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कितने तैयार है हम?

22 जून 20
कितने तैयार है हम?

हाल ही हुई कुछ घटनाओं पर नजर डालते है. 

- मई महीने के पश्चिम बंगाल और ओडिशा मे "अमफान" नामक चक्रवात आया. 120 किलोमिटर की गति से हवा और बारिश हुई. शहरी और ग्रामीण भागों मे काफी नुकसान हुआ. कोलकाता मे दो दिन तक शहरी भागों में पानी भरा था

- 3 जून को महाराष्ट्र के कोंकण मे "निसर्ग" नामक चक्रवात आया. सौ - एक सौ दस किलोमीटर प्रति घंटा की गति से हवा और बारिश हुई. घरों के छत उड़ गए, पंखों के पत्ते चीपट गए. नारियल, सुपारी, आम, काजू के पेड़ पौधे जमीनदोस्त हो गए

- कल (21 जून) मिजोरम और असम में भूकंप के झटके महसूस किए गए. दिल्ली और आसपास के भागों मे पिछ्ले दो महीनों मे 13 बार भूकंप के झटके रिकॉर्ड किए गए. इनका केंद्रबिंदू कभी हिंदू कुश पहाड़ी तो कभी अफगानिस्तान और कभी नेपाल रहा है. हालांकि ये झटके सौम्य से मध्यम स्वरुप के थे थे  (रिश्तर स्केल पर 1 से 4.5 तक). जम्मू और कश्मीर, गुजरात मे भी पिछले दिनों मे भूकंप के झटके महसूस किए गए थे

कुछ दिन पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को एक नोटिस भेज कर राज्य की भूकंप जैसी आपदा से निपटने की तैयारी के बारे मे पूछा था. हालांकि यह एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हुआ. दिल्ली सरकार के रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली मे भूकंपरोधी व्यवस्था की कमी है

- वैश्विक कोरोना महामारी (अप्राकृतिक) आपदा पूरे विश्व मे हाहाकार मचा रही है, हालांकि ये अप्राकृतिक विपदा है.

महत्वपूर्ण प्रश्न है, प्राकृतिक और अप्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कितने तैयार है हम?

प्राकृतिक आपदाए, जैसे सुनामी, बादल फटना (cloudburst), बाढ़, साईक्लोन, भूकंप कभी भी आ सकती है. इनका कोई नियम हो भी तो अभी तक पूरी तरह हम इसे खोज नहीं पाए है. समझ नहीं पाए है.

हमारे हाथो मे आपदा आने की संभावना समझना, और वो आने के बाद उससे हुए नुकसान से निपटना, और पुनर्वसन इतना ही है. विज्ञान ने काफी तरक्की की है, लेकिन अभी भी पूरी तरह से फूल-प्रूफ भविष्यवाणी के लिए अभी तक कोई सिस्टम नहीं बना है. इनका मार्ग परिवर्तन करने का, या ये जब हो रही हो तब उनसे निपटने का कोई हिसाब नहीं है फ़िलहाल. हम एहतियात / पूर्वोपाय कर सकते है. घटना घटने के बाद जानमाल के नुकसान का बचाव और पुनर्वसन कार्य कर सकते हैं. इसके लिए अत्याधुनिक तंत्रज्ञान की जरूरत होती है.

भूकंप
भारत मे दिल्ली और क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर, अंदमान निकोबार, गुजरात हर साल भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं. लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ रही है. क्या यह भविष्य मे आनेवाले किसी बड़े त्रासदी की घंटी है?

क्यों होते है भूकंप?
पृथ्वी की बाह्य परत में अचानक हलचल से उत्पन्न ऊर्जा के परिणाम स्वरूप भूकंप आता है. यह ऊर्जा पृथ्वी की सतह पर, भूकंपी तरंगें उत्पन्न करती है, जो भूमि को हिलाकर या विस्थापित कर के प्रकट होती है. भूकंप प्राकृतिक घटना या मानवजनित कारणों से हो सकता है.अक्सर भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं. भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यत: गह री मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन, और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं.

भूकंप का अभ्यास
नेशनल सेंटर ऑफ सीस्मोलॉजी भूकंप के झटकों के आकड़ों का आकलन करती है, सेसमिक झोन (भूकंपीय क्षेत्र) का अभ्यास करती है. हर प्रांत को सेसमिक झोन मे वर्गीकृत करती है. जहा भूकंप का केंद्र बिंदु हो सकता है वो झोन 5 कहलाता है, और जहा यह सबसे कम होता है उसे झोन 1 कहते है. मुंबई झोन 3 मे आती है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority NDMA) और भारतीय मानक केंद्र (Bureau of Indian Standards BIS) भूकंपीय क्षेत्रों को अभ्यास करते है, उनका आकलन करके उनकी रेटिंग करते है.

भूकंप - कैसे करे अपना बचाव
- समय-समय पर आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण लें व पूर्वाभ्यास करें
- आपदा की किट बनाएं जिसमें रेडियो, जरूरी कागज, मोबाइल, टार्च, माचिस, मोमबत्ती, चप्पल, कुछ रुपये व जरूरी दवाएं रखें
- भूकंप आने पर परिवार के लोगों को बिजली व गैस बंद करने को कहें
- भूकंप के दौरान टेबल, पलंग या मजबूत फर्नीचर के नीचे शरण लें
- लिफ्ट का प्रयोग कतई न करें
- खुले स्थान पर पेड़ व बिजली की लाइनों से दूर रहें
- मकान ध्वस्त हो जाने के बाद उसमें न जाएं
- कार के भीतर हैं तो उसी में रहें, बाहर न निकलें.

ये है असली हीरोज..
जब भी बड़ी नैसर्गिक या अनैसर्गिक आपदा आती है तो  प्रशासन, पुलिसबल , अग्निशमन दल और सरकार के साथ, एनडीआरएफ (National Disaster Response Force),सैन्यदल (आर्मी, नेव्ही और एयर फोर्स), अर्धसैन्य दल, जैसी संस्थाएं बहुत बड़ी भूमिका निभाते है. अपनी जान जोखिम में डालकर ये लोगो के प्राण बचाते है.

एनडीआरएफ ने, आठ साल की अल्पावधि में, बहुत ही दक्ष बल के रूप में अपनी एक खास पहचान बना ली है. पिछ्ले साल महाराष्ट्र के कोल्हापुर मे आई बाढ़ मे लोगों को बचाने मे एनडीआरएफ ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वर्ष 2015 में नेपाल में भूकंप से हुई तबाही के समय एनडीआरएफ ने वहाँ बहुत ही सराहनीय राहत कार्य किया था. 2015 में चैन्ने में या वर्ष 2014 में असम,मेघालय और जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ की समस्या हो या इमारते ढहने और रेल दुर्घटनाएं होने जैसा कोई संकट हो एनडीआरएफ सदैव लोगों के जीवन की रक्षा करने के लिए जमीन पर सबसे जांबाज बल के रूप में सेवा करता रहा है.

एनडीआरएफ ने देश और विदेश में आई विभिन्न आपदाओं में 4,70,000 से अधिक लोगों के जीवन को बचाया है. एनडीआरएफ अब तक विभिन्न समुदाय क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के तहत 40 लाख से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित कर चुका है.

सामाजिक संस्थाओं का साथ भी है अहम..
सरकारी प्रशासन के साथ साथ कई गैर सरकारी संस्थाएं है जो अहम भूमिका निभाती है. इनमे से एक है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS). रेल दुर्घटना हो, तूफान हो, बाढ़ हो, भूकंप हो या कोरोना महामारी हो, संघ के स्वयंसेवक और उनसे जुड़े अन्य कार्यकर्ता, अपना योगदान देने मे हमेशा अग्रेसर रहते है, सेवाभाव से अपना कार्य पूरा करते है.

मुंबई मे कई भागों, जैसे विलेपार्ले, या धारावी मे संघ के विशेष दस्तों (जिसमें डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र और कार्यकर्ता थे) हजारो की संख्या मे कोरोना की स्क्रीनिंग की (अकेले धारावी मे तीन दिनों मे तीन सौ लोगों के दस्ते के साथ करीबन ग्यारह हजार लोगों की स्क्रीनिंग की) जिससे स्थानीय प्रशासन को मदत मिली.

जनकल्याण समिति और अन्य संघटनो के जरिए लॉकडाउन काल मे जरूरतमंद लोगों तक राशन, भोजन, और दवाई पहुचाने का काम अनुशासनबद्ध तरीके किया गया. मई के पहले हफ्ते तक करीब पचास लाख राशनकीट, सवातीन करोड़ फूड पैकेट अपने तीन लाख चालीस हजार से अधिक स्वंयसेवकों के हाथो लाखो  जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया गया.

गृहमंत्रालय की देखरेख मे.. 
आपदाओं का निवारण और पुनर्वसन केंद्रीय गृह मंत्रालय के देखरेख मे होता है. डिजास्टर मॅनेजमेंट के लिए सालाना पंद्रह सौ करोड़ का बजट है. इसमे NDRF,  NCRMP (National Cyclone Risk Mitigation Project) के ख़र्चे पूर्ण किए जाते है. हर आपदा प्रबंधन और पुनर्वसन के लिए नॅशनल डिजास्टर रिलीफ फंड (NDRF) बनाया गया है. केंद्र सरकार इस फंड के जरिए राज्यों को पैसा मुहैया कराती है. 

क्या सीखे है हम आपदाओं से?

कोरोना, अमफान, निसर्ग और कोल्हापूर मे आई बाढ़ जैसी आपदाओं से क्या सीख मिली है?

1. कोरोंना से हमे पता चला कि वैद्यकीय संरचना (Medical and Health Infrastructure) को लचीला और उसका विकेंद्रीकरण (decentralization) करना जरूरी है. जिलों और राज्यों के प्रमुख शहरो का भार कम करने की जरुरत है. तालुका, वार्ड लेवल पर हमे प्राथमिक स्तर के ऊपर के भूकंपरोधी अस्पताल, टेस्टिंग लैब, और यंत्रणा उपलब्ध करानी होगी. पूरे राज्य / देश मे ये व्यवस्था एक स्तर या स्टँडर्ड की होनी चाहिए, जिसका मूल्यमापन समय समय पर होते रहेगा

स्केलेबल (मतलब कम समय मे जिसकी क्षमता बढ़ा सकते है) अस्पताल और पर्याप्त मात्रा मे यंत्र सामुग्री मुहैय्या करने वाली सिस्टम बनानी होगी. भूकंपरोधी स्केलेबल अस्पताल के डिजाईन और मॉडेलिंग के लिए आर्किटेक्चर, तंत्रज्ञान और डिजाईन के संस्थाओ और विद्यार्थियों की मदतली जा सकती है - जैसे नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेन्ट (NIDM), नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाईन (NID), इंस्टिट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल डिजाईन (IID) और आई आई टी (IIT). 

मेडिकल कॉलेज और पैरामेडिकलके छात्रों को शुरुआती दौर मे ही आपदा से निपटने के लिए प्रशिक्षण देना होंगा. मेडिकल और पॅरामेडिकल, नर्सिंग कॉलेजो की क्षमता बढ़ानी होंगी, विशेष कर ग्रामीण भागों मे.

2. तुफान और चक्रवात से हमे, कम से कम वक्त मे ज्यादा से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना कितना महत्वपूर्ण है ये पता चलता है. साथ ही साथ, समय आ गया है कि गांवों मे, और जो शहर इसके प्रभाव मे अक्सर आते है वहा पर बड़े पैमाने पर ज्यादा से ज्यादा लोगों की रुकने की लिए, अलग अलग जगहों पर बड़े पैमाने पर भूकंपरोधी हॉल इत्यादि की व्यवस्था खड़ी करने के बारे में सोचना होंगा.

3. बेस्ट प्रॅक्टिस की पुस्तिका बनाना होंगा. ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल मे अक्सर बाढ़ या तूफान आते है. पिछ्ले कुछ सालों मे ईन राज्यों ने आपदाओं का प्रबंधन अच्छा किया है. इन राज्यों और अन्य राज्यों के लिए (प्रशासन और जनता) यह पुस्तिका (या उस तरह की कोई डाक्यूमेंट्री या विडिओ) काम मे आ सकती है.

4. तुफान, भूकंप और बाढ़ जैसे आपदाओं मे पुनर्वसन (rehabilitation) बहुत जरूरी होता है, सभी स्तरों पर - घर, वैद्यकीय, मानसिक, आर्थिक और व्यावसायिक. कभी कभी पुनर्वसन सालों चलता है.

कोकण मे आए चक्रवात से वहा के छोटे और मध्यमवर्गीय किसानो और बाग वालों का बहुत नुकसान हुआ है. सुपारी, नारियल, आम जैसे पेड़ उखड़ गए, कहते हें, नए पेड़ों को फिर से इन्हें आर्थिकरूप से मददगार साबित होने के लिए पाच से आठ साल लग सकते है. इसका मतलब इन लोगों की आमदनी इतने सालो तक रुकने की संभावना है.

सो, इनका मानसिक समुपदेशन होना जरूरी है. साथ ही मे, इन्हें पारंपरिक नारियल और सुपारी के साथ नई तकनीक से जल्द से जल्द आर्थिक रूप से फायदेमंद होने वाली औषधि वनस्पति और पौधे लगाने के प्रोत्साहित करने की जरूरत है. प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं को इस विषय में प्राथमिकता देनी होंगी.

5. इन आपदाओं से कैसे निपटे इसका सम्पूदेशन या प्रात्यक्षिक  (डेमो /ड्रिल) स्कूल, कॉलेजो और रिहायशी इलाको में समय-समय पर होना चाहिए .

थोडा है थोडे की जरूरत है.
वैसे तो भारत में अनेक आपदाएं आई और भारतीय नागरिको ने उनका डट के मुकाबला भी किया. इस अनुभव से कुछ हद तक हमारे पास व्यवस्था भी है, शायद उन्हें बेहतर करने की जरूरत है.

दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा..
महाराष्ट्र मे देवेन्द्र फडणवीस की सरकार मे "जल युक्त शिवार" अभियान चलाया गया था. इसमे ग्रामीण भागों मे बड़े पैमाने पर जलाशय बने थे. छोटे बांध बने थे. नदिया और नाले साफ हुए थे. पानी का भराव करने मे, और बहाव रोकने मे ये काफी मददगार साबित होते थे. लेकिन दुर्भाग्य से यह अभियान नई सरकार आते ही खत्म कर दिया गया. 

पिछले वर्ष मुंबई में जोरदार बारिश हुई, जलभराव हुआ. उसका निराकरण करने के लिए जापान की तरह मुंबई में जमीन के नीचे पानी का बहाव करने के लिए टनल बनाने पर चर्चा हुई, लेकिन लगता है अब बात शायद कही अटक गई है!

जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की भी . . 
सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओ के साथ-साथ, देश के निजी क्षेत्र को बड़ी भूमिका निभानी होंगी. युवा उद्यमी नए उपकरण बनाने में हात बटा सकते है (जैसे कोरोना में महत्वपूर्ण उपकरण वेंटीलेटर -  काफी युवा संघटन एक हुए और नए प्रकार / पद्धित के  वेंटीलेटर बनाए ). बड़े निजी उद्योग देश में (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रो में) शाश्वत मुलभुत सरंचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) बनाने में जगह या पूंजी दे सकते है.

टेक्नोलॉजी और मानवता का संगम.. 
हो सकता है आने वाले समय मे एक ही वक्त पर हमे कई आपदाओं का सामना करना होंगा. जैसे एक ओर को रोना, दूसरी ओर तूफान और तीसरी ओर देश पर आर्थिक संकट गहरा रहा है. साथ ही, पड़ोसियों के साथ कब युद्धजन्य परिस्थिती निर्माण हो जाए ये कोई नहीं कह सकता.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा कि हमे गाव गाव ब्रॉडबैंड या 4G जैसी व्यवस्था पहुंचानी होंगी. अगर यह होता है तो फिर हमे वहा से संपर्क करने मे और लोगों को जानकारी मुहैया कराना आसान हो जाएगा, साथ ही मे सर्विलीएंस भी कर पाएंगे. 

आपदाओं का मुकाबला करने के लिए तंत्रज्ञान /टेक्नोलॉजी (जैसे Artificial intelligence) और मानवता का मेल बनाकर हमे समयबद्ध कार्यक्रम के अन्तर्गत पूरे देश मे कई नई व्यवस्थाए निर्माण करनी होंगी जिससे जानमाल का कमसेकम नुकसान हो.

चलते चलते..
आज हम कितने तैयार है ये कहना मुश्किल होगा, लेकिन अगर पहले से ज्यादा और बेहतर जरूर है. 
"शेर आया, शेर आया" वाली कहानी मे जैसा होता है, वैसे ही शायद आपदाओं के बारे में भी हो. लेकिन फिर भी हमे हमेशा तैयार रहना होगा. पिछ्ली आपदा से सीख लेकर और ज्यादा तैयार.

जैसे जैसे हम और प्रगत होंगे, तैयारी के मापदंड बदलते रहेंगे. हमे नए मापदंड अपनाने होंगे. समाज और प्रशासन को साथ लेकर ईन आपदाओं को धैर्य से मुकाबला करना होंगा. हम होंगे कामयाब, बस एक साथ चलते रहने की जरूरत है.

हमने पहाड़ो को तोड़ कर समतल किया. कई बार जंगल जला दिए .जमीन पाने के नदियों में मिटटी डाल दी . क्या प्रकृति हमें कभी इसका जवाब नहीं देंगी? भूकंप या बाढ़ के रूप में क्या हमें अपना प्रायश्चित नहीं करना होंगा ?
समय समय पर प्रकृति
देती रही कोई न कोई चोट
लालच में इतना अँधा हुआ
मानव को नही रहा कोई खौफ !!

कही बाढ़, कही पर सूखा
कभी महामारी का प्रकोप
यदा कदा धरती हिलती
फिर भूकम्प से मरते बे मौत !!
सजग रहिए. खुश  रहिए!

धनंजय मधुकर देशमुख, मुंबई
Dhan1011@gmail.com

(इस पोस्ट मे दी गई कुछ जानकारी और कविता  इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा की गई है).

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