थे. अगर आप याद करेंगे तो उस समय मेनलाइन मीडिया दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन दिखाने मे व्यस्त थी. राज्य के ज्यादातर पत्रकार भी इसी विषय को चलाने में लगे थे, नैरेटीव  बनाने मे जुटे थे. जबकि महाराष्ट्र ने कृषि कानून लागू करने के लिए ऑर्डींनंस भी पास किया था, ये बात अलग है कि फिर उसे वापिस ले लिया गया. खैर.

त्रिकोण ही सही है.. 

कहते हैं मीडिया लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तम्भ है. लेकिन मैं नहीं मानता के हमे चौथे स्तंभ की जरूरत है

विधानपालिका यानी संसद, कार्यपालिका यानी सरकार, न्यायपालिका यानी अदालत ये हमारे लोकतंत्र के तीन स्तंभ है. इन तीनों स्तम्भों का आपस में तालमेल, ये तीनों स्तंभ अपनेआप करते थे, और आगे भी करे. इसमे चौथे स्तम्भ को लाकर इनके बीच के त्रिकोण को चौकोन बनाने की क्या जरूरतये जो गलत भ्रम फैलाया गया है कि मीडिया चौथा स्तंभ होना चाहिए, या फिर ये चौथा स्तंभ है, ये पूरा एक नया शक्ति केंद्र (पॉवर सेंटर) बनाने के लिए हुआ है

याद कीजिए 2007 का समय जब मीडिया के कुछ लोग सरकार बनाने या गिराने का रौब दिखाते थेसरकार मे कौन मंत्री बनेगा, किसको कौनसा खाता मिलेगा (राडिया टेप कांड). इतना ही नहीं, अगर आप थोड़ा पीछे जाए मे तो आपके ध्यान मे आएगा की कैसे कुछ पत्रकार करगिल युद्द मे संवेदनशील जगहों पर सैटलाइट फोन अपने साथ रखकर रिपोर्टिंग करने मे मशगूल थे. कहते हैं उनकी इस रिपोर्टिंग से दुश्मन को कई संवेदनशील जानकारियाँ मिलती थी और वो अपना हमला प्लान करते थे. इतना ही नहीं, इसी दौरान जब हमारी सेना आतंकवादी और पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने मे लगी थी, दूसरी तरफ एक भारतीय रिपोर्टर ने हिज्बुल मुजाहिदीन के सरगना सैय्यद सलाहुद्दीन का उसके टेंट में जाकर इंटरव्यू किया था.

२००८ ने मुंबई हमले के दौरान भी कई पत्रकारों की भूमिका हमारी सेना के लिए लाभकारी नहीं थी  जब यह हमला शुरू था तो नई दिल्ली स्थित एक न्यूज़ चैनल पर एक मंत्री ने हमले को मालेगाव ब्लास्ट के साथ जोड़ने की कोशिश की. न्यूज़ एंकर ने उन्हें , "आप यह क्यों और केस कह सकते है" यह नहीं पूछाशायद पूछने  की हिम्मत ही नहीं हुई  होगी.

गुजरात मे रखी गई नीव.. 

27 फरवरी 2002 को तो जैसे भारतीय पत्रकारिता में भूचाल गया. 27 फरवरी की सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच से आग की लपटें उठने लगीं और धुएं का गुबार निकलने लगा. साबरमती ट्रेन के S-6 कोच के अंदर भीषण आग लगी थी. जिससे कोच में मौजूद यात्री उसकी चपेट में गए. इनमें से ज्यादातर वो कारसेवक थे, जो श्रीराम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. आग से झुलसकर 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इस खबर को बहुत ज्यादा कवरेज नहीं मिला. किसीने ज्यादा सवाल नहीं किए.

लेकिन, इसके बाद गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे हुए, जिसमें हज़ारों लोगों की जाने गई, दोनों तरफ के लोगों की. लेकिन सेलिब्रिटी पत्रकार गुट तो इसे सिर्फ एक तरीके से पेश करने मे मशगूल थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद मोदी इन दंगों को रोकने के लिए उत्सुक नहीं थे ऐसा आभासी चित्र निर्माण किया गया. रोष इतना बढ़ा की ईन मीडिया कवरेज और कुछ उदारमतवादी वामपंथियों के पत्र पर अमरिका ने मोदीजी को  वीजा देने से मना कर दिया. वही से शुरुआत हुई मोदी द्वेष की. अगर सीधे सीधे हिंदू द्वेष नहीं दिखा सकते तो मोदी द्वेष करो इस लाइन पर ये चल पडे.

खेल शुरु हुआ नैरेटीव सेट करने का.. 

इसके बाद 2007 के चुनावों में मोदीजी की जीत ना हुए इसके लिए नए-नए नैरेटीव बनाए गए. इसमे एक था श्रीमती सोनिया गांधी का "मौत का सौदागर" वाला भाषण. सेलेब्रिटी मीडिया ने इसे खूब चलाया, लेकिन मतदाता होशियार था, उन्होंने मोदी जी पुनः चुन के लाया. बावजूद इसके, मीडिया के उस गुट का द्वेष कम नहीं हुआ, उल्टा गरूर और गलत खबर फैलाने की कोशिशे बढ़ती गई.
 
2004 के लोकसभा चुनाव मे भाजपा की हार हुई थी, जोकि अपनेआप मे संशोधन का विषय है. शायद उसके बाद से मीडिया के कुछ लोगों का हौसला बढ़ गया, और उन्हें कहीं लगने लगा के वे नोएडा/ दिल्ली के स्टूडियो में बैठ के नैरेटीव (परिवेश / स्थिति का संकलन) बना सकते हैं, और जनमत मोबिलाइज कर सकते हैं. 2009 के लोकसभा चुनावों मे ये ओपिनियन (जनमत मोबिलाइजेशन) ज्यादा देखने को मिला. एक तरफ देश की जनता UPA के कार्यपद्धती से खुश नहीं थी, बावजूद इसके टीव्ही चैनल्स ने कथा-किंवदन्ती फैलाकर नैरेटीव बनाया, और जनमत UPA के तरफ़ झुका, UPA की सरकार बनी.

तब से आज तक, मीडिया के कुछ लोग सदैव नकारात्मक नैरेटीव बनाने मे जुटे हैं. देश मे हो रहा विकास, किसानो के आय में हुई जोरदार वृद्धि, महिलाओं का सशक्तिकरण, स्वच्छता अभियान, ट्रिपल तलाक, धारा 370 का हटाना, कृषि कानून और इन जैसे अनेक विषयों को भूलकर, हर विषय मे साम्प्रदायिकता और तुष्टीकरण लाकर, "देश के हालात नाजुक है / देश बिका जा रहा है" ऐसा माहौल बनाने की होड़ में लगे हुए हैं. आज भी.

होड़ इधर भी है.. 
महाराष्ट्र मे भी हालात कुछ अलग नही है. पिछ्ले सोलह-सत्रह महीनों से राज्य मे अनेक घटनाएँ घटीं जिनपर स्थानिक मीडिया का राज्यसरकार से करारे ढंग से सवाल-जवाब करना लाजमी था. जरूरी था. लेकिन हुआ?

तीन राजनैतिक दलों ने मौकापरस्ती की और, भाजपा को मिला हुआ जनादेश ठुकरा दिया. माना के राजनीति में कुछ असंभव नहीं है, लेकिन मीडिया का कर्तव्य बनता था सवाल करने का, की , लोकप्रिय जनादेश को कैसे ठुकरा दिया जा सकता है? खैर.

उसके बाद राज्य मे अनेक घटनाएँ घटी. पालघर मे दो साधुओं और उनके ड्राइवर की पुलिस के आँखों के सामने नृशंस रूप से हत्या हुई. इसके बाद राज्य मे कोरोना महामारी के दौरान अनेक घटनाएँ घटीं जिनमे पुलिस अधिकारियों पर हमले, कोरोना की वज़ह से की पुलिसकर्मियों की मृत्यु, पत्रकारों की मृत्यु, फिल्म कलाकार की रहस्यमय ढंग से मृत्यु, नशीले पदार्थों की बिक्री और सेवन मे फिल्म जगत के कई लोगों के शामिल होने की बात, जो न्यूजपेपर, चैनल / पत्रकार राज्य के परिस्थिति का सही वार्तांकन कर रहे थे उनके खिलाफ पुलिस मे मामले, उनको जेल में बंद करना, वगैरह. ये सब 2020 मे हुआ

लगा था 2021 आया तो राज्य के प्रसारमाध्यमों के वार्तांकन मे सकारात्मकता आएगी. लेकिन यह गलत साबित हुआ. साल के शुरुआत से दिल्ली में हो रहे किसान आंदोलन को उछालने मे स्थानीय मीडिया लगा रहा. उसके बाद एक मंत्री महोदय का इस्तीफा, फिर उद्योजक के घर के बाहर "जिलेटिन-युक्त कार" का मिलना, एक पुलिस अधिकारी का तत्कालीन गृहमंत्री पर सौ करोड़ प्रतिमाह उगाही करवाने के टार्गेट दिए जाने का खुलासा (हफ्ता वसूली), और फिर पुलिस कमिश्नर का तबादला. काफी घटनाएँ है जिसमें मीडिया निष्पक्ष रूप से वार्तांकन कर सकती थी. खोजी पत्रकारिता कर जनता के सामने सच ला सकती थी. अपनी छवि सुधारने का सुनहरा मौका था. लेकिन नहीं हो पाया

आज, अप्रैल खत्म होने को रहा है, लेकिन राज्य में कोरोना की स्थिति भयावह है, कहीं दवाई, बेड, तो कहीं ऑक्सिजन के कमी से रोजाना कई लोग तडप-तडप कर मर रहे हैं. लेकिन स्थानीय पत्रकारों को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश के हालात दिखाने और उन पर चर्चा करने मे ज्यादा रस है. मोदीजी की अकार्यक्षमता ढूँढते ढूँढते इनके जिंदगी के बीस साल बीत लेकिन अब भी बाज नहीं रहे. मैं उनका उल्लेख इसलिए कर रहा हूं कि स्थानीय मीडिया मे कई ऐसे पत्रकार है जो अपने आप को ईन राष्ट्रीय "सेलिब्रिटी पत्रकार" का स्थानीय रूप पेश करने के लिए दिनरात मेहनत कर रहे हैं

ये लोग भूल गएँ की डेढ़ साल पहले राज्य मे राजनैतिक स्थिरता थी, एक निश्चयात्मक नेतृत्व था. तब तो वे काफी हद तक सवाल जवाब किया करते थे. आज क्यों साप सूँघ गया? सरकारे आती है, जाती है. आज जिन नेताओ के बारे में झूठा प्रचार किया जा रहा है, हो सकता है कल वे वापिस जाए. फिर क्या आप अपनी "टोपी" बदलेंगे? टीकाटिप्पणी अपनी जगह, लेकिन दुश्मनी इतनी भी ना बनाए, की कल उनके सामने आपका मुह शर्म से नीचे चला जाए. याद रखिए"बहुत ग़ुरूर थाछतकोछतहोने का, एक मंज़िल और बनीछतफर्श हो गई."

भारत और मोदी द्वेष ही है इसकी जड.. 

इतना क्यों करते हो मोदी द्वेष?
कभी झाक के देखा है अपने भेष?
कहते हो लाल हरा है सब से चंगा
कब पसंद करोगे अपना तिरंगा?

राष्ट्रहित मे जो निभा रहे है अपना कर्म,

उनको सीखा रहे हो राजधर्म?
कभी याद करो अपने कर्म,
कभी जाना है राष्ट्रधर्म ?
 
नाना-दादी जापते रहे, देश का माल लूटते रहे,
कभी बंजर जमीन कहकर, तो कभी मानवाधिकार के नाम पर ये दुश्मनों को मदत करते रहे,
लेकिन जब जब दुश्मन पीटा गया, तो ये सबूत मांगते रहे..
कल बालाकोट, आज गलवान, दुश्मन हो गया परेशान..
माँभारती के सुपुत्र जीते, ये यहां रोए हैरान!!

देश सुरक्षित रखने की प्रेरणा से वहाँ खडे है जांबाज,
और देश के दुश्मनों से दोस्ती करते घूमते ये रंगबाज.

कभी चीन, कभी पाकिस्तान, क्यों लगता है इनसे इतना याराना?
भारत, भारतीयता क्या है जरूरी है इनको समझाना,
ये भूले है, इन्हें वापिस हिन्दुस्तान है ले आना.

प्रधान सेवक है वे एक सौ पैंतीस कोट के,

बना रहे है पथ सशक्त राष्ट्रनिर्माण के,
मोदीजी तो महज एक बहाना है,
इन्हें तो भारतमाता को निचा दिखाना है!!

साढ़े बारह करोड़ को बनती हैं जवाबदेही.. 
महाराष्ट्र राज्य की साढ़े बारह करोड़ जनता की ओर इनकी (प्रसार माध्यम, पत्रकार) कोई जिम्मेवारी नहीं बनती? अगर आप देश के हर अप्रिय घटना पर प्रधानमंत्री मोदी को सवाल करके भाजपा से जोड़ना चाहते हैं, तो महाराष्ट्र राज्य के हर घंटे बदतर होते हालात पर राज्य के सरकार के दो सवाल करने का भी माद्दा रखिए. आपके जिंदा होने का सबूत मिलेगा.

हर कोई हैं जिम्मेदार.. 
राज्य में पत्रकरो में चुप्पी है ,इसके लिए राज्य के मराठी पत्रकार ही जिम्मेदार हैं, ऐसा मैं नहीं मानता. क्या राज्य मे सिर्फ मराठी न्यूज चैनल और न्यूज पेपर चलते है? क्या राष्ट्रीय चैनल और न्यूज पेपर को कोई भूमिका नहीं लेना है? क्या सभी न्यूज पेपर, चैनल के मालिक मराठी है? तो सिर्फ मराठी पत्रकार कैसे जिम्मेदार? सभी जिम्मेदार है. इसमे ऑनलाइन न्यूज पोर्टल भी शामिल है. सोशल मीडिया पर व्यक्त होनेवाले पत्रकार भी शामिल है. जवाबदेही सभी की बनती है, मुझसे नहीं, जनता से. अगर जनता से नहीं तो, आपके अपने जमीर से.

आखिर क्यों
विश्व आज "लेफ्ट लिबर्टी" के चपेट में गया है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर फेक न्यूज फैलाई जा रही है. प्रसार माध्यम इनसे बचे कैसे रहते? ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ पत्रकार, मीडिया हॉउस तो इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ठेकेदार बन गए हैं
 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हे संप्रेषित(Communicate) कर सके. इस प्रकार इनमें संकेतों, अंकों, चिह्नों तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति सम्मिलित है.

असीमित नहीं है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता.. 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार बनाया गया, किन्तु 19(2) में इसे सीमित करने के आधार भी बताए गए. यानी यह बताया गया कि किन आधारों पर इस अधिकार में कटौती की जा सकती है. ये आधार थे झूठी निन्दा, मानहानि, अदालत की अवमानना या वैसी कोई बात जिससे शालीनता या नैतिकता को ठेस लगती है या जिससे राष्ट्र की सुरक्षा खतरे में पड़ती है या जो देश को तोड़ती है.

गत दो दशकों में इंटरनेट तथा सोशल मीडिया के विस्तार ने परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है. इस नई तकनीकी क्रांति के कारण जितना सही खबरों का प्रचार हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा झूठी खबरों का प्रसार हो रहा है. यानी प्रचार तथा दुष्प्रचार के बीच की खाई लगभग खत्म हो चुकी है. अनुच्छेद 19 के तहत सभी झूठे बयानों एवं समाचारों पर रोक नहीं है और ही उसके लिए दण्डात्मक कार्रवाई है.

सोशल मीडिया में कोई गेटकीपर नहीं होता है. इसलिए कोई जो चाहे वह अपलोड कर देता है. इसीलिए सन् 2000 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम बनाया गया, जिसमें 2008 में संशोधन किया गया और संशोधित कानून 2009 में लागू हुआ. गत 25 फरवरी को केन्द्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (अंतरिम दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 जारी किया. इसमें ऑनलाइन न्यूज मीडिया सहित सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए सरकार के पास कई शक्तियां हैं.
 
मुगालते मे ना रहे.. 
पहले न्यूज पेपर थे, फिर रेडियो आया, फिर टीव्ही आया. पत्रकारो को भी अपनेआप को ईन माध्यमों मे ढालना पड़ा. लेकिन फिर अचानक से न्यूज चैनल की बाढ़ आई, पत्रकार कम और एंकर ज्यादा दिखाई देने लगे. न्यूज रीडर, और एंकर अपने आप को पत्रकार समझने लगे. अजेंडा सेट करने लगे. सेटिंग करने लगे. ये सब करते करते कई पत्रकार अरबपति बन गए. क्या कोई पत्रकार, ये अरबपति कैसे बने इस पर खोज करेगा?
 
आज टीव्ही को चुनौती है डिजिटल की. इसके साथ ही, न्यूज का उपभोक्ता भी बदल रहा. उन्हें भी पारदर्शी और रफ्तार से बदलने वाले स्त्रोत पसंद है. डिजीटल मे न्यूज पोर्टल है. हम ज्यादा साल दूर नहीं जब ईनस्टूडियो एंकरिंग इतिहास बन जाएगी. एक सच्चे पत्रकार को किसी गॉडफादर की जरूरत नहीं रहेगी. वो कहीं से भी, अपने जैसे ईमानदार पत्रकारों के साथ मिलकर न्यूज पोर्टल चलाएगा, अगर उसका कंटेंट सही और सटीक होगा तो ज्यादा से ज्यादा लोग उसे अपने मोबाइल पर देखेंगे.
 
सो, चंद सेलेब्रिटी पत्रकारों को अपना रोल मॉडेल बनाकर, उनके जैसे रसूखदार होने के सपने देखने से बेहतर है कि ये अपना काम  ईमानदारी से करे. हर कोई पत्रकार नहीं बन सकता. लेकिन एक अच्छा और सच्चा पत्रकार कहीं से भी सकता है. राह डिजिटल की है, अभी से संभले!
 
चलते चलते.. 
लोकतंत्र मे न्यायपालिका, विधायक पालिका और कार्यपालिका इन्हीं का आपस में सटीक तालमेल होना जरूरी है. इन्हें किसी चौथे की जरूरत नहीं. सीधी सी बात है, जब आप त्रिकोण को चौकोन मे बदलते हो तो कोई भी दो कोण आपस से जुदा होंगे, हम क्यों करना चाहते हैं ऐसा?

हमे सिर्फ ईन तीन स्तम्भों की ही जरूरत है. जनता और प्रसार माध्यम (मीडिया) अपने-अपने तरीके से ईन तीनों स्तम्भों से आपना अपना कार्य निकाले. किसी बिचौलिए की जरूरत क्यों हो?
 
जहा कुछ राह भटके मीडियाकर्मी है , वही देश में कई ऐसे भी है जो अपने पेशे से ईमानदारी रखते है. अपने आप से ईमानदार है . 

जो भटके है उनसे मेरा कहना है की . मोदी द्वेष करते-करते भारत द्वेष/द्रोह ना हो इसका खयाल रखिए. आज देश का नेतृत्व मोदीजी के हाथों मे है. पिछले एक वर्ष के महामारी काल मे भारत को किसी देश की दहलीज पर जुते रगड़ने की नौबत नहीं आई. देश आज लगभग हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो रहा है, दवाई और वैक्सीन मे भी. इसे सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए, ना के किसी वामपंथी सोरोस के लाल चश्मे से.

माना कि पत्रकारिता का बीडा उठाते वक़्त शायद कोई शपथ नहीं ली जातीलेकिन अपने जमीर से तो गद्दारी नहीं हो सकती? किसी ने सही कहा है -
"ज़मीर ज़िंदा रख,
कबीर ज़िंदा रख,
राजा भी बन जाए तो,
दिल में फ़क़ीर ज़िंदा रख,

बहना हो तो बेशक बह जा,
मगर सागर मे मिलने की वो चाह जिन्दा रख,
मिटता हो तो आज मिट जा इंसान,
मगर मिटने के बाद भी इंसानियत जिन्दा रख."
 
- धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है.)

Comments

Popular posts from this blog

TrendSpotting : New and Rising - Pickleball

20 November 2022, Mumbai Let’s have a ball, Pickleball! A school friend of mine recently got transferred from Kolkata to Mumbai. Being a fitness-oriented person, he asked me if there are any good recreation (sports) facilities nearby. Knowing that he got an apartment in the heart of Vile Parle East, I was quick to recommend Prabodhankar Thackeray Krida Sankul (PTKS) – an obvious choice for anyone living in the western suburbs to relax, unwind, train and play!   While he was thrilled to see the Olympic size swimming pool, he got curious about a game that a group of boys were playing in the open area. While the game looked like lawn tennis, but it was not. It appeared to be an easy yet fitness-oriented game to him. When I told him that it is called “ Pickleball” he was like I was kidding! It was natural, A commoner may be amused to hear “Pickleball” being name of a sport! Well, that it is true.   I then took up the opportunity to introduce him to some trainers of the...

उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची!

23 एप्रिल 23, मुंबई  उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची! पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत केंद्र सरकारने अमरावतीमध्ये 'मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाईल पार्क' घोषित केला आहे. देशात सात शहरांत अशाप्रकारचे पार्क होणार असून यामध्ये अमरावतीचा समावेश आहे. अमरावतीसह गुजरात, मध्य प्रदेश, तामिळनाडू, तेलंगण, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश याठिकाणी पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहे. पहिल्या टप्प्यात सातही प्रकल्पांसाठी चार हजार कोटीची गुंतवणूक होणार आहे. अमरावतीच्या प्रकल्पात १० हजार कोटींची गुंतवणूक होणार आहे. नांदगाव पेठ औद्योगीक वसाहतीजवळील पिंपळविहीर येथे सदर प्रकल्प होणार आहे, जवळपास ३ लाख लोकांना रोजगार त्‍यातून मिळणार आहे.    ‘पाच एफ’ अर्थात ‘फार्म टू फायबर टू फॅक्टरी टू फॅशन टू फॉरेन’ याअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहेत. सदर प्रकल्पासाठी केंद्र सरकार ७०० कोटी खर्च करणार असून या पार्कचे मार्केटिंग केंद्र सरकार राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय स्तरावर करणार आहे. यातूनच अनेक मोठे राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय ब्रँड अमरावतीला येणार असल्याची माहिती आहे. ...

राजकीय आरसा - श्री देवेंद्र फडणवीस

21 जुलै 2022, मुंबई राजकीय आरसा – श्री देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस काल सर्वोच्च न्यायालयाने ओबीसी आरक्षणाचा मुद्द्यावर निर्णायक बाजू घेऊन त्यांचे राजकिय आरक्षण बहाल केले. गेले अडीच-तीन वर्ष फोफावलेल्या अनिश्चिततेला पूर्णविराम मिळेल असे दिसतेय. मागच्या जुलै मध्ये तत्कालीन विरोधीपक्षनेते आणि माजी मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फडणवीस यांनी सदनात घोषणा केली होती की त्यांचे सरकार आले तर तीन ते चार महिन्यात हे आरक्षण बहाल करण्यात येईल असे प्रयत्न करू. काळाची किमया बघा, आज ते उपमुख्यमंत्री आहेत आणि हा निर्णय आला. पदग्रहण केल्यापासून दोन-तीन आठवड्यात त्यांनी या विषयी निर्णायक हालचाली केल्या असे म्हंटले जाते. असो, राज्यात राजकिय स्थैर्यासाठी हे होणे आवश्यक होते. तसे बघितले गेले तर, राज्यात स्थैर्य येईल असे दर्शवणारी गेल्या चार आठवड्यात घडलेली ही एकमेव घटना नाही. याची नांदी जून मध्ये घडलेल्या राज्यसभा निवडणुकीत लागली होती. भाजपचे श्री धनंजय महाडिक यांनी भाजप आणि मित्र पक्षांकडे संख्याबळ नसतांना अटीतटीच्या लढतीत तिसरी जागा जिंकली. त्या वेळेस महाविकास आघाडीच्या तीन मतांवर आक्षेप आला होता, त्यातील...