13 नवंबर 20, मुंबई
उपचुनाव की बहार..
नवंबर में बवंडर..
अक्टूबर नवंबर आते ही
हवा में रूखी
आ जाती है.
हवा सुखी हो
जाती है दुनिया
मे पश्चिमी देशों
मे, और भारत
उत्तर भारत (खासकर
जम्मू कश्मीर और
लद्दाख, हिमाचल, पंजाब,
दिल्ली, उत्तराखंड और
उत्तर प्रदेश) मे
शीत लहर चलती
है.हवा रूखी
होने से धूलिकण
बढ़ते है, हवा
जहरीली हो जाती
है. कई बार
हवा तेज चलने
के कारण बवंडर
(twister, swirl, vortex, tornado, हवा का
तुफान) भी उठते
हैं. इन बवंडरो
से कभी-कभी
भारी जान माल
का नुकसान भी
होता है. खैर, नवम्बर के शुरू होते
देश और दुनिया
मे कई बवंडर
उठे.
क्या अमरिका
बनेगा ग्रेट अगेन?
3 नवंबर
को
अमरिका
मे
राष्ट्राध्यक्ष के
लिए
चुनाव
हुए.
चार
तारीख
से
परिणाम
आने
शुरू
हुए.
आज
तेरह
तारीख
आ
गई
लेकिन
पूर्ण
रूप
से
वोटों
की
गिनती
हुई
नहीं
या
फिर
किसी
प्रत्याशी ने
हार
मानी.
अमरिका
की
परंपरा
है
के
हारने
वाला
प्रत्याशी हार
मानता
है
और
फिर
नए
राष्ट्राध्यक्ष का
प्रवास
शुरू
होता
है.
अब
तक
तो
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प
ने
हार
नहीं
मानी
है,
उल्टे
अभी
लगता
है
वहां
लंबी
कानूनन
लड़ाई
चलेगी.
आने
वाला
वक्त
बताएगा
की
यह
कानूनी
बवंडर
कब
थमेगा,
और
जब
थमेगा
तब
तक
कितना
नुकसान
कर
के
जाएगा.
- अगर जो बायडेन की जीत की सभी तरफ से औपचारिक पुष्टि होती है तो इसका भारत अमरिका, भारत चीन, भारत पाकिस्तान के रिश्तों पर क्या असर गिरेगा?
- भारत अमरिका जापान और ऑस्ट्रेलिया के सामरिक गठबंधन QUAD का भविष्य क्या होगा?
- क्या चीन फिर से आंख उठाएगा ? क्या पूर्वोत्तर या लद्दाख मे फिर से कोई बवंडर उठेगा?
- क्या फिर पाकिस्तान अपनी हरकते बढ़ाएगा?
चीन के स्टॉक मार्केट मे बवंडर?
अँट फायनान्शिअल, चीनी
ई-कॉमर्स कंपनी
अलिबाबा, अलीपे
के संस्थापक जैक
मा की है.
यह कंपनी चीन
और हॉन्गकॉन्ग के
स्टॉक मार्केट में
38 बिलियन अमेरिकन डॉलर
(करीबन दो लाख
पीचासी हजार करोड़)
की आईपीओ 3 नवंबर
को लाने के
दिशा में काम
कर रही थी.
आईपीओ अप्लिकेशन के
अंतर्गत 3 ट्रिलियन अमेरिकन डॉलर
(दो सौ पच्चीस
लाख करोड़ रुपये)
भी जमा की
गई थी. अगर यह आईपीओ हो जाती तो अँट फायनान्शिअल का वैल्यूएशन 300 बिलियन अमरीकी डॉलर (करीबन बाइस लाख पचास हजार करोड़ रुपये) के ऊपर हो जाता. लेकिन ना जाने 3 नवंबर को कौनसा बवंडर उठा की अँट फायनान्शिअल ने अपनी आईपीओ स्थगित ही नहीं कि, बल्कि पूरी अप्लिकेशन फंड वापस करने की घोषणा की.
गौरतलब
है कि जब
से डोनाल्ड ट्रम्प
अमरिका के राष्ट्राध्यक्ष के रूप
मे पूर्णरूप से
कारगर थे तबसे,
अमरिका और चीन
के आर्थिक सम्बंध
बिगड़ गए थे.
हालांकि अमरीकी
मीडिया की माने
तो उनके वापिस
राष्ट्राध्यक्ष बनने
के आसार थोड़े
कम ही थे.
लेकिन 3 नवंबर आते
आते डोनाल्ड ट्रम्प
के चुनाव में
जितने के आसार
बढ़ने लगे थे.
क्या इसी चुनावी
प्रक्रिया और
उसके बाद निर्माण होनेवाली स्थिति
को भापकर किसीने
बवंडर निर्माण किया
और उसमे अँट
फायनान्शिअल की
आईपीओ अटक गई?
सोचिए 3 ट्रिलियन अमरीकी
डॉलर!! बहुत बड़ी
रकम है. भारतीय
सालाना अर्थव्यवस्था फ़िलहाल इतनी है..
बवंडर बिहार का..
हाल ही मे
बिहार मे विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए.
किसी एक पार्टी
को बहुमत मिले
अब वो बिहार
नहीं रहा. यहा
गठबंधन चलते है.
खैर भाजपा की
अगुआई वाले एनडीए
को 243 मे से
125 सीटें मिली हैं
और अगर सब
कुछ ठीक रहा
तो नीतीश कुमार
सातवी बार बिहार
के मुख्यमंत्री के
रूप मे शपथ
लेंगे. हालात तो
यही है, लेकिन
महाराष्ट्र मे
पिछले साल जो
हुआ उससे राजनीति मे कुछ भी
हो सकता है
यह अधोरेखित हो
गया था.हालांकि यहां
चुनाव के पहले
हल्का सा बवंडर
उठा था चिराग
पासवान की तरफ
से, लेकिन अब
वे अपने भविष्य
के बारे में
सोच रहे होंगे.
उनके लिए शायद
अब दिल्ली (सरकार)
दूर हो जाएगी
हमेशा के लिए.
लेकिन अभी और
बवंडर उठ सकते
है. बिहार की
राजनीति के
हिसाब से बहुमत
से केवल 2 सीटें
ज्यादा यह बहुत
आश्वासित रहने
जैसी परिस्थिति बिल्कुल नहीं है. ऐसे
मे लगता है
यहा जल्द ही
वजन बढ़ाने की
दौड़ शुरू होगी,
जिसमें सभी तीनों
दल शामिल हो
सकते है.
चुनावी हार से बेहाल...
बिहार, मध्यप्रदेश,
उत्तर प्रदेश और गुजरात में हुए चुनावो की हार से कॉन्ग्रेस
मे विचारमंथन
शुरू हो गया है. महाराष्ट्र में कॉंग्रेस, शिवसेना के साथ जाने से कॉन्ग्रेस का मुख्य मतदाता, मुस्लिम मतदाता एआईएमआईएम के राह चलता नजर आया. हो सकता है महाराष्ट्र में इसका कोई असर पड़े. वैसे तो इस आशियाने मे हर छह आठ महीनों मे बवंडर उठते है और बैठाएं जाते हैं. देखते हैं अबकि बार, कौन बवंडर लाता है?
बिहार
के साथ साथ,
मध्यप्रदेश, गुजरात,
मणिपुर, ओडिशा, उत्तर
प्रदेश के साथ
कुल ग्यारह राज्यों मे 59 जगहों पर
उपचुनाव हुए.
भाजपा को 40 जगहों
पर कामयाबी मिली.
मार्च 20
मे मध्य प्रदेश
मे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कॉन्ग्रेस छोड़
कर भाजपा मे
प्रवेश किया था.
यहां से मध्यप्रदेश की राजनीति में
ऐसा बवंडर उठा
की तत्कालीन कमलनाथ
सरकार गिर गई.
पच्चीस से ज्यादा
विधायकों ने
कॉन्ग्रेस छोड़
दी, जिस वज़ह
से शिवराज सिंह
चौहान को सरकार
बनाने का मौका
मिला, उन्होंने बहुमत
भी सिद्ध किया.
अब जब 19 जगहों
पर भाजपा जीत
गई तो शिवराज
सिंह चौहान की
सरकार और मजबूत
हो गई है.
गुजरात मे भी
ऐसा ही कुछ
हुआ है.
महाराष्ट्र - क्या आएगा समंदर मे बवंडर?
पिछ्ले
साल तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस
ने विधानभवन में
अपनी आखिरी स्पीच
मे कहा था
“मेरा पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना,मैं समंदर हूँ लौटकर जरूर आऊंगा।” (कहते
हैं यह पंक्तिया
श्री अमित शाह
ने 2010 मे कहीं थी ). खैर. अगर
समंदर का पानी
शहर में आना
है तो समंदर
में एक बहुत
बड़ा बवंडर आना
जरूरी है. अब
वो आएगा या
लाया जाएगा ये
तो आनेवाला समय ही
बताएगा .
देवेन्द्र
फडणवीस ने उन्हें दिए गए बिहारके चुनाव प्रभारीपद का दायित्वका , हमेशा की तरह अपनी तरफ से सम्पूर्ण प्रामाणिकता और कल्पकता से निर्वाहन किया. इससे उनकी राजकीय छवि और निखरी - क्षेत्र मे और राज्य में भी. बिहार की कामयाबी से फडणवीसजी व्यक्तिगत रूप से आनंदित तो हुए ही होंगे, लेकिन उनके आत्मविश्वास और विश्वासार्हता पर भी इसका सकारात्मक असर होगा.
मध्यप्रदेश और गुजरात के उपचुनावों मे मिली कामयाबी से भाजपा देश के राजनैतिक दलों को एक सीधा और ताकतवर संदेश देने मे कामयाब रही - कि वह जो उनके साथ जुड़ते है उन्हें जोड़ के रखते हैं, चुनाव जीतने के लायक रखते हैं और अपनी व्यवस्था से उन्हें उपचुनाव जितने मे पूर्णरूप से प्रामाणिक प्रयत्न करती है. अपनी कमिटमेंट पूरी करती हैं. यह संदेश महाराष्ट्र में कई गैर भाजपा के विधायकों को उत्साहित कर सकता है.
छह-सात
महीने पहले जब
राजस्थान में
"ऑपरेशन लोटस" शुरू
था तब महाराष्ट्र मे भी ऑपरेशन
लोटस होने की
तथाकथित चर्चा
हो रही थी.
लेकिन राजस्थान का
कार्यक्रम चाय
के प्याली मे
आए तूफान जैसे
समाप्त हो गया.
बवंडर मे रूपांतरण नहीं हो पाया.
इस वजह से
महाराष्ट्र में
भी शायद इसे
अबॉर्ट कर दिया
गया हो.लेकिन
अब परिस्थितियां फिर
बदल रही है.
राज्य में एक
प्रकार की अस्थिरता है, तीनों दलों
की कार्यप्रणाली मे
एकजुटता और
एकसूत्रता बन
नहीं रही है,
कहीं ना कहीं
असंतोष जरूर है.
साथ
ही मे पालघर
मे साधुओं की
निर्मम हत्या, सुशांत
सिंह राजपूत और
दिशा सालियान की
रहस्यमयी मृत्यु,
राज्य में सीबीआई
और एनसीबी का
आना, ड्रग्स मामले
में फिल्मी सितारों का पाया जाना
इस वजह से
राज्य की पुलिस
प्रशासन पर
सवाल खड़े हो
गए. अंत में
रिपब्लिक टीव्ही
नेटवर्क पर
टीआरपी स्कैम का
आरोप लगना, और
फिर उनके चीफ
एडिटर अर्णब गोस्वामी को दो साल
पहले बंद हुए
मामले में गिरफ्तार करना इस वज़ह
से राज्य में
लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल निर्माण हो गए.
ऐसे
मे राज्य सरकार
सीबीआई को राज्य
मे कभी भी
आकर इनवेस्टिगेशन करने
की सम्मति को
स्थगित कर दिया.
ऐसे और कुछ
मामलों से ने
केंद्र और राज्य
सरकार मे संघर्ष
है ऐसा चित्र
निर्माण हो
रहा है. एनसीबी
एक बार फिर
सक्रिय होते नजर
आ रही है.
क्या कुछ और
बड़ी मछलियों को
पकडा जाएगा? क्या
सीबीआई की वापसी
होगी?देखना यह होगा कि महाराष्ट्र मे राजकीय बवंडर आएगा या नहीं, अगर आएगा तो कब और क्या वह समंदर का पानी शहर में लाएगा?
दिल्ली दरबार मे है बहार..
भाजपा
को लोकसभा मे
स्पष्ट बहुमत तो
था ही, अब
साथ मे राज्यसभा में भी उनकी
शक्ति बढ़ गई
है, 245 की संख्या
वाले इस सदन
मे अब उनके
पास अपने 92 सांसद
है, साथ ही
मे उन्हें एआईडीएमके, बीजेडी जैसे सहयोगी
दलों के 18 सासंदों का समर्थन मिलते
रहा है. दोनों
सदनों में निर्णायक बहुमत होता है
तो कानून बनाने
की प्रक्रिया तेज
और प्रखर हो
जाती है. जनसंख्या नियंत्रण कानून,
समान नागरी कायदा
(यूनीफॉर्म सिविल
कोड) , बैकिंग क्षेत्र में नए कानून
लाने के लिए
वातावरण अनुकुल
बन सकता है.
दूसरी
ओर भाजपा के
अगुआई वाले एनडीए
सरकार मे से
कुछ दल हाल
ही में बाहर
निकले थे, इनके
जाने से सरकार
मे कुछ जगहे
खाली है. इसको मद्देनजर रखते हुए कुछ नए पंछी एनडीए के घोंसले मे अपना आशियाना बनाने की कोशिश मे होंगे. एक
बात याद रहे,
भाजपा जितनी सशक्त
होते जाएगी उतना
उनके खिलाफ दुष्प्रचार बढ़ता जाएगा. जैसे
धारा 370 निकलने के
बाद, या नागरिकता कानून और किसान
कानून के वक़्त
हुआ. राजनीतिक दल,
उदारमतवादी अर्बन
नक्सलस और कुछ
साम्प्रदायिक गुट
मिलकर नकारात्मक शक्तियां सक्रिय होकर जनतांत्रिक बवंडर उठाने की
भरसक कोशिश करते
है, कभी कभी
दंगे भी करवाए
गए. लेकिन यह नवभारत है, ऐसे बवंडरो को कैसे खत्म किया जा सकता है इसकी मिसाले कायम की गई है.
चलते चलते..
बवंडर
उठना, समाप्त होना
एक नैसर्गिक प्रक्रिया है. ये कब
उठ सकते है
इसका आकलन कर
सटीक इशारा देना
ताकि कम से
कम नुकसान हो,
जब ये उठते
है तो उस
दौरान उसका पूर्ण
शक्ति से सामना
करना, और उसके
जाने के बाद
हुए नुकसान को
जल्द से जल्द
राहत कार्य से
पूरा करना हमारे
हाथों में है.
राजनीति में बवंडर अमूमन
उठाए जाते हैं.
उसके लिए पोषक
वातावरण बनाना
और जवाबदेही रखना
जरूरी है. बवंडर
आएंगे जाएंगे, लेकिन
लोकतंत्र बना
रहना चाहिए. लोकतंत्र, कानून व्यवस्था और
न्याय व्यवस्था पर
लोगों का विश्वास कायम रहना चाहिए. राजनीती के परिवेश (context) को
देखता हु तो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह
"दिनकर" की कुछ
पंक्तियां याद
आती है.
"सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
जनता? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,जाड़े-पाले की कसक सदा सहने वाली,जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहेतब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।जनता?
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
शुभ दिपावली..
"तमसो
मा ज्योतिर्गमय" का
सामान्य अर्थ
यह है कि
अंधकार से प्रकाश
की ओर चलो,
बढ़ो. दिपावली दीपोत्सव भी है. दीप
जलाने से पवित्र
ऊर्जा उठती है
उससे पाप नाश
होता है ऐसी
मान्यता है.
आओ, हम सब
दिपावली के
इस पवित्र प्रकाशपर्व मे शामिल होकर
दिए जलाए और
उसकी पवित्र ऊर्जा
और प्रकाश से
भारतभूमि से
पाप और दुष्टाचार का मिलकर विनाश
करे. याद
रहे, भारत में
कोरोना अभी भी
सक्रिय हैं. हालांकि केसेस कम हो
रहे हैं और
रिकवरी रेट मे
अच्छी बढ़ोतरी हो
रही है, लेकिन
जब तक दवाई
नहीं, तब तक
ढिलाई नहीं! दो
गज की दूरी
और मास्क जरूरी
का शतप्रतिशत पालन
कर कोरोनारूपी बवंडर
को हम मिलकर
भगाएंगे.
आप सबको दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं. शुभम
भवतु:||
- धनंजय
देशमुख, मुंबई
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है.)
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