11 अप्रैल 2021, मुंबई
यह टीका है उम्मीद का, भरोसे का
15 मार्च 2020 को भारत मे वैश्विक कोरोना महामारी आने की घोषणा हुई (जब देश मे कोरोना के 100 मरीज़ पाए गए). उसके बाद का लेखाजोखा हमने देखा, पढ़ा, अनुभव किया. नवंबर के बाद ऐसा लगा कि शायद हालात सुधर गए है.
लेकिन पिछले 2 महीनों से कोरोना विषाणू का संक्रमण जोरों से शुरू हुआ, विशेषकर महाराष्ट्र के विदर्भ से, खासकर अमरावती जिले से.पहले रोजाना 100-200 मरीज़ से लेकर आकडा 900-1000 के आसपास जाने लगा. लेकिन इसपर मीडिया मे ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. उसके बाद धीरे धीरे इसका फैलाव फिर से बढ़ने लगा, मराठवाडा, जैसे संभाजीनगर, नांदेड, और फिर मुंबई मे मरीजों की संख्या सैकड़ों से हजार और हजार से दस हजार कब हुई यह पता ही नहीं चला.
आज महाराष्ट्र फिर एक बार लॉक डाउन की कगार पर है. व्यापार, उद्योग, मजूर इन सबको ध्यान मे रखना जरूरी है, लेकिन लोगों भीड़ को नियंत्रित कैसे किया जाए इस पर ज्यादा जोर देने की आवश्यकता है.
हमे, नागरिको को बदलना जरूरी था ((और पढ़िए) - बदले भी थे, लेकिन कुछ दिनों के लिए ही. कोरोना कोई पर्यटक नहीं है जो चांद महीनों में चला जाएगा. यह विषाणू है जो हमेशा रहेगा - हमे इसके खिलाफ प्रतिकार शक्ति बढ़ानी होगी. मानसिक, आर्थिक, शारीरिक और वैद्यकीय.
हमे बदलना होगा. काम काज के तरीकों पर ध्यान देना होगा. बाहर निकले तो हमेश मास्क नाक पर लगा रखना, समय समय प़र सैनिटाईजर का ईस्तेमाल करना जैसे बेहद सरल नियमों का पालन करना ही होगा - अगर आपने टीका लगाया हो तो भी.
टीके पे चर्चा..
जब भारत में कोरोन महामारी पैर पसार रही थी तभी से, याने जून जुलाई से विश्वमे कोरोना विषाणू को रोकने वाले टीके की चर्चा शुरू हुई, काम शुरू हुआ. अमूमन किसी भी बीमारी के टीके को विकसित करने के लिए तीन से चार साल लगते है. कभी कभी इससे ज्यादा भी. लेकिन कोरोना महामारी का वैश्विक रूप, और उसके घातक परिणाम देख कर इसके विषाणू को रोकने के लिए विश्वभर के वैद्यकीय विशेषज्ञों ने काम शुरू किया, इसमे भारत के के भी विशेषज्ञ शामिल थे.
पहले तो चर्चा होने लगी कि क्या भारतीय वैद्यकीय विशेषज्ञ इस चुनौती का सामना कर पाएंगे? कईयों ने तो मान लिया था (भ्रम था या उनकी व्यवहारिक मजबूरी) और यह माहौल बनाने में लाग गए थे कि भारत को कोरोना का टीका अमरिका, रशिया, यूरोप से आयात (इम्पोर्ट) करना होगा जिसकी कीमत कई डॉलर होगी. और पूरे भारत में अगर सभी नागरिको का टीकाकरण करवाना हो तो कितने अरबों खरबों रुपए लगेंगे (बिलियंस एंड बिलियंस ऑफ डॉलर्स). देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी. वगैरह वगैरह. (यह सब "लाल " और आंदोलनजीवि गैंग का कमाल है).
ये नया भारत है..
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय वैद्यकीय विशेषज्ञों पर जो विश्वास जताया था, उसका विशेषज्ञों ने अपनी पूर्ण शक्ति लगाकर सकारात्मक जवाब दिया. परिणाम यह हुआ कि महज नौ महीनों के देश की दो कंपनीया सिरम इन्स्टिटय़ुट और भारत बायोटेक कोरोना विषाणू को रोकने वाले टीके के साथ तैयार थी. इनके साथ और भी कंपनिया है - झायडस कॅडीला, पैनेशिया, बायोलॉजिकल इ, हेटेरो, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल भी है.
बदलते सूर.
आंदोलनजीवि गँग वाले लोग अपना अलग ही माहौल बनाने के लिए मशगूल थे.
- पहले भारत मे टीका आएगा या नहीं,
- फिर टीका अमरिका से आएगा, उससे अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी,
- फिर भारतीय कंपनी का टीका कितना प्रभावी होगा,
- टीका मोदी और भाजपा का है,
- टीका लगाने का कार्यक्रम कैसे होगा,
- फिर सबका टीकाकरण करवाया जाए,
- और अब टीके की सप्लाय कम क्यों..
महाराष्ट्र की स्तिथि...
महाराष्ट्र मे भी पिछले कुछ दिनों से इस पर काफी हंगामा हो रहा है. पहले टीकाकरण की गति का विषय (अभी भी एक बडा तबका बाकी है जिन्होंने पहला टीका लेना है - फ्रंट लाइन योद्धाओ और वरिष्ठ नागरिको का), उसके बाद केंद्र सरकार का तथाकथित "महाराष्ट्रद्रोही" रवैय्या जिस वज़ह से महाराष्ट्र को टीके की सप्लाय कम दी गई, विशेष रूप से गुजरात की तुलना में. हालांकि आकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र को सबसे ज्यादा टीके की मात्रा पहुची है. लेकिन यहा अब "टीका राजनीति" हो रही है.
राज्य के बहुतांश जिलों के अस्पतालोंमें बेड, दवाई (जैसे रिमेडेसीवीर), ऑक्सिजन, आईसीयू और प्लाझमा की बेहद कमतरता है. टीका तो जरूरी है ही, लेकिन अगर राज्य मे करीब 4.75-5 लाख ऐक्टिव मरीज़ हो तो प्राथमिकता टीकाकरण की बनती है, या फिर पुराने मरीजों की संख्या कम करवाने की? मरीजों को लगने वाली व्यवस्थाओं को और बढ़ाने की? नए मरीजों की संख्या कैसे
कम हो इस बाबत ठोस कदम उठाने की? खैर.
खबरों की माने तो राज्य की वैद्यकीय संस्था हाफकिन इंस्टिट्यूट और भारत बायोटेक का समझौता हो सकता है, जिसके तहत हाफकिन इंस्टिट्यूट Covaxin टीके अपने फैक्ट्री मे "वायल मे भरकर" (only fill and finish contract) राज्य में सप्लाई करेगी.
टीके से हो गए फीके..
एक तरफ चर्चा का बाजार "टीका बनेगा या नहीं बनेगा, भारत में आएगा या नहीं आएगा, समाज सभी तबकों के लोगों को मिलेगा या नहीं मिलेगा" से भरा पाड़ा था, तब देश के वैद्यकीय वैज्ञानिक अपना-अपना काम बखूबी से कर रहे थे. भारतीय वैज्ञानिकों ने टीका बनाया भी और दुनिया को सिर्फ दिखाया ही नहीं, लगभग उसके साढ़े छह करोड़ डोस सत्तर
(70) से ज्यादा देशों मे निर्यात भी किए - जिसमें कनाडा भी है!
भारत मे 16 जनवरी
2021 से टीकाकरण शुरू हुआ. पहले वैद्यकीय क्षेत्र, फिर वरिष्ठ नागरिक और उसके बाद 45 साल से ज्यादा उम्र वाले नागरिको के लिए टीकाकरण शुरू किया गया, आज भी जारी है. कहीं मुफ्त में या तो ज्यादा से ज्यादा 250 रुपये मे टीका लगाया जा सकता है.
इसकी प्रक्रिया अत्यतं सरल और पारदर्शी है, कोविन एप्लीकेशन या वेबसाइट या टीकाकरण के जगह ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है. टीका मिलने के तुरंत बाद आपको इसका सर्टिफिकेट भी आ जाता है.
बढ़ रही है भारत में गती..
अभी तक के आकड़ों के अनुसार, अबतक विश्व मे करीब 70 (सत्तर) करोड़ डोस दिए जा चुके हैं, जिनमे से 10 करोड़ डोस भारत में दिए गए है (जिसमे मेरी भी गिनती हो चुकी है!). चीन, अमरिका के बाद भारत का नाम इस तालिका में तीसरे स्थान पर है.
- क्या यह बड़ी उपलब्धी नहीं?
- क्या यह हमारे वैद्यकिय वैज्ञानिकों और उनसे जुड़े हुए लोगों का अभिनंदन और उन पर गर्व करने की बात नहीं है?
- उनका हौसला बढ़ाकर, उनपर भरोसा बढ़ाने का मौका नहीं है?
राह में है रोड़े..
खबर आ रही है की सिरम इंस्टिट्यूट (कोवीशील्ड वैक्सीन के निर्माता) पिछले कुछ समय से अमरिका और यूरोपीय देशों से आनेवाले कच्चेमाल की कमतरता से जुझ रहा है. भारत आत्मनिर्भर होते देख, वैश्विक परिवेश पर आनेवाले समय मे ऐसी और घटनाएँ सामने आ सकती है.
दशकों से "अमन की आशा" का राग अलापने वाले भी अब नए हथकंडे आजमाने लगेंगे. कभी भारतीय टीका कोरोना को रोकने मे कैसे अपर्याप्त है, तो कभी टीके की मात्रा कम है, इस तरह की अफवाह फैला कर. लेकिन राष्ट्रप्रेमीयों ने धीठ रहना है. देश में आज निर्णायक और निश्चयात्मक नेतृत्व है. यह देश, चंद रागदरबारियों के मनचाही हरकतों से अब नहीं चलता.
उम्मीद पर दुनिया चलती है.
माना कि आज हमारे आसपास थोड़ा अंधेरा (कोरोना) है.लेकिन समय की मांग है कि हम रोशनी की छोटी से छोटी किरण को सूरज समझे. टीका लेना ये उस रोशनी के ओर जाने का एक कदम है, ऐसा मैं मानता हूं.
टीका उत्सव..
हालांकि भारत मे टीकाकरण (वैक्सीनायजेशन) जनवरी से शुरू है, लेकिन उसे गति पिछले महीने से मिली है. अब इसको गतिमान होना है. उसी दिशा में "टीका उत्सव" यह पहल है कि इस टीकाकरण कार्यक्रम को एक सामाजिक उत्सव की तरह मनाए. ज्यादा से ज्यादा लोग इसमे शामिल हो इसके लिए उन्हें सही जानकारी उपलब्ध कराए. टीके के बारे में कुछ गलतफहमी हो तो उसे दूर कराए. समाज के सभी तबकों के लोग ज्यादा से ज्यादा मात्रा मे उनके आसपास के टीकाकरण केंद्र पर पहुचे इसके लिए अपना योगदान दे.
चलते चलते..
ये तो निश्चित है की, हम सब मिलकर वैश्विक कोरोना महामारी के इस संकट को मात देंगे. बस हमे भरोसा रखना है हमारे वैज्ञानिकों और नेतृत्व पर, और उम्मीद की किरण को नजरअंदाज नहीं करना है. ये टीका है उम्मीद का. ये टीका है भरोसे का. ये टीका है निधर्मि। ये टीका है राष्ट्रनिर्माण मे अपना योगदान देनेवाले वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त करने का. इसका कोई रंग नहीं है.
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की "आशा का दीपक'" इस कविता से कुछ पंक्तिया आश्वासित करती है - "यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है
थक कर बैठ गये क्या भाई! मन्जिल दूर नहीं है
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।"
अब दवाई भी है, टीका भी है, लेकिन याद रहे, कोरोना का विषाणू अब भी हमारे आसपास ही है. जब भी जाओ बाहर, तो रखो मास्क को नाक के ऊपर, पालो सोशल डीस्टनसिंग और करो ईस्तेमाल सैनिटाईजर.
जय जवान. जय किसान. जय विज्ञान.
- धनंजय
मधुकर
देशमुख,
मुंबई
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है.)
Comments
Post a Comment