4 अगस्त 20, मुंबई
बाबूजी, समझिए इशारे...
सभी
देशों
की
तरह
भारत
भी
वैश्विक कोरोना
महामारी से
जुझ
रहा
है,
स्वास्थ्यकर्मीयों के
मार्गदर्शन में
भारतीय
इस
महामारी को
जोरदार
टक्कर
दे
रहे
हैं.
भारत
मे
कोरोंना से
अच्छे
होने
का
रेट
या
रिकवरी
रेट
का
करीबन
80% है,
जोकि
काफी
उत्साहजनक है. साथ
ही
कोरोना
की
वैक्सीन भी
जल्द
ही
आने
की
संभावना है
- ICMR और
भारत
बायोटेक की
कोवैक्सीन, झाईडस
और
सीरम
इन्स्टिटय़ूट काफी
तेज
गति
से
संशोधन
कर
रहे
है.
कोरोना की लड़ाई..
भारत
मे
कोरोना
30 जनवरी
को
पाया
गया,
लेकिन
स्वास्थ्य व्यवस्था मे
जिस
दिन
किसी
रोग
के
सौ
मरीज़
होते
है
वह
दिन
उस
देश
का
डे
झिरो
होता
है,
जो
की
भारत
मे
15 मार्च
था.
खैर उसके बाद केंद्र सरकार ने, राज्य सरकारों के साथ मिलकर लॉकडाउन घोषित किया. इस लॉकडाउन मे आवश्यक सेवाए (essential services) शुरू रखी गई - जैसे, मीडिया, पेट्रोल पंप, बैंक. प्रशासन, पुलिस, स्वास्थ्य और सफाई कर्मचारी अतिआवश्यक सेवाओं मे है. हम इन्हें समुचित रूप से योग्य माने, कोविड योद्धा कहते है. ये हमारी सुरक्षा की पहली लाइन थी.
केंद्र
सरकार
ने
अस्सी
करोड़
लोगों
को
ध्यान
मे
रख
कर
मुफ्त
या
बहुत
ही
कम
कीमत
पर
राशन
उपलब्ध
कराया.
फ़िलहाल यह
कार्यक्रम नवंबर
तक
तो
चलेगा
ही.
इसके
अलावा
किसान,
मजदूरों और
छोटे
उद्योगों को
ध्यान
मे
रख
कर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने
"आत्मनिर्भर भारत" पैकेज की घोषणा
की.
फ़िलहाल यह पैकेज बीस लाख करोड़ का है, जोकि देश के जीडीपी का दस प्रतिशत है.
शून्य से दो लाख प्रतिदिवस..
शुरुआत
में
देश
मे
कोरोना
के
संसर्ग
से
सुरक्षित रखने
वाले
कुछ
वस्तुओं का
- जैसे
N95 मास्क,
पीपीई
किट,
सॅनीटायझर और
वेंटिलेटर का
अभाव
दिखाई
प़डा.
लेकिन
हमारे
छोटे
और
बड़े,
सभी
उद्यमियों ने
समय
की
मांग
देख
कर
तुरंत
ईन
सामग्रियों का
संशोधन
कर
बनाना
शुरू
किया.
- चंद हफ्तों मे भारत ना सिर्फ पीपीई किट का सबसे बड़ा निर्माता बना, बल्कि निर्यातक भी. N95 मास्क और वेंटिलेटर भी बड़ी मात्रा में बनाने जाने लगे.
- भारत मे HCQ बड़ी मात्रा मे बनाई जाती है, जो की अमरिका, ब्रिटन सहित कई जरूरतमंद देशों को निर्यात भी की गई.
- भारतीय औषधि कंपनियां भी कोरोना के रोकथाम के लिए लगने वाले औषधि के संशोधन मे गतिशील हो गए - ग्लेनमार्क, सिप्ला जैसी कंपनियां अग्रेषित है.
आज
करीबन
साढ़े
चार
महीने
बाद
हम
स्थिति
का
अवलोकन
और
आकलन
करते
है
तो
एक
ओर
हमे
कुछ
सफलताए
दिखती
है
- जैसे
संक्रमण की
गति
को
काफी
हद
तक
रोकने
मे
और
डबलिंग
रेट
बढ़ाने
मे
कामयाबी.
लेकिन दूसरी ओर हमे कुछ समस्याएं नजर आती है, जैसे कई जगह सुविधाओं और दवाइयों का अभाव, सुविधाओं के रखरखाव मे कोताही, अस्पतालों द्वारा मनमानी, नागरिको द्वारा स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस के साथ गैरव्यवहार और कभी तो मारपीट, पत्थरबाजी, और कुछ नागरिको द्वारा लॉकडाउन की सूचनाओं का पालन ना होना. साथ
ही
मे
हमने
कुछ
मानवीय
संकट
भी
देखे
जिसमें
हज़ारों प्रवासी मजदूर
अपने
गांव
लौटे,
कुछ
शायद
सैकड़ों मिल
पैदल
चल
कर
अपने
घर
लौटे.
यह
शायद
टाला
जा
सकता
था.
खैर.
कोरोना योद्धाओ को नमन..
कोरोना
महामारी से
सामान्य नागरिक
को
बचाने
के
लिए
सभी
प्रयास
शुरू
हुए
- प्रशासन, स्वास्थ्य व्यवस्था, स्वास्थ्य कर्मी
(डॉक्टर,
नर्सेस,
आशा
और
सफाई
कर्मचारी, मेडिकल
कॉलेज),
पुलिस
और
सैन्यदल, रेल्वे,
रेशन
शॉप,
छोटे
दुकान,
बैंकिंग और
बस
सर्विसेस कोरोना
के
भय
ना
डरकर
दिनरात
अपनी
सेवाएं
देते
रहे.
ये
सभी
कोरोना
योद्धा
है.
दुर्भाग्यसे इस
महामारी युद्ध
मे
कई
योद्धाओं को
अपने
प्राण
की
आहुती
देनी
पड़ी,
उनके
परिवार
उद्ध्वस्त हो
गए.
इन सभी बलिदानों को नमन.
हालांकि ख़बरों की माने तो कई योद्धाओं की मृत्यु वक़्त पर एम्बुलेंस या ट्रीटमेंट ना मिल पाने से हुई. ऐसी घटनाएँ नहीं होनी चाहिए. सरकारों ने ईन सभी परिवारो से विशेष रूप से कृतज्ञता दिखानी होगी, परिजनों को नौकरी और बडी सानुग्रह मदत (financial compensation) जल्द से जल्द देनी होगी.
लंबा चलेगा ये संघर्ष..
देश
मे
आज
भी
रोज
50,000 नए
लोग
कोरोना
महामारी की
चपेट
मे
आ रहे है. यह
आकडा
शायद
बढ़
भी
सकता
है.
हालांकि रिकवरी
रेट
काफी
सकारात्मक है,
लेकिन
हमे
और
दटके
इसका
मुकाबला करना
होगा.
हमे ही अपने खुद की पहली और आखिरी लाइन ऑफ डिफेंस बनना है - बाहर
निकले
तो
सोशल
और
फिजिकल
डिस्टंसिंग के
नियम
पूरी
तरह
से
पालना
है,
बिना
किसी
पर
निर्भर
ना
होते
हुए.
खास
कर
हमारे
पुलिसदल को
राहत
दिलानी
होंगी.
देश मे त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है, पुलिस प्रशासन पर वैसे ही इस मौसम मे अति सजग रहना पड़ता है, बल की संख्या मे कमी है - जैसे, महाराष्ट्र मे 55 वर्ष के ऊपर के कर्माचारियों को घर रहने की सलाह दी गई है.
इनका भी विशेष खयाल रखना पड़ेगा..
बैंकिंग और
बस
सर्विसेस ऐसी
सेवाएं
है
जहां
पर
लोगों
का
ध्यान
रखना
मुश्किल हो
जाता
है.
अप्रैल
से
ही
मुंबई
मे
बेस्ट
की
सेवाएं
अविरत
शुरू
थी
(मार्च
मे
20-25%). चालक
और
वाहक
को
रोज
अनजानी
और
बड़ी
भीड़
को
सामने
जाना
पड़ता
है.
अपने
आप
को
सुरक्षित रखने
के
कवायद
तकलीफ़देह है.
- इसके लिए सभी रूट पर, सभी बसेस की पॉइंट टू पॉइंट सर्विसेस (जिसमें सिर्फ चालक होगा, और उन्हें पर्याप्त तरीके से महफूज किया होगा. वाहक /कंडक्टर बस स्टॉप पर तिकीट देंगे) कैसी शुरू कर सकते है इसपर तुरंत विचार होकर कारवाई होनी चाहिए.
बैंकिंग व्यवस्था अतिआवश्यक होने की वज़ह लॉकडाउन मे पहले जैसे ही कार्यान्वित थी. इनका योगदान नज़रंदाज ना करे. सैकड़ों की संख्या मे बैंक कर्माचारियों को कोरोना विषाणू ने अपनी चपेट में लिया, दुर्भाग्यसे कई मृत भी हुए.
बैंकिंग व्यवस्था पर
दोहरी
और
महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है.
उन्हें
टार्गेट दिए
गए
है.
ना
के
डिपॉजिटर्स को
उनका
पैसा
मुहैय्या कराने
की,
बल्कि
केंद्र
सरकार
के
विविध
योजनाओं को
ज्यादा
से
ज्यादा
ग्राहकों तक
पहुंचाकर उसमे
ज्यादा
से
ज्यादा
लोगों
को
लाभान्वित करने
का.
नए
कर्जे
देने
का.
दोहरी मार..
बैंक कर्मचारियों पर दोहरा दबाव है - कोरोना से अपने आप को परिवार को बचाने का, और बैंक / सरकार ने दिए हुए टार्गेट पूरे करने का. खासकर सरकारी बैंकों मे.
हालांकि, छोटे
और
मझोले
उद्योगों को
मदत
करने
का
सरकार
का
हेतु
स्पृहणीय है,
विशेषकर - तीन लाख करोड़ का विशेष पैकेज (जिसमें उद्योगों को उनके आउटस्टैंडिंग कर्जे का 20% का नया कर्जा प्रस्तावित था). लेकिन क्या इसे कार्यान्वित करने की प्रक्रिया बेहतर की जा सकती है?
खुदरा
ग्राहक,
किसान
को
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर के
जरिए
लाभान्वित किया
जाता
है.
क्या
ऐसी
व्यवस्था उद्योगों को
लिए
नहीं
की
जा
सकती?
- बैंकों के पास उनके ग्राहको का डेटा होता है. सिबिल मे हर ग्राहक, व्यापारी और उद्योग के कर्जे के हालात की जानकारी होती है. या तो बैंक, सिबिल लाभार्थियों की सूची केंद्र सरकार को दे दे, और वहा से लाभार्थियों के खाते में राशि जमा कर दी जाए.
अगर
सिबिल
के
पास
पहले
से
ही
जानकारी है
तो
फिर
बैंक
अधिकारियों को
फिर
से
इस
विषय
पर
ड्यूडिलिजेंस करवाने
का
दबाव
डालना
इस
महामारी के
समय
मे
शायद
थोड़ा
अव्यवहारिक हो
सकता
है.
अगर
ऐसा
होता
होगा
तो
यह
अत्यंत
अट्टाहासपूर्ण लगता
है.
इस
पूरी
प्रक्रिया का
अधिकारियों पर
काफी
मानसिक
दबाव
है,
उन्हें
इससे
निजात
देनी
होगी.
- डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सहारे भी कर्ज प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है. कई फिनटेक कम्पनिया ऐसी तकनीक का इस्तेमाल कर के छोटे और मझोले उद्योगों को कर्जा देते है.
- क्या इनकी मदत या फिर इनके जैसी व्यवस्था बैंको (खासकर सरकारी ) में लगाई जा सकती है - जिससे मानवीय प्रक्रिया काम हो , अफसरों और कर्मचारियों पर दबाव काम हो सकता है?
कोरोना
महामारी से
उद्योगों पर
बड़ी
गाज
आई
है.
इस
वज़ह
से
बैंकिंग व्यवस्था पर
नकारात्मक प्रभाव
होगा
ही,
एनपीए
बढ़ेंगे, यह
बात
तो
सूर्यप्रकाश की
तरह
स्वच्छ
है.
छोटे
उद्योगों के
लिए
घोषित
तीन
लाख
करोड़
रुपए
के
पैकेज
मे
भी
एनपीए
बन
सकते
है
- यह
बात
तो
पहले
से
गृहित
की
गई
होगी,
उसकी
गहराई
कितनी
ये
चर्चा
का
विषय
हो
सकता
है.
सामाजिक संगठनों का बहुमोल योगदान..
जहा
एक
ओर
प्रशासन, सरकारी
विभाग
कार्यशील थे.
वहीं
दूसरी
ओर
कई
सामाजिक संगठन
पूरे
उत्साह
से
अपना
राष्ट्रीय कर्तव्य का
पालन
कर
रहे
थे.
ये
भी
कोरोनायोद्धा है.
लाखो
लोगों
को
राशन,
खाना,
दवाई
बाटी
गई.
प्रवासी मजदूरों के
लिए
बस,
खाना
उपलब्ध
कराया
गया.
कई
जगहों
पर
एम्बुलेंस, फीवर
स्कैनिंग, टेस्टिंग, क्वारंटाईन सेंटर्स बनाना,
यंत्र
सामुग्री जमा
करना,
मानसिक
समुपदेशन करना,
मृतदेहो को
सम्मानजनक पद्धतीत से
अंतिम
संस्कार करना,
इत्यादि अनेक
भाँति
की
व्यवस्थाए बनाई,
आज
भी
चला
रहे
है.
ये
सब
किसी
भी
बिना
किसी
अपेक्षा के
- सिर्फ,
राष्ट्रीय आपदा
मे
अपना
योगदान
होना
चाहिए
इस
पवित्र
भावना
से.
हालांकि, इनके
योगदान
का
सकारात्मक असर
हुआ
तो
कई
राजनेता इसे
अपना
कार्य
है
कह
कर
अपना
ढोल
पीटने
लगे,
या
सामाजिक संगठनों किए
हुए
कार्य
को
पूरी
तरह
से
खारिज
कर
दिया.
कहीं
तो
उनके
द्वारा
दिए
गए
भोजन
को
नकाराने की
भी
कहानियां है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राष्ट्रीय सेवा समिती, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, विश्वमांगल्य सभा, सेवांकुर जैसे अनेक सामाजिक संघटन आगे आए, आज भी कार्यरत है. इनका सेवाभाव ऋणी रहने के काबिल है.
चलते चलते..
देश
मे
कोरोना
महामारी फैल
चुकी
है,
अब
तक
अठरा
लाख
से
ऊपर
लोग
संक्रमित, बारा
लाख
से
अधिक
(78-80%) इसको
गच्चा
देकर
ठीक
हो
गए,
लेकिन
दुर्भाग्यवश लगभग
चालीस
हजार
मृत्यु
भी
हुए.
हुए
पिछले
पाच
महीनों
में
हमने
काफी
कुछ
देखा,
सहा,
सीखा,
और
गवाया
भी. हमारी व्यवस्थाओं मे कहीं अभूतपूर्व रूप से सुधार आया (दिल्ली मे), तो कहीं अभी भी सुधार के काफी आवश्यकता है (मुंबई और महाराष्ट्र मे).
लेकिन फिर भी, पिछले
पाच
महीनों
मे
प्रशासकीय अधिकारी, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस,
बैकिंग,
बस
सर्विसेज, रेल्वे
कर्माचारियों और
सामाजिक संगठनों ने
हमारी
पूर्णरूप से
सेवा
की.
कोरोना से लढाई जारी हैं, यह और लंबी चलेगी. शायद एक दो साल.
जैसे जैसे वक़्त बितेगा वैसे उसके और अलग / नए पहलू या संकट सामने आएंगे, अलग-अलग स्तर पर - आर्थिक, स्वास्थ्य, शैक्षणिक और मानवीय.
- ऐसे में हमारा, कोरोना योद्धाओं को, उनके परिवारों को और ज्यादा गृहित धरना ठीक नहीं होगा. उनकी अविरत जरूरत आगे भी रहेगी.
- अगर आज वो मानसिक, आर्थिक या स्वास्थ्य दबाव मे है तो उसका बुरा प्रभाव इस पूरी लढाई पर गिरेगा, उसकी गति कम हो जाएगी.
यह
लढाई
जितने
के
लिए
और
भी
नई
योजनाए
बनेगी
- इस
बार
शायद,
शिक्षण
और
व्यापार जगत
के
लिए.
उन
योजनाओं को
पूरा
करने
के
लिए
टार्गेट रखना
जरूरी
ही
है,
लेकिन
क्या
हम
इन्हें
नए
तरीके
से
अमलीजामा पहना
सकते
है?,
ये
सोचना
होगा
(जैसे
व्यापारियों के
लिए
DBT). जहा
पर
हो
सके,
प्रक्रियाओं को
सरल
और
डिजिटल
कर
के
सरकारी
योजनाओं का
क्रियान्वयन (implementation) करना चाहिए.
उनके
क्रियान्वयन (implementation) को व्यवहार्य बनाना
होगा.
कोरोना महामारी से पाच महीने अविरत लढते रहने के बाद सभी व्यवस्थाओं मे थकान आना स्वाभाविक है. लेकिन इस थकानरूपी (मानसिक, स्वास्थ्य) इशारों को हमे मानवीय दृष्टिकोण से समझना होगा. राजनीतिक महत्वकांक्षा और प्रशासकीय अट्टाहास को बाजू रख कर, इन इशारों को समझ कर आगे का मार्गक्रमण करना होगा. जीत हमारी पक्की है. देश मे एक निश्चायक (decisive) नेतृत्व जो है.
कहते
है
जरूरत
ही
अविष्कार कि
नीव
होती
है.
आज
जरूरतें बहुत
है,
जरूरी
है
हम
कल्पकता से
कुछ
नया
सोच
कर
इस
प्रवास
को
सुखकर
बनाए.
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी
कुछ
पंक्तिया इस
प्रवास
का
मार्गदर्शन कर
सकती
है.
"बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।"
दो गज दूरी, मास्क है जरूरी. बाहर
निकले
तो
नियमो
का
पालन
जरुर
करे.
जरूरी
काम
ना
हो
तो
घर
में
ही
रहिए.
स्वस्थ
रहिए.
खुशहाल
रहिए.
धनंजय
मधुकर
देशमुख,
मुंबई
dhan1011@gmail.com
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और कविता / गीत इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा की गई है.)
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