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सौर का है दौर..


27 जुलाई 20, मुंबई
सौर का है दौर..
हिंदी गीतकार रामानंद शर्मा जी का फिल्म परिणय (1974) "जैसे सुरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया, ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम " का यह गीत आप मे से कई लोगों ने सुना होंगा.

सुरज की गर्मी तन जरूर जलाती है, लेकिन अब धन की वर्षा का स्त्रोत भी बन रही है.हम सब धीरे धीरे सूरज की गर्मी को अच्छी तरह समझ कर, उससे ऊर्जा प्राप्त करने के स्त्रोत निर्माण करते रहे है.

गाव से शहर..
पहले गाव मे सोलर चूल्हा चला करता था, फिर सोलर लैम्प आया. उसके बाद हमे जब समझ मे आई इसकी ताकत तो फिर उससे पानी गर्म करने के लिए सोलर पावर पर चलने वाली गीजर बना डाली. धीरे धीरे सोलर पावर पर चलने वाला सौर पंप, सौर स्ट्रीट लाइट और अन्य वस्तू का उपयोग बढ़ रहा है. लेकिन यह सब वैयक्तिक स्तर पर या फिर छोटे स्तर पर हो रहा था. सोलर पावर का असली पावर जानने मे हमने जरा देर ही कर दी.

देर जरूर कर दी है आने मे.. 
लेकिन आए तो. हाल ही में मध्य प्रदेश के रिवा मे साढ़े सात सौ मेगावाट का सोलर पावर जनरेशन शुरू हुआ. कहते हैं यह एशिया का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट है.आजादी के सत्तर साल बाद यह घटना घटी है, मेरे खयाल से शायद बिस-पच्चीस साल देर हो गई. सोलर पावर प्लांट शुरुवात में महंगे हो सकते है, लेकिन उनके रखरखाव के लिए ज्यादा खर्चा नहीं आता, और यह कार्बन क्लीन है. मतलब प्रदूषणमुक्त. सौर ऊर्जा की कीमत भी कम होती है.
भारत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में सौर ऊर्जा बड़ी मात्रा में उप्तन्न की जाती है.

सोलर पॅनल..
सोलर एनर्जी के लिए जरूरी होता है सोलर पॅनल. सोलर पॅनल बनाने के लिए जरूरी होता है सोलर सेल या फोटोवोल्टेक सेल. उसे सोलर फैब्रिक भी कहा जाता है. यह इसकी जान होती है, इसी पर आपका पॅनल कितनी ऊर्जा सोख लेंगा.

क्या होता है फोटोवोल्टेक सेल?
फोटोवोल्टेक सेल सिलिकॉन डाईआक्साइड से बनता है. इसकी कार्यक्षमता किस तरह का सिलिकॉन डाइआक्साइड का इस्तमाल हुआ उस पर निर्भर होती है, जैसे मोनो क्रिस्टलाइन या पॉली क्रिस्टलाइन. सोलर सेल्स को तीन जनरेशन में बाटा जा सकता है (कंप्युटर के प्रोसेसर की तरह).
  • फर्स्ट जनरेशन फोटोवोल्टेक सेल वेफर टेक्नोलॉजी से बनते है, पारंपरिक या छोटे उपयोग के लिए सही माने जाते हैं.
  • सेकंड जनरेशन फोटोवोल्टेक सेल का ईस्तेमाल ज्यादातर बड़े रिहायशी इलाके मे या व्यावसायिक तौर पर बड़ी मात्रा में बिजली का उत्पादन करने के लिए होता है.
  • थर्ड जनरेशन फोटोवोल्टेक सेल पर अभी अनुसंधान (रिसर्च) शुरू है.
कहा बनते हैं अच्छे फोटोवोल्टेक सेल?
अमरिका, कनाडा, चीन, जर्मनी, जापान, ताईंवान फोटोवोल्टेक सेल टेक्नोलॉजी मे आगे है. लेकिन सबकी अपनी अपनी कार्यक्षमता है. जहा पर चीन और ताईंवान मे बने फोटोवोल्टेक सेल की कार्यक्षमता और उम्र (lifespan) औसत से मध्यम होती है इसलिए सस्ते होते हैं , वही अमरिका, जापान या यूरोपीयन देशों मे बने फोटोवोल्टेक सेल की कार्यक्षमता और उम्र (lifespan) मध्यम से उच्चस्तरीय होती है इसलिए महंगे होते हैं.

लेकिन भारत मे नही!!
भारत मे सोलर पॅनल बनानेवाले कंपनियां तो बहुत है (वैसे ही जैसे कॉम्प्युटर असेंब्ली करने वाले होते है), लेकिन सोलर फैब्रिक या फोटोवोल्टेक सेल बनानेवाली कंपनियां गिनी चुनी ही है. इनकी कार्यक्षमता मध्यम भी हो तो भी इनकी कीमत, चीन जैसे देशों से आने वाले सस्ती फोटोवोल्टेक सेल के सामने ज्यादा लगती है, जिस वजह से असेंबली यूनिट्स उन्हें (चीन) पसंद करते है.

क्यों नहीं?
एक तो फोटोवोल्टेक सेल बनाने के लिए शुरुआती लागत काफी होती है. समझो आप 100 MW की क्षमता वाला प्लांट लगते हो तो करीबन सौ करोड़ रुपए की लागत आती है. इनमे से निकला हुआ माल चीनी फोटोवोल्टेक सेल के सामने कीमत मे टिक नहीं पाता. अगर भारतीय कंपनियों को स्पर्धा मे टीके रहना है तो करीबन 500 MW का प्लांट लगाना होंगा जिसकी लागत 400-500 करोड़ रुपए हो सकती है.

इस वजह से मझोले और मध्यम उद्योग पैसा लगाने से कतराते है. बड़े उद्योग, बिजली बनाने के बड़े प्रोजेक्ट मे लगे है. सो, अगर कोई बड़ा खिलाड़ी बॅकवर्ड इंटेग्रेशन करता है तो उन्हें इसका लाभ लंबी अवधि मे हो सकता है. ठीक उसी तरह जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कपड़ा उद्योग या प्लास्टिक उद्योग मे किया.

चिप को भी रखा गया दूर..
सोलर फोटोवोल्टेक सेल की तरह कहानी है कंप्युटर या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक वस्तू मे लगने वाली चिप याने ICs की. भारत मे ICs का उत्पादन ना के बराबर है. अगर भारत में सोलर फोटोवोल्टेक सेल और इंटीग्रेटेड सर्किट (चिप) बनाना शुरू हो जाए तो, भारत संपूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जाएगा.

सौर ही है भविष्य..
कहते पृथ्वी से पहले सूर्य था. भविष्य भी सौर ही है. भारत मे आज सौर ऊर्जा की क्षमता 33 गीगावाट (GW) है, 2022 तक इसे 100 गीगावाट करने का लक्ष्य है (60 GW प्लांट के जरिए और, 40 GW रूफटॉप के जरिए बनाने का लक्ष्य है), जिसके लिए लगभग सौ बिलियन अमेरिकन डॉलर की लागत अपेक्षित है. लगभग 20 गीगा वाट की क्षमता लगाकर भारतीय रेल्वे इसमे बड़ा योगदान करने वाली है, 2030 तक भारतीय रेल्वे का कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य है.

ये मुमकिन है..
भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, इस वजह से प्रति वर्ग मीटर 4 से 7 kWh सौर ऊर्जा प्राप्त हो सकती है.
  • भारत मे साल मे से करीबन 250 से 300 दिन सूर्यप्रकाश होता है, दिन के छह से सात घंटे तक ये रोशनी प्रखर होती है, जिससे सौर ऊर्जा बन सकती है.
  • अगर इसका पूरी तरह से लाभ उठाया गया तो सालाना करीबन 1500 से 2000 सौर घंटे मिल सकते है जिससे करीबन 5000 ट्रिलियन kWh (5 ट्रिलियन MW / पांच लाख करोड़ मेगावाट या पांच सौ करोड़ गीगा वाट ) ऊर्जा मिल सकती है जो कि देश की जरूरत से ज्यादा हो सकती है.
सौर में है जोर..
सौर ऊर्जा पर चलने वाले छोटे मोटे उपकरण जैसे पंप कृषि क्षेत्र मे काफी उपयोगी साबित होंगे. सोचिए अगर आपके खेत मे जब पानी छोड़ना है और बिजली ना हो. सौर ऊर्जा पर चलने वाला पंप ना सिर्फ पानी छोड़ने के काम आएगा बल्कि सेंसर पर चलने वाली सिंचन व्यवस्था भी चलाएगासौर ऊर्जा पर छोटे मोटे ग्रेडर और स्टोरेज सिस्टम चलाकर किसान अपना उत्पाद वर्गीकृत कर के सुरक्षित रख सकता है. महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में मुख्यमंत्री सौर कृषि योजना के अंतर्गत २५०० मेगा वाट का लक्ष्य रखकर करीब एक लाख कृषि सौर पम्प को मान्यता दी गई थी.

और भी काफी उपयुक्तता है सौर ऊर्जा की, जैसे आदिवासी या निर्मनुष्य क्षेत्रो मे लाइट या सर्वैलन्स सिस्टम चलाना हो या स्कूल चलाना. शहरी भागों मे भी सौर ऊर्जा का उपयोग ट्राफिक सिस्टम चलाने के लिए हो सकता है. बड़ी हाऊसिंग सोसायटी सोलर पॅनल लगाकर बिजली की खपत पर और ख़र्चे पर काबु पा सकते है.

ईंधन और विदेशी मुद्रा की बचत..
  • ऊर्जा बनाने के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है
  • इस वक्त भारत की क्षमता सालाना ३७० GW है.  
  • सौर ऊर्जा का प्रमाण महज 8-9% है 
बिजली बनाने के लिए कोयला और तेल जैसी पारंपरिक ईंधन का उपयोग होता है. ये ना सिर्फ सीमित है बल्कि कीमती भी है. भारत इन ईंधनों को बड़ी मात्रा में आयात करता है. सौर ऊर्जा से ना सिर्फ प्रदूषण कम होंगा बल्कि विदेशी मुद्रा बचेगी, साथ ही मे दूसरे देशों पर निर्भरता कम होंगी. आज के परिवेश मे ये (देशों पर निर्भरता होना या ना होना) काफी महत्वपूर्ण है.

रोजगार भी, आत्मनिर्भरता भी..
आज सौर ऊर्जा पर चलने वाले उपकरण, और सोलर पॅनल बनाने के क्षेत्र में काफी अवसर है. काफी लोग छोटे और मध्यम स्तर पर ये कर भी रहे हैं. लेकिन अब ज़रूरत है हमे इसकी इकोसिस्टम सही मायने मे पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर करने की. महाराष्ट्र के लिए मौका है सोलर फोटोवोल्टेक सेल बनाने वाले कंपनियों को राज्य मे अपनी फैक्ट्री लगाने के लिए आकर्षित कर, भारत को सम्पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहल करने का.

मौका सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन (इंटीग्रेटेड सर्किट) क्षेत्र में भी है. अमरिका और जापान ने तैवान की तैवान सेमीकंडक्टर मॅन्युफॅक्चरिंग कंपनि को अपने अपने देश मे पूर्ण रूप से स्वतंत्र फैक्ट्री लगाने के लिए आमंत्रित किया है. अगर ये होता है तो ये देश अगले तीन से पाच साल मे इंटीग्रेटेड सर्किट की चीन से होने वाली आयात पूरी तरह बंद करने मे सफल होंगे.

आनेवाले समय मे भारत मे बॅटरी (बिजली) पर चलने वाले वाहन बनेंगे, उनकी संख्या बढ़ेंगी. दो पहिए, तीन पहिए से लेकर कार, बस और ट्रक भी बनेंगे. इन सब मे बॅटरी लगेंगी जो ज्यादातर आयात (इम्पोर्ट) की जाती है.

सो, मौके काफी है - सोलर फोटोवोल्टेक सेल, सेमिकंडक्टर चिप और ऑटोमोबाइल बैटरी. भारतीय अर्थव्यवस्था एक बड़ी अर्थव्यवस्था उभर कर सामने रही है. इसलिए ईन विषयों पर पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए जल्द से जल्द ठोस कदम उठाना जरूरी है.

चलते चलते..
अगर हम हजारो साल पीछे देखते है, इतिहास को समझते है, मानवजाती की उन्नती (evolution of mankind) को समझते है तो हमे, कल मे और आज के काफी ज्यादा फरक नजर नहीं आएगा. फरक काम करने के तरीके मे जरूर आया होगा. लेकिन काम करने के नए तरीके माने भविष्य है ऐसा जरूरी नहीं.

कल भी (हजारो साल पहले) और आज भी हम संघर्षरत है. संघर्ष के हथियार बदले हैं. संघर्ष का विचार नहीं बदला. आज भी दुनिया मे युद्ध चल रहे है, कहीं सामरिक, कहीं आर्थिक तो कहीं तांत्रिक. वर्चस्व की लड़ाई अविरत शुरू है. और चलती ही रहेंगी, और ज्यादा गहरी होगी. उसके मायने बदलेंगे. इसलिए मेरे विचार मे, भविष्य ना डिजिटल था या होगा. भविष्य ना ही परमाणू था या होगा. भविष्य ना ही सुपरसोनीक था या होगा. भविष्य सोच है, विचार है (Future is What? Technology? no its not. Future is a thought).

गैर पारंपरिक लेकिन नैसर्गिक ऊर्जा के नए स्त्रोत को पूर्ण रूप से लाभ उठाकर हम पूर्ण आत्मनिर्भरता की तरफ बढाए गए कदमों की गति बढ़ा सकते है. जरूरत है बड़े को और बेहतर बनाने की. सूर्यमहाराज तो रोशनी पहले भी दे रहे थे, और आगे भी चिरंतन देते रहेंगे. हमे उस रोशनी को उपयुक्त करना है.

हिंदू धर्म के आधार यानी चारों वेदों में सूर्य को ऊर्जा का विशाल स्त्रोत माना गया है. सौर मंडल का केंद्र सूर्य ही है जिसके चारों और सभी ग्रह परिक्रमा करते हैं. सूर्य सौर मंडल को ऊर्जा देता है.

सूर्य आध्यात्मिक ऊर्जा भी देता है. 'सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ' यह वेद सूत्र सूर्य को जगत की आत्मा, शक्ति चेतना होना उजागर करता है। पुराण भी सूर्य को ही सर्वोपरि ईश्वर कहते हैं. सूर्य के इस शक्ति स्वरूप को सांसारिक जीवन में हर प्राणी रोज महसूस भी करता है.

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌

शुभम भवतु.
धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
Dhan1011@gmail.com
(लेखक एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और बिज़नेस स्ट्रेटेजी एनालिस्ट है. इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और कविता / गीत  / श्लोक इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा किए गए है. नए उद्यमियों को सशक्त बनाने के लिए बौद्धिक योगदान देने में इन्हे आनंद होंगा.)

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