Skip to main content

मौत का कुआँ..

12 जुलाई 20, मुंबई
मौत का कुआँ.. 
आप मे से कईयों ने अपने बचपन मे सर्कस मे "मौत का कुआँ" देखा होगा. लकड़ी का एक बड़ा सा कुंआ बनाया जाता है, इसमे स्टंटबाज अपनी बाइक (कभी कार भी) लेकर उतरते है, और फिर कुए मे, नीचे से ऊपर की ओर, ऊपर से नीचे की तरफ घेरे मारते है. जब स्टंटबाज अंदर जाता है तो थोड़ा बहुत परेशान नजर आता है, साथ ही मे दर्शक भी साँस थामकर पूरा खेल देखते है. लेकिन जैसे-जैसे वो घेरे लेने लगाता है, रोमांच बढ़ता जाता है. उसको प्रोत्साहित करने के लिए आवाज लगाते है. खैर थोड़े देर मे ये स्टंटबाज कुए से बाहर आता है, लेकिन अब वो बदला हुआ होता है. उसके चेहरे पर जीत का विश्वास साफ झलकता है, सामान्य लोगों के लिए वो अब एक हिरो से कम नहीं. फिल्मी हीरो भी ये स्टंटबाज खुद से नहीं कर पाते. जान जाने का डर, कानून और लोकप्रियता मे कमी, इन वजहों से आजकल इस तरह के मौत के कुए दिखना कम या तो बंद हो गए है, हालांकि फ़िल्मों में कभी-कभार दिखाई देते है (जैसे, भारत). खैर.

अपराधीकरण का कुआ
इंस्टेंट पैसा, रोमांच या  बदले की भावना से कई युवा अपराधीकरण के कुए में धकेले जाते. शिक्षित या अशिक्षित सभी प्रकार के. कभी राजनेताओ के आशीर्वाद से, तो कभी व्यपारियो के बल पर ये कुए चले जाते है. समय-समय पर नए हीरो बनते है, मारे जाते है, जो बचते है बाहुबली नेता बनकर उभर आते है.

कुए नकली, परेशानी असली..
असली मौत के कुए का खेल या तो बंद हो गया या कम हो गया, लेकिन, समाज मे हजारो नकली मौत के कुए बन गए. हालांकि ये सभी कुए, असली मौत या मौत का डर नहीं देते. देश और समाज के लिए ये नकली कुए परेशानी जरूर पैदा करते है.
नकली कुए बहोत किस्म के है, उनको चलाने वाले भी बहोत है, लेकिन सबके आका गिनेचुने ही है. जिनमे से कई भारत मे है, यहा के नागरिक है, इनमे से कुछ चीनी खिलौने है, कुछ पाकिस्तानी मकड़िया है.

ये कुआँ है लाल और उदारमतवादी..
अलग-अलग तरह के कुए बनानेवालो मे कुछ अपनेआप को उदारमतवादी, मानवतावादी, धर्मनिरपेक्ष कहनेवाले लोग (जिनमे मुख्यतः वामपंथी, लेखक, राजनेता, कलाकार, खिलाड़ी, विधिज्ञ, अर्बन नक्षल, पत्रकार, मीडिया लोग पर्यावरणवादी एनजीओ, तथा जिहादी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले संगठन होते है), अपने-अपने कुए को एक रोमांचकारी खेल की तरह पेश करके युवाओं को अपने झांसे मे लेते है. उनको धकेलते है. कुछ युवा बचके वापिस निकलते है तो समाज के एक तबके के लिए हीरो बन जाते है, जैसे टुकड़े टुकड़े गैंग के लड़के कन्हैया, उमर, और भी कई है, गुमनाम है.

आजकल भारतद्रोह का कुआँ ज्यादा चल रहा है....
भारत द्रोह - फिर वो जैसे भी करते आए - भारत का इतिहास गलत पेश करना, भारतीयता की मूल्यों को गलत बताना, सेना से हरचीज़ पर सबूत माँगना, सेना के अफसरों को गाली देना, आतंकवादियों के लिए हमदर्दी रखना, मीडिया, सोशल मीडिया मे उसका दिनरात इजहार करना (वो कितना अच्छा गणित विषय का शिक्षक था, या कैसे अच्छा आदमी बनना चाहता था, इत्यादी).

भारत द्रोह के साथ हिंदू विरोध..
पता चला है दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपीयों मे से एक दंगों के कुछ दिन पहले तक मलेशिया में गया था, कहते है वहा उसने प्रतिबंधित धर्मगुरु जाकीर नाईक से भी मुलाकात की थी. जाच अभी शुरू है, लेकिन इसमे अचम्भा नहीं होना चाहिए, अगर जो जो लोग अबतक पकड़े गए है इनके तार आपस मे जुड़े हों.

बताया जाता है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध मे हुए आंदोलन को जिंदा और पूरे देश में फैलाने के लिए, गाव-गाव 'शाहीनबागबसाने के लिए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे संगठनों ने काफी रसद (जान, और माल) पूराई. आतंक विरोधी गतिविधियों के लिए प्रतिबंधित किए गए सिमी संघटन का ही एक रूप PFI है ऐसा  प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) की शुरुआती जाच मे स्पष्ट हो गया.

एक जगह खेल खत्म कर कुए के मालिक किसी नई जगह अपना कुआँ लगाते है, नए खिलाड़ी. कुए मे से बाहर निकलने के बाद इनके पुराने खिलाड़ी हीरो जो बन जाते है अपनी स्टंटबाजी और किसी नए आका को दिखाने के लिए काम मे लग जाते है.

ये मीडिया का कुआँ है जनाब..
सभी को खौफनाक स्टंटबाजी करना जरूरी है ऐसा भी नहीं. आजकल कुछ न्यूज चैनल्स पर डिबेट के नाम पर, हर तरह के विचारधारा के लोगों को शामिल करते है जिससे चर्चा और गरम होती है. चैनल का TRP बढ़ता है. शुरुआती दौरों मे अलग विचारधारा के नए खिलाड़ी हल्के से परेशान जरूर लगते हैं (क्योंकि मीडिया ये के कुए मे उन्होंने पहले कभी डुबकी नहीं लगाई थी), लेकिन जैसे जैसे दिन बितते है, इनमे नया आत्मविश्वास आता है, साथ ही मे शायद कुछ रसद भी पहुच जाती होगी - इसका नतीज़ा ये कि, ये नए खिलाड़ी अब न्यूज चैनलो पे दहाड़ने लगते है, लडने-झगड़ते है. समझ लीजिए कि एक नया स्टंटबाज पैदा हो गया - कुछ न्यूजचैनल की बदौलत. एक बार वो टीवी पर आने लगता है, अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अपने तबके के लोगों मे पैठ बनाना शुरू करता है, और उसके बाद नेता बनने के लिए तयार! ये कुआँ मौत नहीं देता लेकिन मौत के सौदागरों की तरफदारी करनेवालों को प्रसिद्धि जरूर दिलवाता है.
आतंक का कुआँ..
यह सबसे दर्दनाक है. रोमांचकारी कम और मौत ज्यादा. जम्मू और कश्मीर मे, अस्सी के दशक से, वहा काफी नए नए कुए बनाए गए, लगाए गए. सभी की डोर कभी दिल्ली तो कभी इस्लामाबाद मे जुड़ी थी. किसीने आज़ादी के नाम से, तो किसीने धर्म से नाम से तो किसीने हुर्रियत के नाम से कुआँ बनाया. वहा के नाबालिग और युवाओं को बरगलाकर अपने अपने कुए मे धकेला, उन्हें पाकिस्तान भेज कर ट्रेनिंग दी और आतंकवादी बना दिया. आतंक के कुए, फैक्ट्री बन गए. युवा पीढ़ी आतंकवाद के चपेट मे गई. 1990 से सितंबर 2017 तक करीबन 41000 लोगों की मौत हो गई, मतलब हर दिन चार लोगों की मौत. इनमे 22000 आतंकवादी थे और 14000 सामान्य नागरिक भी. साथ ही मे 5000 पुलिस और सेना के जवान या अधिकारी वीरगति को प्राप्त हुए.

जम्मू और कश्मीर मे हालात अभी भी पूरी तरह से सुधरे नहीं हैलेकिन पहले के मुकाबले पिछले डेढ़-दो सालो से आतंकवादियो और उनके आकाओं से सख्ती से निपटा जा रहा है, खासकर जबसे NIA ने उनके फंडिंग की नकेल कसी, और अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से. 2020 के पहले छह महीनों मे नब्बे से ज्यादा आतंकवादियो को ढेर किया गया है, जिनमे, पुलवामा मे किए गए कायर हमले के मास्टरमाइंड मे से एक, हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे संघटन के कई कमांडर और कुछ 'पोस्टर बॉइज' आतंकवादी भी शामिल है.

घाटी मे जिस गति से आतंकवादियो का सफाया शुरू है, उससे इनके तरफ आकृष्ट युवाओं और इनसे हमदर्दी रखनेवाले राजनेताओ को आनेवाले  समय मे होने वाले सकारत्मक बदलाव की तस्वीर स्पष्ट होगी ही. दूसरी ओर स्थानिक राजनीति मे भी बदलाव के आसार है.आतंक का यह कुआँ शायद इतनी जल्दी ना सूखे, लेकिन भारत सरकार के ईमानदार प्रयत्नों की पराकाष्ठा और जनता का साथ, दोनों मिल जाए तो यह समयसीमा कम हो सकती है
ड्रग्स का कुआँ.. नशीले पदार्थ काफी अर्से से देश की युवा पीढ़ी के एक तबके को तबाह कर रहे है. देशी विदेशी तस्करों के द्वारा, क्या गाव क्या शहर, सब जगह ढेरों ड्रग्स के कुए बने है. पंजाब मे तो इसका प्रभाव बहुत ज्यादा है. खेती की तरफ उदासीनता, बेरोजगारी और पियर प्रेशर की वजह से राज्य का युवा पीढ़ी नशीले पदार्थों के अधीन हो रहे हैं. पहले राजस्थान की ओर से आने वाली अफीम गांजा , उसके बाद राज्य मे केमिकल कंपनिओ द्वारा बनाया गए ड्रग्स, और फिर अब पाकिस्तान / अफगानिस्तान के तरफ से आनेवाली हेरोईन..इनकी वजह से यहा समाज के हर तबके मे काफी मात्रा मे नशाखोर हो गए है. नशा करने के लिए पैसे पाने के लिए अपने परिजनों की हत्या होने के मामले सामने आए है.

नशे के ये कुए आज देश के अनेक शहरो मे फैलाए जा रहे है. इनको बंद करने के लिए नशे के खिलाफ सरकारों की तरफ से कारवाई होनी चाहिए और साथ ही मे युवाओं मे और उनके परिवार के सदस्यों मे बड़ी पैमाने पर जनजागृती होनी चाहिए. साथ ही मे, नशे के कुए से बाहर निकले हुए युवाओं को समाज ने पूरी तरह से अपने साथ सम्मिलित करना भी जरूरी है, उनका अच्छे तरीके से पुनर्वसन होना चाहिए.

ये कुआँ है सबसे दर्दनाक..
किसी भी स्पर्धा के अंत मे, पाच-दस विजेता उभर आते है. कुछ बीच मे रह जाते है, और कुछ आखिर मे छूट जाते है. बीच और आखिर वालों मे कई ऐसे होते है जो इसे अपनी हार मान बैठते है. फिर इस हार के लिए खुद को कोसते है, और अपने आप मे सिमट जाते है. इनमे से कुछ मानसिक रूप से तनावग्रस्त हो जाते है, और फिर एक अनंत खाई मे खो जाते है. इस खाई या कुए का नाम है डिप्रेशन. डिप्रेशन कोई बीमारी नहीं है, यह एक मानसिक अवस्था है. इसका इलाज है - औषधि, मानस शास्त्र दोनों मे. लेकिन, इन दो शास्त्रों के साथ महत्पूर्ण है सामाजिक दृष्टिकोन. जब भी कोई व्यक्ति डिप्रेशन में जाता है तो वह, उसके आसपास के लोगों में उसकी निशानियाँ छोड़ता है, सिग्नल देता है. जरूरत है उन सिग्नल को वक्त पर ही पकडने की, और जो प्रभावित है उनके साथ समझदारी से बर्ताव करने की.

WHO की माने तो इस वक्त दुनिया मे 26.4 करोड़ लोग डिप्रेशन से प्रभावित है, सालाना करीबन आठ लाख लोग इसका पूर्णरूप से शिकार होकर मृत होते हैं (ज्यादातर आत्महत्या करते है).

डिप्रेशन आने की वजहे अलग-अलग हो सकती है, जैसे जीवनशैली मे अचानक बदलाव आना (नीचे की ओर), स्पर्धा (पढ़ाई, व्यवसाय, व्यापार, नौकरी, और सामाजिक). इन सब का इलाज हो सकता है, बस जरूरत है अपने आसपास के लोगों से जुड़े रहने की, उनको समझाने की. यह कोई रोग नहीं हैजिसे होता है वो समाज के लिए अमान्य या अनुचित (टैबू) या कलंक (stigma) नहीं होना चाहिए. सामाजिक समुपदेशन (सोशल काउन्सलिंग) बड़ी भूमिका निभा सकता है. स्पर्धा अगर हो भी तो हर्डलरेस जैसी हो, जिसमें गिरे भी तो आगे गिरे, ना की मौत के कुए जैसे, जिसमें अंदर ही अंदर गिर पडे.

चलते चलते..
पानी के कुओं का उपयोग शायद कम हो गया हो, लेकिन मौत के अदृश्य कुए अभी भी फल-फूल रहे है. इन्हें सुखाना होंगा, बंद करना होंगा. हर समस्या का हल होता है. रोमांच पाने के लिए, या निराशा छुपाने के लिए -आतंकवाद, नशीले पदार्थ का सेवन, समाज मे गलतफ़हमी फैलाना, या फिर निराश होना ये किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता.

भारत की मीडियन उम्र लगभग 27 साल है, इसका मतलब, आधी जनता 27 साल से नीचे है और आधी ऊपर. अगर हम 30 साल तक को युवा समझे तो इस हिसाब से भारत युवाओं का देश है. युवाओं का निराश होना किसी भी लोकतंत्र के लिए सही नहीं है, इनको सामाजिक व्यवस्था के जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए समाज और सरकार दोनों को, जल्द से जल्द उपयुक्त उपाययोजना लानी होंगी, इन्हें खुश रहने के आयाम बताने होंगे, दूसरों के खुशी का कारण बनाना होंगा.

ठीक वैसे ही जैसे, हाल ही में रिलीज हुई चरित्र कलाकार (character artist) संजय मिश्रा की फिल्म 'कामयाब' का डायलॉग 'बस इंजॉइंग लाइफ, और कोई ऑप्शन थोड़ी है?' हमे बहुत कुछ सीखा जाता है. किसीने सही कहा है,
 "खुशी के कारण बहुत मिलेंगे,
कभी किसी की खुशी का कारण बनो।
जो बांटोगे वही मिलेगा,
दु: बांटो या सुख बांटो।"
खुश रहिए, खुशहाली बढ़ाए.

धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
Dhan1011@gmail.com

Comments

  1. Very good insight on the subject touching social point of view.

    Keep writing. All the best .

    Take care.
    Paresh Rathi

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

TrendSpotting : New and Rising - Pickleball

20 November 2022, Mumbai Let’s have a ball, Pickleball! A school friend of mine recently got transferred from Kolkata to Mumbai. Being a fitness-oriented person, he asked me if there are any good recreation (sports) facilities nearby. Knowing that he got an apartment in the heart of Vile Parle East, I was quick to recommend Prabodhankar Thackeray Krida Sankul (PTKS) – an obvious choice for anyone living in the western suburbs to relax, unwind, train and play!   While he was thrilled to see the Olympic size swimming pool, he got curious about a game that a group of boys were playing in the open area. While the game looked like lawn tennis, but it was not. It appeared to be an easy yet fitness-oriented game to him. When I told him that it is called “ Pickleball” he was like I was kidding! It was natural, A commoner may be amused to hear “Pickleball” being name of a sport! Well, that it is true.   I then took up the opportunity to introduce him to some trainers of the...

उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची!

23 एप्रिल 23, मुंबई  उद्योगांवर बोलू काही - विदर्भात उद्योगांची भरारी गरजेची! पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत केंद्र सरकारने अमरावतीमध्ये 'मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाईल पार्क' घोषित केला आहे. देशात सात शहरांत अशाप्रकारचे पार्क होणार असून यामध्ये अमरावतीचा समावेश आहे. अमरावतीसह गुजरात, मध्य प्रदेश, तामिळनाडू, तेलंगण, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश याठिकाणी पीएम मित्रा योजनेअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहे. पहिल्या टप्प्यात सातही प्रकल्पांसाठी चार हजार कोटीची गुंतवणूक होणार आहे. अमरावतीच्या प्रकल्पात १० हजार कोटींची गुंतवणूक होणार आहे. नांदगाव पेठ औद्योगीक वसाहतीजवळील पिंपळविहीर येथे सदर प्रकल्प होणार आहे, जवळपास ३ लाख लोकांना रोजगार त्‍यातून मिळणार आहे.    ‘पाच एफ’ अर्थात ‘फार्म टू फायबर टू फॅक्टरी टू फॅशन टू फॉरेन’ याअंतर्गत सदर प्रकल्प उभारले जाणार आहेत. सदर प्रकल्पासाठी केंद्र सरकार ७०० कोटी खर्च करणार असून या पार्कचे मार्केटिंग केंद्र सरकार राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय स्तरावर करणार आहे. यातूनच अनेक मोठे राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय ब्रँड अमरावतीला येणार असल्याची माहिती आहे. ...

राजकीय आरसा - श्री देवेंद्र फडणवीस

21 जुलै 2022, मुंबई राजकीय आरसा – श्री देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस काल सर्वोच्च न्यायालयाने ओबीसी आरक्षणाचा मुद्द्यावर निर्णायक बाजू घेऊन त्यांचे राजकिय आरक्षण बहाल केले. गेले अडीच-तीन वर्ष फोफावलेल्या अनिश्चिततेला पूर्णविराम मिळेल असे दिसतेय. मागच्या जुलै मध्ये तत्कालीन विरोधीपक्षनेते आणि माजी मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फडणवीस यांनी सदनात घोषणा केली होती की त्यांचे सरकार आले तर तीन ते चार महिन्यात हे आरक्षण बहाल करण्यात येईल असे प्रयत्न करू. काळाची किमया बघा, आज ते उपमुख्यमंत्री आहेत आणि हा निर्णय आला. पदग्रहण केल्यापासून दोन-तीन आठवड्यात त्यांनी या विषयी निर्णायक हालचाली केल्या असे म्हंटले जाते. असो, राज्यात राजकिय स्थैर्यासाठी हे होणे आवश्यक होते. तसे बघितले गेले तर, राज्यात स्थैर्य येईल असे दर्शवणारी गेल्या चार आठवड्यात घडलेली ही एकमेव घटना नाही. याची नांदी जून मध्ये घडलेल्या राज्यसभा निवडणुकीत लागली होती. भाजपचे श्री धनंजय महाडिक यांनी भाजप आणि मित्र पक्षांकडे संख्याबळ नसतांना अटीतटीच्या लढतीत तिसरी जागा जिंकली. त्या वेळेस महाविकास आघाडीच्या तीन मतांवर आक्षेप आला होता, त्यातील...