1 अगस्त 2020,मुंबई
आज भी खूबसूरत है..
1982 - "कितनी खूबसूरत ये तस्वीर है,
यह कश्मीर है"
आप मे से
ज्यादातर लोगों
ने फिल्म बेमिसाल (1982) का स्व आनंद
बक्षी द्वारा लिखित,
स्व राहुल देव
बर्मन द्वारा संगीतबद्ध किया हुआ, और
स्व किशोर कुमार,
भारत रत्न लता
मंगेशकर और
सुरेश वाडकर इनकी
आवाज में गाया
हुआ गीत तो
जरूर सुना होंगा.
"कितनी खूबसूरत ये तस्वीर है,मौसम बेमिसाल बेनज़ीर है
ये कश्मीर है, ये कश्मीर है"
धरातल का नंदनवन..
भारतमाता का
मुकुटमणि है
जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख का प्रदेश.कहते
है जम्मू और
कश्मीर की वादियों मे एक अलग
ही नयापन है,
हवाओ मे खास
ताजगी और खुशबु
है, हर जगह
खूबसूरती है.
अगर धरातल पर
कोई स्वर्ग हो
तो वह यही
है, इतनी खूबसूरत है जम्मू और
कश्मीर खूबसूरती.
यह फिल्म
बनाई 1982 मे बनाई
गई थी, उसके
बाद शायद नजर
सी लग गई
जम्मू और कश्मीर
को. खैर, इस
विषय पर वापिस
आएंगे.
2020 - वर्तमान में आते है...
इस साल
कुछ जम्मू और
कश्मीर मे कुछ
घटनाएँ घटीं जिन्हें हमे समझना जरूरी
है.
- इस वर्ष 7 जून को जम्मू और कश्मीर के ध्वजारोहण नहीं हुआ. लगभग 67 साल यह कार्यक्रम हुआ करता था - आखिर जम्मू और कश्मीर का अपना अलग ध्वज जो था (जिसे 7 जून 1952 को मान्यता दी गई थी)
- उत्तर कश्मीर के सोपोर की रहने वाली आलिया तारिक (10) नए कानून के तहत 22 जून को डोमिसाइल सर्टिफिकेट प्राप्त करने वाली राज्य की पहली नागरिक बन गई है
- इसके बाद भारी संख्या में सेवानिवृत्त गोरखा सैनिकों और अधिकारियों समेत साढ़े छह हजार से ज्यादा लोगों को यह दस्तावेज मिल गया है.. अब लोग केंद्र शासित प्रदेश में अपना आशियाना बनाने के साथ ही नौकरियों में आवेदन करने के योग्य हो गए हैं
- बिहार के आईएएस अधिकारी नवीन कुमार केंद्र शासित प्रदेश के पहले स्थाई निवासी बन गए
- हर साल 13 जुलाई को मनाया जाने वाला कश्मीर का शहीद दिवस (जम्मू में काला दिन) इस बार नहीं मनाया गया
- 2015 में जम्मू कश्मीर के लिए केंद्र सरकार की ओर से घोषित किए गए विशेष पीएम पैकेज का मात्र 17 फीसदी हिस्सा ही पिछले साल तक खर्च हुआ था
- जम्मू और कश्मीर के इतिहास में पहली बार ब्लॉक डेवलपमेंट कमेटी के चुनाव हुए. विकास कार्यों में जमीनी स्तर पर लोगों की भागीदारी बढ़ाई गई
- आतंकवाद से जुझ रहे दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित शोपियां जिले के दुननाडी गांव में 73 वर्षो के बाद बिजली पहुंची है.
5 अगस्त 2019...
उपरोक्त सभी
घटनाएँ अपने आप
मे अभूतपूर्व है.
भारतीय अखण्डता और
सार्वभौमत्व को
अधोरेखित करती
है. लेकिन यह
2020 मे ही क्यों
होने लगा?
बात ये
है कि, पंतप्रधान श्री नरेंद्र मोदी
की सरकार ने,
गृहमंत्री श्री
अमित शाह की
अगुआई मे, 5 अगस्त
2019 को एक अभूतपूर्व घोषणा की - जम्मू
एंड कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन ऐक्ट, 2019 के
जरिए आर्टिकल-370 खत्म
कर दिया गया
और राज्य को
दो संघ शासित
प्रदेशों में
परिवर्तित कर
दिया गया, यानि
जम्मू और कश्मीर
और लद्दाख. सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस पर
31 अक्टूबर से
यह कानून लागू
हो गया है,
उसी दिन राष्ट्रीय एकता दिवस भी
मनाया जाता है.
इससे ना सिर्फ जम्मू और कश्मीर दिल्ली के करीब आ गया, बल्कि पूरे भारत वर्ष मे एकसंधता अधोरेखित की गई.
क्या थी धारा 370 (आर्टिकल 370)?
स्वतंत्रता के
बाद छोटी-छोटी
रियासतों को
भारतीय संघ शामिल
किया गया. जम्मू और कश्मीर को
भारत के संघ
में शामिल करने
की प्रक्रिया शुरू
करने के पहले ही पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने उस पर
आक्रमण कर दिया.
उस समय कश्मीर
के राजा हरि
सिंह कश्मीर के
राजा थे. उन्होंने कश्मीर के भारत
में विलय का
प्रस्ताव रखा.
तब इतना
समय नहीं था
कि कश्मीर का
भारत में विलय
करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी
की जा सके.
हालात को देखते
हुए गोपालस्वामी आयंगर
ने संघीय संविधान सभा में धारा
306-ए, जो बाद
में धारा 370 बनी,
का प्रारूप प्रस्तुत किया. इस तरह
से जम्मू
और कश्मीर को भारत
के अन्य राज्यों से अलग अधिकार
मिल गए.
धारा 370 (Article 370) के
प्रावधानों के
अनुसार, संसद को
जम्मू और कश्मीर के बारे
में रक्षा, विदेश
मामले और संचार
के विषय में
कानून बनाने का
अधिकार था लेकिन
किसी अन्य विषय
से सम्बन्धित कानून
को लागू करवाने
के लिए केन्द्र को राज्य सरकार
का अनुमोदन होना
चाहिए था.
क्या थे विशेष अधिकार?
- जम्मू और कश्मीर का अलग झंडा था. वहां के नागरिकों द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था
- भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे
- वित्तीय आपातकाल लगाने वाली धारा 360 भी जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होती थी
- भारत की संसद जम्मू और कश्मीर में रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा कोई अन्य कानून नहीं बना सकती थी
- धारा 356 लागू नहीं, राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं थे
- कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहरी से शादी करती थी तो उसकी कश्मीर की नागरिकता छिन जाती थी. इसके विपरीत अगर वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू और कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी
- जम्मू और कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और कश्मीर) होती थी
- भारत की संसद जम्मू और कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती थी
- जम्मू और कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है.
- भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू और कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते थे
- धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते थे
- कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू था
- कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं था
- धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी.
क्यों हटाया गया?
धारा 370 की
आड़ से राज्य
सरकारे अपने अपने
तरीके से शासन
किया करती थी.
अस्सी के मध्य
से वहा पर
दहशतवाद पनपने
लगा. भारत से
अलग होकर वहा
पर इस्लाम का
राज्य लाने की
बाते होने लगी.
हिंदू कश्मीरी पंडितों को डराया, धमकाया
जाने लगा. दिनदहाड़े उनकी हत्या होने
लगी.
नब्बे का दशक शुरू होते होते हालात बदतर हो गए. हिज्बुल मुजाहिदीन, जेकेएलएफ, लश्कर ए तैबा, जैसे अनेक आंतकवादी संघटन मुंह उठाने लगे. भारतीय और विदेशी नागरिको का अपहरण और हत्या के मामले दिनोंदिन बढ़ने लगे. इसमे एक मामला पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के पुत्री के अपहरण का भी था.
अब्दुल्ला परिवार
और कॉंग्रेस के
इर्दगिर्द यहा
की राजनीति घूमने
लगी, लेकिन ये
कुछ स्थानिक पार्टियों को मंजूर नहीं
था, तो फिर
जुलाई 1993 मे ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस की
नींव रखी गई.
हुर्रियत कांफ्रेंस का काम पूरी
घाटी में अलगाववादी आंदोलन को गति
प्रदान करना था.
यह एक तरह
से घाटी में
नेशनल कांफ्रेंस और
कांग्रेस के
विरोध स्वरूप एकत्रित हुई छोटी पार्टियों का महागठबंधन था.
इस महागठबंधन में केवल वही पार्टियां शरीक हुईं जो कश्मीर को वहां के लोगों के अनुसार जनमत संग्रह कराकर एक अलग पहचान दिलाना चाहती थीं. हालांकि इनके मंसूबे पाक को लेकर काफी नरम रहे. ये सभी कई मौकों पर भारत की अपेक्षा पाक से अपनी नजदीकियां दिखाते रहे हैं.
नब्बे के
दशक में जब
घाटी में आतंकवाद चरम पर था
तब इन्होंने खुद
को वहां एक
राजनैतिक चेहरा
बनने की कोशिश
की लेकिन लोगों
द्वारा इन्हें नकार
दिया गया. इसके
बावजूद हुर्रियत का
अपना अस्तित्व था.
अपना मह्त्व दिखाने
मे वे अक्सर
सफल हो जाते,
खासकर जब भी
भारत पाकिस्तान के
बीच बातचीत होती
तब. एसा प्रतीत
होता था कि
उन्हें दिल्ली से
ज्यादा करीब इस्लामाबाद था. (शायद भौतिक
दूरी ज्यादा भी
हो , लेकिन दिल्ली
तो राजधानी है
भारत की, जहा
से देश चलता
है).
नब्बे के
दशक मे घाटी
मे खून-खराबा
बढने लगा. इस
वजह से हिन्दी
फिल्म इंडस्ट्री, बजाय
कश्मीर के, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया मे
जाके वादियाँ ढूंढने
लगी (1991 मे मणिरत्नम की फिल्म "रोजा"
शायद कश्मीर की
वादियाँ दिखाने
वाली उस दशक
की आखिरी हिन्दी
फिल्म थी).
हमारे सैनिकों को लक्ष्य किया
जाने लगा. आतंक
के कैम्प बनाए
गए, सभी फिरकापरस्तो की डोर कभी
लाहौर, कराची तो
कभी इस्लामाबाद मे
जुड़ी थी. किसीने
आज़ादी के नाम
से, तो किसीने
धर्म से नाम
से तो, किसीने
हुर्रियत के
नाम से अपना
कुनबा बनाया, बढ़ाया.
वहा के नाबालिग और युवाओं को
बरगलाकर उन्हें
आतंक के कुए
मे धकेला. उन्हें
पाकिस्तान भेज
कर ट्रेनिंग दी
और आतंकवादी बना
दिया. आतंक के
कुए, फैक्ट्री बन
गए. युवा पीढ़ी
आतंकवाद के
चपेट मे आ
गई. पत्थरबाजी करने
लगे.
41000++
1990 से सितंबर 2017 तक
करीबन 41,000 लोगों की
मौत हो गई,
मतलब हर दिन
चार लोगों की
मौत. इनमे 22,000 आतंकवादी थे और 14000 सामान्य नागरिक भी. साथ
ही मे 5000 पुलिस
और सेना के
जवान या अधिकारी वीरगति को प्राप्त हुए.
अभी तो सुबह हुई है..
जम्मू और
कश्मीर मे हालात
अभी भी पूरी
तरह से सुधरे
नहीं है, लेकिन
पहले के मुकाबले पिछले डेढ़-दो
सालो से आतंकवादियो और उनके आकाओं
से सख्ती से
निपटा जा रहा
है, खासकर जबसे
NIA ने उनके फंडिंग
की नकेल कसी,
और धारा 370 हटाने
के बाद से,
और स्थानीय राजनीतिक नेताओ को नजर
कैद में रखने
के बाद से.
2020 के पहले सात महीनों मे सौ से ज्यादा आतंकवादियो को ढेर किया गया है, जिनमे, पुलवामा मे किए गए कायर हमले के मास्टरमाइंड मे से एक, हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे संघटन के कई कमांडर और कुछ 'पोस्टर बॉइज' आतंकवादी भी शामिल है.
- अब एक बात जो अच्छी हो रही है, वो यह कि आतंकवादियो को मारने के बाद उन्हें घाटी मे ही दफनाया जा रहा है, इस वजह से शव को उनके परिजनों को सौंपकर उसका जुलूस निकलवाने का मौका, और उसके बाद की पत्थरबाजी का आलम खत्म हो गया
- घाटी मे जिस गति से आतंकवादियो का सफाया शुरू है, उससे इनके तरफ आकृष्ट युवाओं और इनसे हमदर्दी रखनेवाले राजनेताओ को आनेवाले समय मे होने वाले सकारात्मक बदलाव की तस्वीर स्पष्ट होगी ही
- दूसरी ओर स्थानिक राजनीति मे भी बदलाव के आसार है. हाल में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता गिलानी ने इस्तीफा दिया. यह दर्शाता है कि, धारा 370 हटने के बाद से इस क्षेत्र का युवा शायद अब इनकी भ्रमित बातों मे नही आएगा. अलगाववादी नहीं बनेगा
- आतंक का यह कुआँ शायद इतनी जल्दी ना सूखे, लेकिन भारत सरकार के ईमानदार प्रयत्नों की पराकाष्ठा और जनता का साथ, दोनों मिल जाए तो यह समयसीमा कम हो सकती है.
जमीनी इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी बढ़ोतरी..
लोगोके आवागमन
और माल ढुलाई
के लिए अच्छी
सड़के जरुरी है,
लेकिन इनका सबसे
ज्यादा मह्त्व सामरिक
है - सेनाओ के
लिए फ़ौज और
उपकरणों की
आवाजाही के
लिए.इस दृष्टी
से पिछले छह
सालो में जम्मू
और कश्मीर तथा
लद्दाख में नए
मार्ग बनाने पर
विशेष रूप से
ध्यान दिया गया
है.
- कश्मीर अगले दो साल (2022) तक रेलवे नेटवर्क के माध्यम से पूरे भारत से जुड़ जाएगा. कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों के जोड़ने के लिए केंद्र सरकार तेजी से काम कर रही है. इस अहम परियोजना की लागत 10,000 करोड़ रुपए है, इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद दिल्ली से श्रीनगर की यात्रा मात्र 14 घंटे में की जा सकेगी
- जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक की कुल लंबाई 326 किलोमीटर है. दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल दिसंबर 2021 में पूरा होगा, इसके तैयार होते ही ट्रेन सीधे घाटी जा सकेगी
- चिनैनी-नाशरी सुरंग को एशिया की सबसे लंबी सुरंग के तौर पर जाना जाता है. जम्मू से श्रीनगर का सात घंटे का सफर साढ़े तीन घंटे कम हो जाएगा
- साथ ही मे, राज्य में केंद्र सरकार 4-5 नए बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स लगाएगी.

निजी क्षेत्र - अपार संभावनाएं
केंद्र सरकार
जम्मू और कश्मीर व लद्दाख
की हर आधारभूत सुविधा दुरुस्त करने
पर लगी हुई
है, तो वहीं निजी
क्षेत्र को
यहां कारोबार की
अपार संभावनाएं दिख
रही हैं. - 43 कंपनियों ने 15 हजार करोड़ रुपये के 62 निवेश प्रस्ताव को लागू करने की इच्छा जताई है
- श्रीनगर में नया मल्टीप्लेक्स बनकर तैयार हो रहा है
- यहां का फुटबॉल क्लब धूम मचा रहा है. यहां नौजवानों के पास कुछ करने को ही नहीं है तो पत्थर उठा लेते थे. अब केंद्र सरकार उन्हें मौके दे रही है तो भला कौन पत्थर उठाएगा.
लद्दाख
पर भी विशेष ध्यान..
लद्दाख अब
केंद्रशासित प्रदेश
बन गया है.
यहा की जनता
की ये सत्तर
साल पुरानी मांग
पिछले अगस्त मे
पूरी हुई. अब
लद्दाख मे दो
जिले है - लेह
और करगिल. लेह
मे ज्यादातर बुद्धिस्ट है और करगिल
मे शिया मुस्लिम.
- हाल ही में पंतप्रधान मोदी ने यहा का पहला विश्वविद्यालय शुरू करने की घोषणा की, जिसमें बुद्धिस्ट स्टडीज के लिए एक सेंटर होगा, इस वज़ह से यहा के हज़ारों नौजवानो को उच्च शिक्षा के लिए प्रदेश से बाहर जाने की संभावना कम होंगी
- पहले जब लद्दाख, जम्मू और कश्मीर मे था तब उस प्रभाग को राज्य के बजट का महज 2-3% निधि मिलता था, जबकि लद्दाख का भूभाग, जम्मू और कश्मीर राज्य का 65% था. इस वज़ह से यहा विकास के अवसर काफी कम थे.
हालांकि धारा
370 हटाने के फायदे
ज्यादा ही है,
लेकिन प्रदेश की
जनता मे एक
डर भी है
कि बाहरी लोग
रिहायशी के
लिए आना शुरू
होंगे जिसके नकारात्मक असर यहा की
संस्कृति और
जनसंख्या (demography) पर
हो सकता है.
आशा करते हैं कि केंद्र सरकार इस विषय मे जागृत है और उचित कदम उठाए जाएंगे.
शिक्षा और रोजगार के अवसर..
जम्मू और
कश्मीर के वृद्धिंगत विकास के लिए
प्रधानमंत्री श्री
मोदी ने साल
2015 मे रू 80,000 करोड़
के विशेष पैकेज
की घोषणा की
थी. इसमे यहा
पर नए एम्स,
आईआईएम, आईआईटी के
निर्माण के
साथ, बिजली उत्पादन, नए हाईवे बनाना
मुख्य रूप से
शामिल है.
केंद्र सरकार
जम्मू और कश्मीर
के युवाओं को
रोजगार के नए
अवसर बनाने के
लिए भी प्रयासरत है. नई डोमिसाइल पॉलिसी आने से
रोजगार मे जो
सकारात्मक बदलाव
होगा उससे एक
विश्वासभरा वातावरण तयार होगा.
परिसीमन (delimitation) होगा गेम चेंजर..
जम्मू और
कश्मीर मे कुल
87 विधानसभा क्षेत्र है - जम्मू (10 districts) मे
37, कश्मीर
(10 districts) घाटी मे 46 (north Kashmir
25, 6 districts and south Kashmir -21, 4 districts) और
लद्दाख मे 4.इस
वजह से हमेशा
घाटी मे जो
जीता वह राज्य
मे सरकार चलाता
था. खेल आसान
था. जम्मू और
कश्मीर मे पहले
बाइस जिले थे,
अब वहा बीस
जिले होंगे. दो
जिले लद्दाख मे
शामिल किए गए
हैं.
अब दोनों
भी क्षेत्रों मे
परिसीमन (याने
विधान सभा क्षेत्र नए सिरे से
बनाए जाएंगे) होगा.
अपेक्षित है
कि परिसीमन होने
के कश्मीर घाटी
का राजकीय वर्चस्व खत्म होगा, और
जम्मू क्षेत्र को
भी राजनीतिक महत्व
प्राप्त होगा.
- एक्ट के अनुसार जम्मू और कश्मीर में कुल 107 सीटें हैं (POK की 24 खाली सीटें भी इसमें शामिल हैं), जो परिसीमन के बाद बढ़कर 114 हो जाएंगी.
- जम्मू और कश्मीर की विधानसभा की अवधि भी अब देश की अन्य विधानसभाओं जैसे 5 साल की होगी, ना कि पहले की तरह 6 साल की.
- लोकसभा की बात करें तो जम्मू और कश्मीर में कुल 5 सांसद होंगे, जबकि लद्दाख में दो सांसद होंगे.
विकास ही लाएगा कामयाबी, खुशहाली..
जम्मू और
कश्मीर सिर्फ सेब,
अक्रोड, कशीदाकारी, पशमीना
शाल, बर्फ, दल
लेक, या केसर
के लिए मशहूर
नहीं होनी चाहिए.
उसे एक विकासरत की पहचान करने
का मौका देना
होंगा. भारत के
अन्य राज्यों मे
जैसे लोगों का
आपस मे मिलाप
है वो यहा
भी जुटाना होंगा.
भारत के अन्य
राज्यों के
नागरिको को
चाहिए कि जम्मू
और कश्मीर मे
सिर्फ फ़िल्मों मे
दिखाई देने वाले
स्थलों को देखने
के बजाय यहा
की आम जनता
से संवाद स्थापित करे, उनसे लगाव
बढाए.
पिछड़ा नहीं है जम्मू और कश्मीर..
किसी भी
राज्य का पिछड़ापन महिलाओं की
स्थिति और शिक्षा
के आकड़ों से
पता चलता है.
- केरल मे 6 साल और उससे अधिक उम्र की 95.4 फ़ीसदी महिलाओं ने स्कूली शिक्षा प्राप्त की है.जम्मू और कश्मीर में इस वर्ग की महिलाओं की स्थिति बिहार (56.9%), उत्तर प्रदेश (63%) और आंध्र प्रदेश (62%) के मुक़ाबले कहीं बेहतर है. यहां इस वर्ग की 65.6% महिलाओं ने स्कूली शिक्षा ली है.
- जम्मू और कश्मीर अन्य संकेतकों जैसे घरों में बिजली की उपलब्धता के मामले में बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से भी आगे है.
- जम्मू और कश्मीर में बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र की तुलना में कहीं बेहतर सफ़ाई सुविधाओं का इस्तेमाल किया जाता है.
- जम्मू और कश्मीर उन कुछ राज्यों में से है जहां शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है.
- कई भारतीय राज्यों की तुलना में जम्मू और कश्मीर में लिंगानुपात भी बेहतर है. जम्मू और कश्मीर में प्रति 1,000 पुरुषों पर 972 महिलाएं हैं. जबकि दिल्ली (854), उत्तर प्रदेश (995) और महाराष्ट्र (952) जैसे राज्यों में लिंगानुपात जम्मू और कश्मीर से कहीं कम है.
बौखलाए पड़ोसी..
धारा 370 हटाने
के बाद से
हमारे पड़ोसी, नेपाल,
पाकिस्तान और
चीन बौखलाए हुए
है. इन्होंने सामुहिक रूप से इसकी
निंदा की. अगर
भारत, जम्मू और
कश्मीर को सशक्त
बनाता है तो
उसका नुकसान इन
पड़ोसियों को
होंगा. आतंकवाद, ड्रग्स
के गैरकानूनी धंधे
बंद होंगे.
- भारत के साथ तनावपूर्ण स्थिति के बीच चीन भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध एकजुट करता नजर आ रहा है. नेपाल, पाकिस्तान के बाद अब अफगानिस्तान और बांग्लादेश को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश करता दिख रहा है.
- दूसरीओर, चीन के साथ पाकिस्तान के संबंध गहराते जा रहे हैं. चीनके के महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के तहत CPEC एकअहम हिस्सा है जिसे लेकर पाकिस्तान उत्साहित है.
योग्य प्रसार..
नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग(एनसीईआरटी) ने 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में एक चैप्टर में बड़ा बदलाव किया है. अब इस किताब से जम्मू और कश्मीर के अलगाववादियों से जुड़ी सामग्री हटा दी गई है और उसकी जगह चुनावी राजनीति और प्रदेश के विशेषाधिकार खत्म करने जैसी सामग्रियां शामिल की गई हैं. 'भारत में आजादी के बाद की राजनीति' नाम की किताब के 'क्षेत्रीय आकांक्षाएं' चैप्टर में जम्मू और कश्मीर के राज्य से संघ शासित प्रदेश बनने की जानकारी भी जोड़ी गई है.
नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग(एनसीईआरटी) ने 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में एक चैप्टर में बड़ा बदलाव किया है. अब इस किताब से जम्मू और कश्मीर के अलगाववादियों से जुड़ी सामग्री हटा दी गई है और उसकी जगह चुनावी राजनीति और प्रदेश के विशेषाधिकार खत्म करने जैसी सामग्रियां शामिल की गई हैं. 'भारत में आजादी के बाद की राजनीति' नाम की किताब के 'क्षेत्रीय आकांक्षाएं' चैप्टर में जम्मू और कश्मीर के राज्य से संघ शासित प्रदेश बनने की जानकारी भी जोड़ी गई है.
चलते चलते..
जम्मू और
कश्मीर भारतमाता का
किरीट है, मुकुटमणी है. प्राचीनकाल से
ही कश्मीर महर्षि
कश्यप के नाम
पर हिन्दू और
बौद्ध संस्कृतियों का
पालना रहा है. ब्रह्म
से ब्रह्मा, ब्रह्मा से मरीचि, मरीचि
से कश्यप ऋषि
ही कश्मीर के
मूल निर्माता थे.
कहते है कश्मीरी पंडितों का
इतिहास पाच हजार
साल पुराना है.
- एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे, यह कहकर डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भारत की अखण्डता के लिए यहा संघर्ष किया, और बलिदान दिया.
- जम्मू और कश्मीर भौगोलिक, सांस्कृतिक, नैसर्गिक और सामरिक रूप से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. सिंधु संस्कृति की पहचान है. भावनिक नाता है
- अस्सी के दशक से यहा हिन्दुओ का नरसंहार किया गया. आतंकवादियो के आड़ से प्रदेश का इस्लामीकरण करने का प्रयास किया गया (जी हाँ, यहा isis का झंडा कई बार खुलेआम फहराया गया है). इसकी चपेट मे जम्मू क्षेत्र भी आ रहा था.
- आजादी के दो दशक तक जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा होना कुछ हद तक ठीक था, लेकिन उसे चिरकाल के रखना, और उसकी आड़ मे देश तोड़ने की राजनीति करना यह बुद्धि से परे है.
धारा ३७० हटाने के लिए मौके पहले भी थे, लेकिन राजनैतिक मंशा नहीं थी. खैर जो
मरम्मत तब होनी
थी, वो आजादी
के सत्तर सालो
बाद हुई. देर
आए दुरुस्त आए,
लेकिन अब यहा के विकास की गति बढ़ानी होंगी, हर क्षेत्र में - मानवीय, स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यापारिक, व्यावसायिक और सामरिक. शांति, जिंदगी और खुशहाली को सिर्फ मौका देने के अवसर से बहोत परे बढ़ाना होंगा.
जम्मू और कश्मीर, लद्दाख मे हालात सुधर रहे हैं. खास कर कश्मीर घाटी मे नया बदलाव आएगा ऐसी अपेक्षा है. लेकिन हम ना भूले उन सभी बलिदानों (सैन्यबल, पुलिस, प्रशासन, समाज कार्यकर्ता, सामान्य नागरिक) को, जो 1947 (और उसके पहले से भी) से अखंड भारत की सम्प्रभुता के लिए, और जम्मू और कश्मीर को भारत से जुड़े रहने के लिए दिए गए. कभी ना भूले.
जम्मू और
कश्मीर, और कश्मीरीयत पर विशेष प्रेम
करने वाले भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता "कश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा" से
कुछ पंक्तिया यहा
याद आती है..
"धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो.
अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध
काश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा."
कश्मीर खूबसूरत था, और चिरकाल वैसेही रहेगा.
कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग था, मुकुटमणि है और चिरकाल वैसेही रहेगा !!
जय हिंद.
धनंजय मधुकर
देशमुख, मुंबई
Dhan1011@gmail.com
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च
और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है.
इस पोस्ट मे
दी गई कुछ
जानकारी और
कविता / गीत इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा
की गई है.)
If youth returns from tererisum then it could be a greate achievement govt.is doing lot for their betterment.
ReplyDeleteYes, agree, and that is why emphasis is on getting best educational institutions, jobs, reforms in administration in the region. Let us hope they never ever resort to stone pelting again. 🙏
DeleteLet's hope so
ReplyDelete