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कृषि कानून २०२० - खुशहाल किसान, बिचौलिये परेशान

8 अक्टूबर 2020, मुंबई
कृषि कानून २०२० - किसान होंगे खुशहालबिचौलिये होंगे परेशान
मित्रों, आओ कुछ भारत की बातें करते है. भारत विशाल है, विशाल है इसकी संस्कृति. करीब 130 करोड़ की जनसंख्या, 33 लाख वर्ग किलोमीटर (sq km) 28 राज्य, 8 केंद्रशासित प्रदेश, 18 अधिकृत भाषाएँ. ऐसी अनेकों विशेषताएं, जो अनेकता मे एकता का प्रतीक दर्शाता है, और दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र!
सदियों किसान से हमारे इस विशाल भारत के अर्थव्यवस्था का केंद्रबिंदू रहा है किसान, उसकी मेहनत और फसल और हमारे लिए सिर्फ भोजन का साधन नहीं है, हमारे जीवन मे वह सकारात्मकता भी लाती है. तभी तो हमारी संस्कृति है, हम उन्हें अन्नदाता कहते हैं. इतना ही नहीं हमारी संस्कृति में अन्नदाता को पिता भी माना जाता है.
 "जनिता चोपनेता यस्तु विद्यांप्रयच्छतिअन्नदाता भयत्राता पञ्चैता पितरः स्मृताः॥
भावार्थ : जन्म देनेवाला, उपनयन संस्कार करनेवाला, विद्यादेनेवालाअन्नदाता तथा भय से रक्षा करनेवाला, ये पांच प्रकार के पिता होते हैं.

मन की नहीं हुई तो, आग लगा डाली...
28 सितम्बर 20 को दिल्ली में इंडिया गेट पर कुछ लोगों ने एक ट्रैक्टर जलाया. यही ट्रैक्टर एक हफ्ते पहले पंजाब के अम्बाला शहर में भी जलाया गया था. कहते है यह ट्रैक्टर एक किसान का था. जलाने वाले कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता थे.

ठीक एक हफ्ते बाद इसी पार्टी के शीर्षस्थ नेता राहुल गांधी ट्रैक्टर पर सोफा लगा कर रैली करते देखे गए. विषय वहीं, दूसरी किसानो का प्रदर्शन.आखिर क्यों ये लोग ट्रैक्टर, जो कि अन्नदाता किसान के उपजीविका का साधन होता है, उसका महत्पूर्ण उपकरण है जलाने पे तुले थे? विडंबना देखिए, किसान के खेत में इनके पार्टी के नेता ने अपने आप को गिरा दिए, लेकिन फिर दो दिन बाद किसान के इस महत्वपूर्ण उपकरण, ट्रैक्टर पर सोफा लगा के आराम से रैली करते नजर आए! क्यों कॉन्ग्रेस के ये स्वार्थी लोग हमारे अन्नदाता, किसान को भड़का रहे है? उसके उपकरण जला रहे? उसको भटका रहे हैं?
 
आखिर क्यों?
साथियो, ये लोग दुःखी है. नाराज है. इसलिए कि छह सात दशकों के बाद हमारे अन्नदाता को लाइसेंस राज से मुक्ति मिली है. हमारा किसान, जो मंडियों के दलालों के दुष्टचक्र, उनके अन्यायकारक शर्तों के मायाजाल मे फस गया था, 19 सितंबर 20 को पंतप्रधान नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व की सरकारने तीन महत्वपूर्ण विधेयकों का संसद मे कानून मे रूपांतरित किया. सात अक्टूबर को महामहिम राष्ट्रपती ने उन तीन कानूनो को अपनी मंजूरी दे दी. अब ये अधिकृत रूप से कानून बन गए हैं.
 
क्या है ये नए कृषि कानून?
कृषि संबंधित दो अध्यादेशों को संसद मे करीबन 5 घंटे चली लंबी बहस के बाद पारित कर दिया गया. कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य, सवर्धन और कानून -2020 और किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) कानून , 2020 अब लागू हो चुका है.
भाजपा को अपना सबसे पुराना और भरोसेमंद सहयोगी खोना प़डा है. ईन बिलों के पास होने के फौरन बाद भाजपा को विपक्षियों के साथ साथ अपने सहयोगियों के विरोध का भी सामना करना पड़ा. भाजपा की सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल की मंत्री हरसिमरत कौर ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया.
 
और क्या है नया?

1.  किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) कानून , 2020 में एक परिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का प्रावधान किया गया है. यानी एक ऐसा माहौल तैयार किया जाएगा, जहां किसान और व्यापारी किसी भी राज्य में जाकर अपनी फसलों को बेच और खरीद सकेंगे.

2.  इस कानूनके मुताबिक जरूरी नहीं कि आप राज्य की सीमाओं में रहकर ही फसलों की बिक्री करें. साथ ही बिक्री लाभधायक मूल्यों पर करने से संबंधित चयन की सुविधा का भी लाभ ले सकेंगे.

3.  दूसरे कानून किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) का मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं कानून , 2020 की बात करें तो इसके तहत कृषि समझौते पर राष्ट्रीय ढांचे को तैयार करने का प्रावधान किया गया है.

4.  यानी इसके जरिए किसानों को कृषिव्यापार में किसानों, व्यापारियों, निर्यातकों इत्यादि के लिए पारदर्शी तरीके से सहमति वाला लाभदायक मूल्यढांचा उपलब्ध कराना है.

कानून में है ये चीजे शामिल..

1.    कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून ,2020 के तहत किसान देश के किसी भी कोने में अपनी उपज की बिक्री कर सकेंगे. अगर राज्य में उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा या मंडी सुविधा नहीं है तो किसान अपनी फसलों को किसी दूसरे राज्य में ले जाकर फसलों को बेंच सकता है. साथ ही फसलों को ऑनलाइन माध्यमों से भी बेंचा जा सकेगा, और बेहतर दाम मिलेंगे.

2.     मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, 2020 के तहत किसानों की आय बढ़ाने को लेकर ध्यान दिया गया है. इसके माध्यम से सरकार बिचौलिओं को खत्म करना चाहती है. ताकि किसान को उचित मूल्य मिल सके. इससे एक आपूर्ति चैन तैयार करने की कोशिश कर रही है सरकार.

3.     आवश्यक वस्तु (संशोधन), 2020 के तहत अनाज, खाद्य तेल, आलू-प्याज को आनिवार्य वस्तु नहीं रह गई हैं. इनका अब भंडारण किया जाएगा. इसके तहत कृषि में विदेशी निवेश को आकर्षित करने का सरकार प्रयास कर रही है.

समझा नहीं पाए तो भ्रम फ़ैलाओ...  
गलत जानकारी फैलाई जा रही है. जैसे के हमेशा से होता रहा है, भाजपा विरोधक इस बार भी जनता और अन्नदाता किसान को भ्रमित करने मे कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.आइए जानते हैं ये क्या भ्रम फैला रहे हैं?

·      इसमें किसानों अन्य राजनैतिक पार्टियों का कहना है कि अगर मंडियां खत्म हो गई तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Selling Price) नहीं मिल पाएगी. इसलिए एक राष्ट्र एक MSP होना चाहिए.

·      विरोध का कारण यह भी है कि कीमतों को तय करने का कोई तंत्र नहीं है. इसलिए किसानों और राजनैतिक दलों की चिंता यह है कि कहीं निजी कंपनियां किसानों का शोषण करें.

·      चिंता यह भी है कि व्यापारी इस जरिए फसलों की जमाखोरी करेंगे. इससे बाजार में अस्थिरता उत्पन्न होगी और महंगाई बढ़ेगी. ऐसें में इन्हें नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है.

·      राज्य सरकारों को चिंता यह भी है कि अगर फसलों के उचित दाम राज्य में नहीं दिए जाएंगे तो किसान पड़ोसी राज्य में जाकर अपनी फसलें बेंच सकेंगे. ऐसे में राज्य सरकारों को फसल संबंधित दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

सौ बात की एक बात ये है कि विरोधक इसलिए झल्लाहट मे है क्योंकि ईन कानूनो की वजह से बिचौलियों की व्यवस्था मे छेद लग जाएगा.ये ठीक GST की तरह है, जिसकी वजह से ऑक्ट्रॉय नाको पर होने वाले गोरखधंधे रातोरात बंद हो गए. बिचौलियों की तरफदारी करने वाले विरोधक अपनी नैया बचाने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं.

काफी ऐतिहासिक है ये सुधार....
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोकसभा में ऐतिहासिक कृषि सुधार विधेयकों का पारित होना देश के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है. ये कानून  सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे. किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं. हम अपने किसान भाइयों और बहनों को आश्वस्त करते है कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी. ये कानून  वास्तव में किसानों को कई और विकल्प प्रदान कर उन्हें सही मायने में सशक्त करने वाले हैं. आइये जानते हैं इनके बारे में विस्तृत से

1.    इस कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी.कानून अनुमति देता है कि उपज का राज्यों के बीच और राज्य के भीतर व्यापार एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत गठित मार्केट के बाहर भी किया जा सकता है

2.    इस कानून को सरकार ने कांट्रैक्ट फार्मिंग के मसले पर लागू किया है. इससे खेती का जोखिम कम होगा और किसानों की आय में सुधार होगा. समानता के आधार पर किसान प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम होगा. भारत मे कांट्रैक्ट फार्मिंग कई सालो से हो रही है.

पेप्सी, आईटीसी जैसे अनेक देशी और विदेशी कंपनियां किसानो से मेरा सीधे उत्पाद खरीद रही है. लगभग सभी राज्यों मे यह हो रहा था. कंपनियां उन्हें जैसा चाहिए वैसा उत्पाद पैदा करने के लिए किसानो को बीज, ट्रेनिंग मुहैय्या कराती है, बदले मे किसान को लागत से ऊपर मुनाफा मिलता है. कॉन्ग्रेस और उसके सहयोगी दल किसानो मे भ्रम फैला रहे हैं के ईन कानूनो के वजह से उनको अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ेगा. ऐसा कुछ नहीं होने वाला. हमारे यहा सदियों से खेती बटई पर दी जाती रहीं हैं, क्या किसी किसान ने अपनी जमीन इसमे खोई है?

गौरतलब है के महाराष्ट्र , देश का पहला राज्य है जिसने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कानून बनाया था  ये २००६ की बात है जब कांग्रेस -राष्ट्रवादी की सरकार थी आज यही लोग इसके बारे में भ्रम फैला रहे है..  गजब है

3.    कानून के अनुसार व्यापार क्षेत्र में किसान उपज की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की अनुमति देता है. इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और ट्रांज़ैक्शन प्लेटफॉर्म को तैयार किया जा सकता है ताकि किसान उपज को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और इंटरनेट के जरिए खरीदा और बेचा जा सके तथा उसकी फिजिकल डिलिवरी की जा सके.

4.    कानून के अंतर्गत कोई भी व्यापार करने पर राज्य सरकार किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स से कोई बाजार फीस, सेस या प्रभार नहीं वसूलेगी.

5.    इस कानून के लागू हो जाने से किसानों के लिए एक सुगम और मुक्त माहौल तैयार हो सकेगा, जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की आजादी होगी और 'एक देश, एक कृषि मार्केट' बनेगा.

बाजार झूठ का!!
जबसे ये कानून पारित हुए तबसे विरोधक, खासकर कांग्रेस, किसानो में झूठ और भ्रम फैला रही है. ये कहते है , अगर किसान मंडियों में फसल नहीं बहेगा तो मंडिया उठ जाएगीटैक्स के रूप में जो पैसा मंडिया सरकार को देती है उनसे सरकार सड़के बनाती है , अगर मंडिया उठ जाएगी तो सरकार को टैक्स नहीं मिलेगा , टैक्स नहीं मिलेगा तो सड़के नहीं बनेगी, अगर सड़के नहीं बनेगी तो किसान गांव से बाहर शहर कैसे जाएगा ? ख़याली पुलावइनके झूठ की फसल कभी खिलेगी नहीं , क्योंकि मोदी सरकार ने बीज सच और खुशहाली के बोये है . जानते है क्या झूठ और क्या सच

·      झूठ: किसान कानूनअसल में किसानों को न्‍यूनतम समर्थन मूल् देने की साजिश है.

·      सच: किसान कानूनका न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य से कोई लेना-देना नहीं है. एमएसपी दिया जा रहा है और भविष्‍य में दिया जाता रहेगा.

·      झूठ: अब मंडियां खत्‍म हो जाएंगी.

·      सच: मंडी सिस्‍टम जैसा है, वैसा ही रहेगा.

·      झूठ: किसानों के खिलाफ है किसान बिल.

·      सच: किसान कानूनसे किसानों को आजादी मिलती है. अब किसान अपनी फसल किसी को भी, कहीं भी बेच सकते हैं. इससे 'वन नेशन वन मार्केट' स्‍थापित होगा. बड़ी फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के साथ पार्टनरशिप करके किसान ज्‍यादा मुनाफा कमा सकेंगे.

·      झूठ: कॉन्‍ट्रैक्‍ट के नाम पर बड़ी कंपनियां किसानों का शोषण करेंगी.

·      सच: समझौते से किसानों को पहले से तय दाम मिलेंगे लेकिन किसान को उसके हितों के खिलाफ नहीं बांधा जा सकता है. किसान उस समझौते से कभी भी हटने के लिए स्‍वतंत्र होगा, इसलिए लिए उससे कोई पेनाल्‍टी नहीं ली जाएगी.

·      झूठ: किसानों की जमीन पूंजीपतियों को दी जाएगी.

·      सच: कानूनमें साफ कहा गया है कि किसानों की जमीन की बिक्री, लीज और गिरवी रखना पूरी तरह प्रतिबंधित है. समझौता फसलों का होगा, जमीन का नहीं.

·      झूठ: किसान कानूनसे बड़े कॉर्पोरेट को फायदा है, किसानों को नुकसान है.

·      सच: कई राज्‍यों में बड़े कॉर्पोरेशंस के साथ मिलकर किसान गन्‍ना, चाय और कॉफी जैसी फसल उगा रहे हैं. अब छोटे किसानों को ज्‍यादा फायदा मिलेगा और उन्‍हें तकनीक और पक्‍के मुनाफे का भरोसा मिलेगा.

 
लहलहा रही है फसल राजनीती की
महाराष्ट्र कृषि समृद्ध राज्य है  कहते है महाराष्ट्र देश को दिशा दिखता है , खासकर जब यहाँ से कई दिग्गज नेता अपने आपको कृषक बताते है तबखैर  इस जनवरी में कृषि अध्यादेश बनाए गए थे जो बाद में विधेयक बने और फिर संसद में पारित हो कर कानून बनेजब ये अध्यादेश निकले थे , महाराष्ट्र सरकार ने इन अध्यादेशों को इसी साल के जुलाई महीने में लागु करवाया थाशिवसेना ने लोकसभा में इन बिलो का समर्थन किया था  और राजयसभा में इनके सांसद अनुपस्थित रहे थेराष्ट्रवादी कांग्रेस ने भी कुछ ऐसा ही कियालेकिन जब ये बिल कानून बन गए तो राज्य के आघाड़ी सरकार में टकराव टालने के लिए अब इन कानूनों का लागु करने या करने पर "वेट एंड वाच" की भूमिका ली जा रही है, जो अध्यादेश लागु किए गए थे उन्हें रद्द करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.

गौरतलब है के इस साल पहले छह महीनों मे महाराष्ट्र मे करीबन 650 किसानो ने आत्महत्या की. दूसरी ओर कई किसानो की फसल ना खरीदने की घटनाएँ हुई है. इसके अलावा, छोटे किसान और दूध उत्पादक भी दूध को कम कीमत मिलने पर नाराज है. एक तरफ राज्य के कुछ राजनैतिक दल किसानो के हित की बात करते है, दूसरे और उन्हें सडकों पर अपना उत्पाद फेंकने और दूध बहाने पर मजबूर करते है. इन्हीं किसानो के नाम पर ये राजनीतिक दल वोट मांगने फिर आएँगे. देख कमाल राजनीती का.

देर लगी आने मे..
ये समझना जरूरी है कि महाराष्ट्र के नेता शरद पवार जब कृषि मंत्री थे तबसे ये सुधार होने की राह पर थे. केवल राजनैतिक फायदे के वजह से इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया था. पवार साहब ने अपनी एक किताब 'लोक माझे सांगाती  (जो २०१९ में इनके जमदिवस पर प्रकाशित हुई  थी )" में इन सुधारो के बारे में खूब पैरवी की थी. इतना ही नहीं, कॉन्ग्रेस ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणापत्र मे भी ईन सुधारों को शामिल किया था. आज जब इन्हे कानून मे रूपांतरित किया गया है तो यही लोग अन्नदाता किसान के उपकरण जला रहे हैं.
 
है अनेक सम्भावनाए... 
कृषिक्षेत्र मे विकास और सुधार की अनेक संभावनाए है. हमारे नौजवान किसान की मेहनत और कल्पकता को बल देने के लिए यह सब आवश्यक है. जमाना बदल रहा है, हमारा किसान क्यों बदले ? जमीन से लेकर मौसम, बीज, खाद, फसल, पानी, सौर ऊर्जा, उपकरण, आर्थिक सहयोग, बाजार, ग्राहक जैसे विभागों मे तकनीकी ईस्तेमाल से सामन्य किसान का भी विकास हो सकता है. आज कई किसान इस्राएली तकनीक पर बसे सेंसर बेस्ड इरीगेशन, तो कई ड्रोन का ईस्तेमाल कर रहे हैं, तो कई किसान हाइड्रोपोनीक्स और वर्टीकल फार्मिंग जैसे नई कृषि तकनीक से अपनी उपज बढ़ा रहा है. जरूरत है इसके बारे मे ईमानदारी से विचार करने की और उसे अमल मे लाने की.

चलते चलते..
कोरोना वैश्विक महामारी मे पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है. सभी देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. भारत कोई अपवाद नहीं. लेकिन पिछले छह महीनों के आकड़े देखे तो, हमारी कृषि व्यवस्था पूरी तरह से अखण्ड है, बल्कि यही क्षेत्र है जिसमें सुधार आया है. India भारत है. अगर India को आगे ले जाना है, तो भारत को पूरी तरह से सक्षम करना होगा. अन्नदाता किसान भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है.
 
जिस देश का छोटे से छोटा किसान खुशहाल हो, वह देश पिछड़ा नहीं रह सकता. जिस देश की सेना का जवान चौकन्ना हो उस देश पर कोई आक्रमण नहीं कर सकता. आज ये दोनों देश को बचा रहे हैं , कोरोना के महामारी मे भी रिकार्ड उपज निकालने वाला हमारा किसान, और चीन और पाकिस्तान जैसे विस्तारवादी और आतंकवाद को पनाहगाह देने वाले हमारे पड़ोसियो से हमे बचाने वाला सीमा पर तैनात हमारा जांबाज जवान.

दशकों से लंबित ईन अभूतपूर्व सुधार लाकर पंतप्रधान मोदीजी ने हमारे छोटे से छोटे किसान भाई, हमारे अन्नदाता को संपन्न, समृद्ध तथा और ऋणमुक्त करने की पहल की है. किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Selling Price) पहले की तरह भविष्य में भी मिलता रहेगा. सच तो यह है की मोदी सरकार किसानो की आय दुगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है और ये कानून उसी राह में उठाए गए कदम है. "एक देश, एक कृषि मार्केट" संकल्पना से अनेकता से एकता की ओर ले जाने वाले हमारे अन्नदाता किसान "एक भारत श्रेष्ठ भारत" बनाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे इसमे कोई दो राय नहीं है.

"आत्मनिर्भर भारत" संकलपना को मूर्त रूप देने के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार अपेक्षित ही थे.मोदी सरकारने करीबन एक लाख करोड़ का कृषि पैकेज भी निर्धारित किया है जिसमे फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेजेस - कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग और लॉजिस्टिक पर विशेष ध्यान दिया जाना है. पुरानी मंडियों में ये सुविधाए अक्सर नहीं मिल पाते थे. अब जब किसान अपनी उपज मंडियों से बहार कही भी बेच पायेगा, तो स्वाभाविक रूप से सहकार और निजी क्षेत्र की कम्पनिया या गुट सामने आएँगे,उपज को अच्छे मोल पर खरीदने के लिए उत्साहित होंगे, इस व्यवस्था में कई नए उद्योग और रोजगार निर्मित होंगे.काफी दूरगामी सकारात्मक परिणाम होंगे  इन सुधारो से. हमारा किसान और संपन्न होगा. भारत विश्वगुरु बनेगा. क्या हुआ अगर चंद लोग शोर मचा रहे हैं, उनके शोर से हमारी दृढ़ता और बढ़ेगी. किसी ने सही कहा है कि
"निकल पड़े है हम औरो की ज़मीन को बागीचा बनाने
क्योंकि बंजर ज़मीन का हाल तो हमने ख़ुद देखा है!"
जय जवान. जय किसान.
- धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई  
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है.)

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