18 Jun 20, मुंबई
खेलप्रेम भी, राष्ट्रप्रेम भी..
आज 18 जून है, वैसे तो यह तारीख किसी खास वजह से जानी नहीं जाती होगी. लेकिन, आज से 37 साल पहले, 18 Jun 1983 को इंग्लैंड मे उस दिन क्रिकेट विश्वकप के दो मॅचेस थे, बस इतना ही. एक ओर लीड्स मे ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज भिड़नेवाले थे, तो दूसरी ओर टनब्रिज वेल्स, केन्ट मे भारत का मुकाबला झिम्बाब्वे से होने जा रहा था.
हालांकि, इस विश्वकप के शुरुआत मे झिम्बाब्वे की टीम शायद सबसे कमजोर मानी जाती थी, लेकिन अपनी पिछली मैच मे उन्होने ऑस्ट्रेलिया को हराकर सबको चकित किया था. अब उनको हल्के मे नही ले सकते थे.
उन दिनों वनडे मैच दिन मे खेले जाते थे, गेंद लाल और कपड़े सफेद हुआ करते थे. हर मैच 60 ओवर का हुआ करता था. भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया. खैर.
"कॅप्टन, हम तीन डाऊन है"
जब आपके टीम मे सुनील गावसकर, कृष्णम्माचारी श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ, यशपाल शर्मा, संदीप पाटील जैसे धाकड बल्लेबाज हो तो, कप्तान और ऑलराउंडर कपिल देव के लिए एक तरह से थोड़ा रिलैक्स होना एक तरह से स्वाभाविक ही था. कहते है, टॉस के बाद वे जब शॉवर ले रहे थे तो किसीने दरवाजे पर दस्तक दी, "कॅप्टन, हम तीन डाऊन है". उन्हें जल्दी बाहर आना पड़ा. पैड़ पहनते-पहनते चौथी भी विकेट चली गई.
ऐसा क्या हो गया था?
दरअसल उस दिन हवा थोड़ी ज्यादा चल रही थी, गेंद ज्यादा स्विंग हो रही थी. और उसी का फायदा झिम्बाब्वे के तेज गेंदबाज पीटर रॉसन और केविन करन ने उठाया (इंग्लैंड के ऑल राउंडर सैम , टॉम और बेन करन के पिता है थे. खैर.)
भारतीय ओपनर सुनील गावस्कर और श्रीकांत बिना खाता खोले पैवेलियन आ चुके थे. मोहिंदर अमरनाथ भी 5 रन बनाकर सस्ते मे आउट हो गए. संदीप पाटील भी ज्यादा नहीं टिक पाए - सिर्फ एक रन ही बना पाए. गेंद बल्ले के आसपास ग़ज़ब मचा रही थी. सभी बल्लेबाज विकेट के सामने (LBW, बोल्ड) या पीछे (विकेट कीपर, स्लिप मे कॅच) ऑउट हुए थे.
महज 9 रन पर चार विकेट के स्कोर पर कप्तान कपिल देव मैदान मे आए. उनका साथ देने के लिए यशपाल शर्मा थे. लेकिन कुछ ही देर मे यशपाल भी आउट हो गए. भारत का स्कोर 17 रन और पाच विकेट.
कुछ प्रेक्षक शायद लंच से पहले ही मैच खत्म हो जाएगी इस वजह से स्नैक्स खाने लगे, और कुछ सोचने लगे कि क्या उन्हें सहीमे लंचबॉक्स लाना था? यशपाल के चलते, कपिल का साथ देने आए रोजर बिन्नी. वैसे तो बिन्नी ज्यादातर अपनी स्विंग गेंदबाजी के लिए ज्यादा जाने जाते थे, लेकिन वे एक शांत स्वभाव के अच्छे बल्लेबाज भी थे. उस दिन भारतीय टीम को उनका शांत खेलना ज्यादा महत्वपूर्ण था.
सोच समझकर खेल
हवा तेज चल रही थी, ग्राउंड मे एक तरफ ढलान भी थी. कपिल देव पहले सोच समझकर खेलना शुरू किया. ज्यादा से ज्यादा स्ट्राइक लेना, और एक्का दुक्का चौके लगाना शुरू किया. लेकिन 77 के स्कोर पर बिन्नी 22 रन बना कर आउट हो गए. नवोदित खिलाड़ी रवी शास्त्री आए और चले गए. भारतीय टीम का स्कोर, 78 रन और 7 विकेट.
उसके बाद गेंदबाज मदनलाल ने कपिल देव का अच्छा साथ दिया, दोनों मे 72 रन की अच्छी साझेदारी हुई, इसमे मदनलाल का निजी स्कोर था 17. खैर उन्होंने भारतीय टीम का स्कोर 140 तक पहुंचाने मे महत्वपूर्ण योगदान दिया. इसके बाद आए विकेटकीपर सैय्यद किरमाणी ज़ी अपनी बल्लेबाजी की अपनी विशेष शैली (ज्यादातर स्लिप और स्क्वेअर लेग से रन चुराते थे) के लिए जाने जाते थे.
44 ओवर्स हो चुके थे. फिर, यहा से मानो एक भूचाल शुरू हुआ. कपिल देव ने झिम्बाब्वे के गेंदबाजों को आड़े हातो पीटना शुरू किया. चौकों और छक्को की बारिश होने लगी. दूसरी तरफ किरमाणी भी डटे रहे. 140 पर 8 विकेट से, साठवे ओवर के अंत में भारतीय टीम का स्कोर 266 पर 8 विकेट हुआ. कपिल देव, नाबाद 175 रन (138 गेंद) और किरमाणी नाबाद 24 रन (56 गेंद). आखिरी 16 ओवर्स मे दोनो ने 126 की साझेदारी की.
अपने 175 रनों मे कपिल ने 16 चौके और 6 छक्के जड़े थे, याने पूरे 100 रन उन्होंने सिर्फ चौकों और छक्को से बनाए थे. छठे नंबर पर बल्लेबाजी करने आना, 33% गेंद खेल के अपने टीम के 66% रन बनाना ये अपने आप मे एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी. आज भी है.
उस दिन कपिल देव के बल्लेबाजी की संवेदनशीलता देखने लायक थी. उनके पहले पचास रन 26 वे ओवर मे हुए, दूसरे पचास रन 50 वे ओवर मे हुए, और बचे हुए 75 रन आखिरी 10 ओवर मे हुए, यानी साठ वे ओवर मे. आखिरी पड़ाव शायद उस दिन का सबसे तेज गति से हुआ था!
भारतीय गेंदबाजों ने अच्छी गेंदबाजी और मुस्तैद फिल्डिंग (2 शुरुआती बल्लेबाज रन आउट) के बलबूते झिम्बाब्वे को 57 ओवर मे 235 रनों पर आउट कर दिया (बलविंदर सिंह संधू ने 3 विकेट लिए), और लगभग हारा हुआ मैच जीत लिया.
इस मैच की अहमियत ये थी कि, अगर भारतीय टीम उस दिन हारती, तो शायद बहुत बुरी हारती, और फिर उसका परिणाम रनरेट पर होता. भारतीय टीम और झिम्बाब्वे के टीम के रनरेट में ज्यादा अन्तर नहीं था. खैर, भारतीय टीम ने ये मैच अच्छे से जीता.
इसके बाद 20 जून को हुई अगली मैच मे भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 118 रनों से हराकर (लक्ष्य 248 रन) अपने पहली हार का बदला पूरा किया.
फिर 22 जून को भारतीय टीम ने इंग्लैंड को, छह विकेट (इंग्लैंड ने 213 रनों का लक्ष्य रखा था जो भारतीय टीम ने 57 ओवर मे पूरा किया) से हरा कर 25 जून को वेस्टइंडीज के खिलाफ होने वाले फाइनल मे अपना स्थान बना लिया.
इसके आगे जो हुआ वो तो विश्वविख्यात है. भारतीय क्रिकेट टीम क्रिकेट की विश्वविजेता बनी.
पूरी दुनिया ने देखा ,कैसे भारतीय टीम ने, अपनी सटीक गेंदबाजी (बलविंदर सिंह संधू , मोहिंदर अमरनाथ) और चुस्त फील्डिंग (कपिल देव और मदन लाल) की बदौलत, महज 183 रनों का स्कोर भी धाकड़ वेस्ट इंडीज को बनाने से रोका. बलाढ्य वेस्ट इंडिज 43 रनों से हार गई (कुछ दिनों बाद हमारी स्कुल ने एक विशेष कार्यक्रम आयोजित कर फाइनल की रिकॉर्डिंग हमे दिखाई थी).
क्रिकेट की दुनिया मे एक नया सितारा उभरा - भारतीय क्रिकेट टीम. कपिल देव निखंज एक तगडे ऑलराउंडर और दिलेर कप्तान बतौर उभरें. भारत मे क्रिकेट का एक नया अध्याय शुरू हुआ. या ये कहिए वनडे क्रिकेट के विश्व मे भारत की शक्ति का उदय हुआ. उसे सम्मान प्राप्त हुआ!
नियति ही थी शायद..
हालांकि, जो दुनिया ने नहीं देखा वो काफी महत्वपूर्ण था - 18 जून 1983 का वो भूचाल जो कपिल देव ने टनब्रिज वेल्स मे लाया था, झिम्बाब्वे के गेंदबाजों की पिटाई कर के! उसी दिन वेस्ट इंडिज और ऑस्ट्रेलिया का मॅच लीड्स मे होने के वजह से आधे से ज्यादा कैमरामन वहा चले गए थे (उन दिनों ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज की टीमों का काफी दबदबा जो था). कहते है बीबीसी की कैमराटीम स्ट्राइक पर थी, और बचे हुए कैमरामेन लंदन मे कोई स्ट्राइक चल रहा था उसको कवर करने चले गए थे.
इस वजह से भारतीय और झिम्बाब्वे के टीम का ये मैच लाइव कवर करने के लिए मैदान पर कोई विडिओ कैमरामन था ही नहीं. अंत मे किसी ने भी यह मैच लाइव कवर नहीं किया. हालांकि, इसके बाद भारतीय टीम के सभी मैच सभी चॅनलो ने कवर किए. एक नया हीरो जो मिल गया था!!
क्या हुआ उसके बाद?
1983 मे मिली जीत के बाद भारतीय क्रिकेटर्स मे आत्मविश्वास आया. उसके तुरंत बाद शारजाह मे रॉथमंस कप (जब पाकिस्तान को १२५ का स्कोर भी बनान मुश्किल हुआ था ), और 1985 मे ऑस्ट्रेलिया मे हुई बेनसन अँड हेजेस कप (मिनी विश्व कप) जीतकर अपने हुनर का सबूत दिया.
1983 की विश्वकप जीत भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत अहम थी, क्यूंकि इसके बाद व्यवसायिक विश्व / व्यापार जगत का ध्यान भारतीय क्रिकेट और क्रिकेटरों की तरफ ज्यादा बढ़ा. उनका रुझान बढ़ा. इसके पहले खिलाड़ी अपनी-अपनी कीट पहनते थे, अपने-अपने तरीके से. आप देखिएगा भारतीय खिलाड़ियों की उन दिनों की कीट - सबकी अलग अलग टीशर्टस या ट्राउजर्स हुआ करती थी. इसके बाद इसमे बदलाव आया. स्टॅन्डर्ड बढ़ा, एक समानता आई.
भारतीय क्रिकेट मे पैसा आया. भारतीय क्रिकेटर्स दुनिया भर मे मशहूर हो गए. भारत मे क्रिकेट और ज्यादा संजीदगी से खेले जाने लगा. इस वजह से और अच्छे क्रिकेटर्स की फसल तैयार हुई. भारतीय क्रिकेट का स्तर और बढ़ने लगा. इसके बाद बीसीसीआई को कभी भी किसी भी संसाधनों की कोई कमी नहीं खली. आईसीसी ने भी भारतीय क्रिकेट को गौर से देखना शुरू किया. आखिर भारत एक बहुत बड़ा मार्केट जो था! क्रिकेट व्यवसायिक हो गया. खिलाड़ी प्रोफेशनल्स की तरह खेलने लगे. जो शायद एक तरह से अच्छा भी था. जरूरी था.
सामान्य भारतीय नागरिक को भी 1983 मे हुई इस विश्वजीत ने एक नया आत्मविश्वास दिया. खिलाडियों की ओर देखने का उनका नजरिया बदलने लगा. अनेक खिलाड़ी, रातोरात खिलाड़ी से हीरो बन गए थे. यहा से भारतीय प्रेषक, खिलाड़ी प्रेमी, खिलाड़ी, खेल और खेल प्रशासन का एक नया दौर शुरू हुआ.
पिछ्ले 37 सालों से क्रिकेट भारत मे अपनी चरमसीमा पर है. कई क्रिकेटर्स आए और गए. मैच फिक्सिंग जैसे कारनामे भी हुए . सचिन तेंडुलकर, गांगुली, द्रविड, श्रीनाथ, कुंबळे, लक्ष्मण, हरभजन सिंग, युवराज सिंग, सेहवाग इत्यादी. और भी काफी नाम है. क्रिकेट मे मशहूर होने की वजह, क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी से भारतीय सामान्य नागरिक अमूमन हर क्रिकेटर का क्रिकेट की दुनिया के बाहर भी काफी आदर सम्मान करते है. खैर.
(अगर आपकी रुचि क्रिकेट मे ज्यादा है, तो शायद आप ये भी पढ़ना पसंद करेंगे, थोड़े पुराने है लेकिन शायद आपको उपयुक्त लगेंगे.
Cricket - Time to Rise (Dec 2018) https://windcheck.blogspot.com/2018/12/time-to-rise.html
The Paradox of Outgoing and Incoming (Nov 2018)
https://windcheck.blogspot.com/2018/11/the-paradox-of-outgoing-and-incoming.html
Impactful "Sporty" a Indians (Nov 2018)
https://windcheck.blogspot.com/2018/11/impact-ful-sporty-indians.html
Cricket - Simple Yet Difficult (Nov 2018)
https://windcheck.blogspot.com/2018/11/cricket-simple-yet-difficult.html)
मैदान मे खेलना खत्म, लेकिन अब नए खेल..
कुछ खिलाड़ी अपनी इस मशहूरीयत और लोगों के सम्मान का गलत मतलब निकालने लगे है. सोशल मीडिया मे मनचाहे बयानबाजी करने लगे. हालही मे, कोरोना के चलते, इस मार्च के अंत मे, पाकिस्तानी क्रिकेटर आफ्रिदी ने पाकिस्तानी लोगों के लिए चंदे की गुहार लगाई, तो उसको हरभजन सिंग और युवराज सिंह ने हातोहात उठाया. आम लोगों को, "खिलाड़ी का देश नहीं होता", "धर्म नहीं होता", "हम दोस्त है", इस भ्रांति मे रखकर, आफ्रिदी जैसे का समर्थन करना इन्हें शायद अपना जन्मसिद्ध अधिकार लगा.
ये वही आफ्रिदी है जो हमेशा से भारतीय सेना और हमारे वीरों का अपमान करता आया था. जम्मू और कश्मीर मे उत्पात मचाते कट्टरपंथी आतंकवादियों को ये आजादी के लड़ाके बताता था. हरभजन सिंह और युवराज सिंह अपनी दोस्ती का बहाना देकर कोरोना के लिए चंदा जमा करने के लिए उसके साथ हो लिए.
आखिर मे आफ्रिदी ने अपनी फितरत दिखाई और, इन्हें ही उल्टे मुह गिराया.
अब चंद दिन पहले, भारतीय क्रिकेट टीम के एक भूतपूर्व खिलाड़ी (बरोड़ा से, उपरोक्त खिलाड़ियो के साथी, बाए (लेफ्ट) हात के तेज गेंदबाज जो अभी कुछ हाल पहले रिटायर्ड हुए है) ने ट्विटर पर एक कटाक्ष साधा. अप्रत्यक्ष रूप वे ये जताना चाहते हैं कि भारत मे एक समुदाय को तथाकथित रूप से नजरअंदाज किया जा रहा है. हालांकि यह सही नहीं है, तथ्यों से दूर है.
लगता है, आनेवाले समय मे ये जनाब किसी आन्दोलनकारी गुट को अपनी लोकप्रियता से नए कॉम्रेड /recruits जोड़ देंगे.
लेकिन वो क्या है जिस वजह से आजकल खिलाड़ी, कलाकार आए दिन ऐसी बयानबाजी करते है?
अपनी लोकप्रियता को गलत समझना
इसका कारण है उनकी लोकप्रियता. सामान्य जनता इन खिलाडियों और कलाकारों को उनकी कला या हुनर के लिए अपने दिल मे बिठाती है - लेकिन इस लोकप्रियता से ईन खिलाडियों या कलाकारों के दिमाग मे भ्रम पैदा होता है कि वे चंद लोगों के भाग्यविधाता बन जाएंगे. ये खिलाड़ी, कलाकार अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाकर देशविरोधी ताकतो के सुर में सुर मिलाते है. खासकर युवा पीढ़ी को मानवता, धर्मनिरपेक्षता, समानता, पर्यावरण जैसे शब्दजालों का प्रयोग कर के उन्हें भारतविरोधी विचारो मे पिरोते है. उनको "टुकड़े टुकड़े" गैंग के हवाले करते है.
"साबुन अगर अच्छा काम करता है तो, क्या आप उसे दवाई समझकर खाएंगे? नहीं ना. जिसका जो काम, उतना ही होना चाहिए उसका नाम".
कलाकार, खिलाड़ी, लेखक उनके क्षेत्र मे चाहे कितने भी बड़े हो, उनके व्यक्तिगत विचारो का अंधों की तरह पालन करना गलत हैं. उन्हें उतनीही कीमत दो जिस विषय के लिए आपने उन्हें देखना है. उनका काम खत्म, अपना दिमाग बंद.
इसमे कोई दो राय नहीं है की कलाकार या खिलाड़ी अपनी मेहनत से ही कामयाब होते है. इस वजह से एक कलाकार का उनके कौशल्य के वजह से या फिर खिलाड़ी को उनके हुनर या कुशलता के लिए ही उनका आदर होना चाहिए. उस ऊपर नहीं. "लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम" का वे हिस्सा बनना चाहे तो ये उनका अपना भाग्य / दुर्भाग्य!
मैदान मे खेल और धर्म अलग है..
अगर कोई खिलाड़ी है तो उसे अपना धर्म खेल के मैदान मे दिखाने की क्या जरूरत है? इंग्लैंड के एक खिलाड़ी को इसके खिलाफ कार्रवाई का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने "सेव गाजा", "फ्री पॅलेस्टिन" का रिस्टबैंड अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच के दौरान पहना था.
खिलाड़ी, या कलाकार जरूर किसी धर्म का होता है, लेकिन सबसे पहले वो अपने राष्ट्र का होता है. अपने राष्ट्रकी जो संकल्पना है, पहचान है, हित है वो सभी को सर्वोपरि है. होना ही चाहिए. "राष्ट्र प्रथम" ये भावना कायम होनी चाहिए.
खेल से राष्ट्रवाद का ये सफर आपको थोड़ा अलग जरूर हुआ होगा. शायद अटपटा लगा होगा. एक तरफ क्रिकेट का खुमार, और दूसरे तरफ राष्ट्रहित!
लेकिन आज के समय की ये मांग है. इस विषय पर केंद्रित होना जरूरी है. क्यूंकि, अगर बीते कल का खिलाड़ी या कलाकार, आज देशविरोधी ताकतो का सिपहसलार हो जाए तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा.
राष्ट्र निर्माण मे सबका सहभाग जरूरी होता है. आज ही हम समझे की ये खिलाड़ी या कलाकार राष्ट्रनिर्माण मे अहम भूमिका निभा सकते है. काफी निभा भी रहें है. लेकिन उन खिलाड़ी या कलाकारों से दूर रहिए जिन्हें देशविघातक शक्तियों से हमदर्दी है.
भारत देश चिरायु है, विश्वपटल पर भारत सदा रहेगा. सदा वैभवशाली रहेगा. खेल या कला शायद रहे ना रहे.
"तेरा वैभव अमर रहे माँ,
हम दिन चार रहें ना रहें".
शुभम भवतु .
- धनंजय देशमुख, मुंबई
dhan1011@gmail.com
(इस पोस्ट के लिए जानकारी और फोटो इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा की गई है.)
खेलप्रेम भी, राष्ट्रप्रेम भी..
आज 18 जून है, वैसे तो यह तारीख किसी खास वजह से जानी नहीं जाती होगी. लेकिन, आज से 37 साल पहले, 18 Jun 1983 को इंग्लैंड मे उस दिन क्रिकेट विश्वकप के दो मॅचेस थे, बस इतना ही. एक ओर लीड्स मे ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज भिड़नेवाले थे, तो दूसरी ओर टनब्रिज वेल्स, केन्ट मे भारत का मुकाबला झिम्बाब्वे से होने जा रहा था.
हालांकि, इस विश्वकप के शुरुआत मे झिम्बाब्वे की टीम शायद सबसे कमजोर मानी जाती थी, लेकिन अपनी पिछली मैच मे उन्होने ऑस्ट्रेलिया को हराकर सबको चकित किया था. अब उनको हल्के मे नही ले सकते थे.
उन दिनों वनडे मैच दिन मे खेले जाते थे, गेंद लाल और कपड़े सफेद हुआ करते थे. हर मैच 60 ओवर का हुआ करता था. भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया. खैर.
"कॅप्टन, हम तीन डाऊन है"
जब आपके टीम मे सुनील गावसकर, कृष्णम्माचारी श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ, यशपाल शर्मा, संदीप पाटील जैसे धाकड बल्लेबाज हो तो, कप्तान और ऑलराउंडर कपिल देव के लिए एक तरह से थोड़ा रिलैक्स होना एक तरह से स्वाभाविक ही था. कहते है, टॉस के बाद वे जब शॉवर ले रहे थे तो किसीने दरवाजे पर दस्तक दी, "कॅप्टन, हम तीन डाऊन है". उन्हें जल्दी बाहर आना पड़ा. पैड़ पहनते-पहनते चौथी भी विकेट चली गई.
ऐसा क्या हो गया था?
दरअसल उस दिन हवा थोड़ी ज्यादा चल रही थी, गेंद ज्यादा स्विंग हो रही थी. और उसी का फायदा झिम्बाब्वे के तेज गेंदबाज पीटर रॉसन और केविन करन ने उठाया (इंग्लैंड के ऑल राउंडर सैम , टॉम और बेन करन के पिता है थे. खैर.)
भारतीय ओपनर सुनील गावस्कर और श्रीकांत बिना खाता खोले पैवेलियन आ चुके थे. मोहिंदर अमरनाथ भी 5 रन बनाकर सस्ते मे आउट हो गए. संदीप पाटील भी ज्यादा नहीं टिक पाए - सिर्फ एक रन ही बना पाए. गेंद बल्ले के आसपास ग़ज़ब मचा रही थी. सभी बल्लेबाज विकेट के सामने (LBW, बोल्ड) या पीछे (विकेट कीपर, स्लिप मे कॅच) ऑउट हुए थे.
महज 9 रन पर चार विकेट के स्कोर पर कप्तान कपिल देव मैदान मे आए. उनका साथ देने के लिए यशपाल शर्मा थे. लेकिन कुछ ही देर मे यशपाल भी आउट हो गए. भारत का स्कोर 17 रन और पाच विकेट.
कुछ प्रेक्षक शायद लंच से पहले ही मैच खत्म हो जाएगी इस वजह से स्नैक्स खाने लगे, और कुछ सोचने लगे कि क्या उन्हें सहीमे लंचबॉक्स लाना था? यशपाल के चलते, कपिल का साथ देने आए रोजर बिन्नी. वैसे तो बिन्नी ज्यादातर अपनी स्विंग गेंदबाजी के लिए ज्यादा जाने जाते थे, लेकिन वे एक शांत स्वभाव के अच्छे बल्लेबाज भी थे. उस दिन भारतीय टीम को उनका शांत खेलना ज्यादा महत्वपूर्ण था.
सोच समझकर खेल

उसके बाद गेंदबाज मदनलाल ने कपिल देव का अच्छा साथ दिया, दोनों मे 72 रन की अच्छी साझेदारी हुई, इसमे मदनलाल का निजी स्कोर था 17. खैर उन्होंने भारतीय टीम का स्कोर 140 तक पहुंचाने मे महत्वपूर्ण योगदान दिया. इसके बाद आए विकेटकीपर सैय्यद किरमाणी ज़ी अपनी बल्लेबाजी की अपनी विशेष शैली (ज्यादातर स्लिप और स्क्वेअर लेग से रन चुराते थे) के लिए जाने जाते थे.
44 ओवर्स हो चुके थे. फिर, यहा से मानो एक भूचाल शुरू हुआ. कपिल देव ने झिम्बाब्वे के गेंदबाजों को आड़े हातो पीटना शुरू किया. चौकों और छक्को की बारिश होने लगी. दूसरी तरफ किरमाणी भी डटे रहे. 140 पर 8 विकेट से, साठवे ओवर के अंत में भारतीय टीम का स्कोर 266 पर 8 विकेट हुआ. कपिल देव, नाबाद 175 रन (138 गेंद) और किरमाणी नाबाद 24 रन (56 गेंद). आखिरी 16 ओवर्स मे दोनो ने 126 की साझेदारी की.

उस दिन कपिल देव के बल्लेबाजी की संवेदनशीलता देखने लायक थी. उनके पहले पचास रन 26 वे ओवर मे हुए, दूसरे पचास रन 50 वे ओवर मे हुए, और बचे हुए 75 रन आखिरी 10 ओवर मे हुए, यानी साठ वे ओवर मे. आखिरी पड़ाव शायद उस दिन का सबसे तेज गति से हुआ था!
भारतीय गेंदबाजों ने अच्छी गेंदबाजी और मुस्तैद फिल्डिंग (2 शुरुआती बल्लेबाज रन आउट) के बलबूते झिम्बाब्वे को 57 ओवर मे 235 रनों पर आउट कर दिया (बलविंदर सिंह संधू ने 3 विकेट लिए), और लगभग हारा हुआ मैच जीत लिया.

इसके बाद 20 जून को हुई अगली मैच मे भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 118 रनों से हराकर (लक्ष्य 248 रन) अपने पहली हार का बदला पूरा किया.
फिर 22 जून को भारतीय टीम ने इंग्लैंड को, छह विकेट (इंग्लैंड ने 213 रनों का लक्ष्य रखा था जो भारतीय टीम ने 57 ओवर मे पूरा किया) से हरा कर 25 जून को वेस्टइंडीज के खिलाफ होने वाले फाइनल मे अपना स्थान बना लिया.

पूरी दुनिया ने देखा ,कैसे भारतीय टीम ने, अपनी सटीक गेंदबाजी (बलविंदर सिंह संधू , मोहिंदर अमरनाथ) और चुस्त फील्डिंग (कपिल देव और मदन लाल) की बदौलत, महज 183 रनों का स्कोर भी धाकड़ वेस्ट इंडीज को बनाने से रोका. बलाढ्य वेस्ट इंडिज 43 रनों से हार गई (कुछ दिनों बाद हमारी स्कुल ने एक विशेष कार्यक्रम आयोजित कर फाइनल की रिकॉर्डिंग हमे दिखाई थी).
क्रिकेट की दुनिया मे एक नया सितारा उभरा - भारतीय क्रिकेट टीम. कपिल देव निखंज एक तगडे ऑलराउंडर और दिलेर कप्तान बतौर उभरें. भारत मे क्रिकेट का एक नया अध्याय शुरू हुआ. या ये कहिए वनडे क्रिकेट के विश्व मे भारत की शक्ति का उदय हुआ. उसे सम्मान प्राप्त हुआ!
नियति ही थी शायद..
हालांकि, जो दुनिया ने नहीं देखा वो काफी महत्वपूर्ण था - 18 जून 1983 का वो भूचाल जो कपिल देव ने टनब्रिज वेल्स मे लाया था, झिम्बाब्वे के गेंदबाजों की पिटाई कर के! उसी दिन वेस्ट इंडिज और ऑस्ट्रेलिया का मॅच लीड्स मे होने के वजह से आधे से ज्यादा कैमरामन वहा चले गए थे (उन दिनों ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज की टीमों का काफी दबदबा जो था). कहते है बीबीसी की कैमराटीम स्ट्राइक पर थी, और बचे हुए कैमरामेन लंदन मे कोई स्ट्राइक चल रहा था उसको कवर करने चले गए थे.
इस वजह से भारतीय और झिम्बाब्वे के टीम का ये मैच लाइव कवर करने के लिए मैदान पर कोई विडिओ कैमरामन था ही नहीं. अंत मे किसी ने भी यह मैच लाइव कवर नहीं किया. हालांकि, इसके बाद भारतीय टीम के सभी मैच सभी चॅनलो ने कवर किए. एक नया हीरो जो मिल गया था!!
क्या हुआ उसके बाद?
1983 मे मिली जीत के बाद भारतीय क्रिकेटर्स मे आत्मविश्वास आया. उसके तुरंत बाद शारजाह मे रॉथमंस कप (जब पाकिस्तान को १२५ का स्कोर भी बनान मुश्किल हुआ था ), और 1985 मे ऑस्ट्रेलिया मे हुई बेनसन अँड हेजेस कप (मिनी विश्व कप) जीतकर अपने हुनर का सबूत दिया.
1983 की विश्वकप जीत भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत अहम थी, क्यूंकि इसके बाद व्यवसायिक विश्व / व्यापार जगत का ध्यान भारतीय क्रिकेट और क्रिकेटरों की तरफ ज्यादा बढ़ा. उनका रुझान बढ़ा. इसके पहले खिलाड़ी अपनी-अपनी कीट पहनते थे, अपने-अपने तरीके से. आप देखिएगा भारतीय खिलाड़ियों की उन दिनों की कीट - सबकी अलग अलग टीशर्टस या ट्राउजर्स हुआ करती थी. इसके बाद इसमे बदलाव आया. स्टॅन्डर्ड बढ़ा, एक समानता आई.
भारतीय क्रिकेट मे पैसा आया. भारतीय क्रिकेटर्स दुनिया भर मे मशहूर हो गए. भारत मे क्रिकेट और ज्यादा संजीदगी से खेले जाने लगा. इस वजह से और अच्छे क्रिकेटर्स की फसल तैयार हुई. भारतीय क्रिकेट का स्तर और बढ़ने लगा. इसके बाद बीसीसीआई को कभी भी किसी भी संसाधनों की कोई कमी नहीं खली. आईसीसी ने भी भारतीय क्रिकेट को गौर से देखना शुरू किया. आखिर भारत एक बहुत बड़ा मार्केट जो था! क्रिकेट व्यवसायिक हो गया. खिलाड़ी प्रोफेशनल्स की तरह खेलने लगे. जो शायद एक तरह से अच्छा भी था. जरूरी था.
सामान्य भारतीय नागरिक को भी 1983 मे हुई इस विश्वजीत ने एक नया आत्मविश्वास दिया. खिलाडियों की ओर देखने का उनका नजरिया बदलने लगा. अनेक खिलाड़ी, रातोरात खिलाड़ी से हीरो बन गए थे. यहा से भारतीय प्रेषक, खिलाड़ी प्रेमी, खिलाड़ी, खेल और खेल प्रशासन का एक नया दौर शुरू हुआ.
पिछ्ले 37 सालों से क्रिकेट भारत मे अपनी चरमसीमा पर है. कई क्रिकेटर्स आए और गए. मैच फिक्सिंग जैसे कारनामे भी हुए . सचिन तेंडुलकर, गांगुली, द्रविड, श्रीनाथ, कुंबळे, लक्ष्मण, हरभजन सिंग, युवराज सिंग, सेहवाग इत्यादी. और भी काफी नाम है. क्रिकेट मे मशहूर होने की वजह, क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी से भारतीय सामान्य नागरिक अमूमन हर क्रिकेटर का क्रिकेट की दुनिया के बाहर भी काफी आदर सम्मान करते है. खैर.
(अगर आपकी रुचि क्रिकेट मे ज्यादा है, तो शायद आप ये भी पढ़ना पसंद करेंगे, थोड़े पुराने है लेकिन शायद आपको उपयुक्त लगेंगे.
Cricket - Time to Rise (Dec 2018) https://windcheck.blogspot.com/2018/12/time-to-rise.html
The Paradox of Outgoing and Incoming (Nov 2018)
https://windcheck.blogspot.com/2018/11/the-paradox-of-outgoing-and-incoming.html
Impactful "Sporty" a Indians (Nov 2018)
https://windcheck.blogspot.com/2018/11/impact-ful-sporty-indians.html
Cricket - Simple Yet Difficult (Nov 2018)
https://windcheck.blogspot.com/2018/11/cricket-simple-yet-difficult.html)
मैदान मे खेलना खत्म, लेकिन अब नए खेल..
कुछ खिलाड़ी अपनी इस मशहूरीयत और लोगों के सम्मान का गलत मतलब निकालने लगे है. सोशल मीडिया मे मनचाहे बयानबाजी करने लगे. हालही मे, कोरोना के चलते, इस मार्च के अंत मे, पाकिस्तानी क्रिकेटर आफ्रिदी ने पाकिस्तानी लोगों के लिए चंदे की गुहार लगाई, तो उसको हरभजन सिंग और युवराज सिंह ने हातोहात उठाया. आम लोगों को, "खिलाड़ी का देश नहीं होता", "धर्म नहीं होता", "हम दोस्त है", इस भ्रांति मे रखकर, आफ्रिदी जैसे का समर्थन करना इन्हें शायद अपना जन्मसिद्ध अधिकार लगा.
ये वही आफ्रिदी है जो हमेशा से भारतीय सेना और हमारे वीरों का अपमान करता आया था. जम्मू और कश्मीर मे उत्पात मचाते कट्टरपंथी आतंकवादियों को ये आजादी के लड़ाके बताता था. हरभजन सिंह और युवराज सिंह अपनी दोस्ती का बहाना देकर कोरोना के लिए चंदा जमा करने के लिए उसके साथ हो लिए.
आखिर मे आफ्रिदी ने अपनी फितरत दिखाई और, इन्हें ही उल्टे मुह गिराया.
अब चंद दिन पहले, भारतीय क्रिकेट टीम के एक भूतपूर्व खिलाड़ी (बरोड़ा से, उपरोक्त खिलाड़ियो के साथी, बाए (लेफ्ट) हात के तेज गेंदबाज जो अभी कुछ हाल पहले रिटायर्ड हुए है) ने ट्विटर पर एक कटाक्ष साधा. अप्रत्यक्ष रूप वे ये जताना चाहते हैं कि भारत मे एक समुदाय को तथाकथित रूप से नजरअंदाज किया जा रहा है. हालांकि यह सही नहीं है, तथ्यों से दूर है.
लगता है, आनेवाले समय मे ये जनाब किसी आन्दोलनकारी गुट को अपनी लोकप्रियता से नए कॉम्रेड /recruits जोड़ देंगे.
लेकिन वो क्या है जिस वजह से आजकल खिलाड़ी, कलाकार आए दिन ऐसी बयानबाजी करते है?
अपनी लोकप्रियता को गलत समझना
इसका कारण है उनकी लोकप्रियता. सामान्य जनता इन खिलाडियों और कलाकारों को उनकी कला या हुनर के लिए अपने दिल मे बिठाती है - लेकिन इस लोकप्रियता से ईन खिलाडियों या कलाकारों के दिमाग मे भ्रम पैदा होता है कि वे चंद लोगों के भाग्यविधाता बन जाएंगे. ये खिलाड़ी, कलाकार अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाकर देशविरोधी ताकतो के सुर में सुर मिलाते है. खासकर युवा पीढ़ी को मानवता, धर्मनिरपेक्षता, समानता, पर्यावरण जैसे शब्दजालों का प्रयोग कर के उन्हें भारतविरोधी विचारो मे पिरोते है. उनको "टुकड़े टुकड़े" गैंग के हवाले करते है.
"साबुन अगर अच्छा काम करता है तो, क्या आप उसे दवाई समझकर खाएंगे? नहीं ना. जिसका जो काम, उतना ही होना चाहिए उसका नाम".
कलाकार, खिलाड़ी, लेखक उनके क्षेत्र मे चाहे कितने भी बड़े हो, उनके व्यक्तिगत विचारो का अंधों की तरह पालन करना गलत हैं. उन्हें उतनीही कीमत दो जिस विषय के लिए आपने उन्हें देखना है. उनका काम खत्म, अपना दिमाग बंद.
इसमे कोई दो राय नहीं है की कलाकार या खिलाड़ी अपनी मेहनत से ही कामयाब होते है. इस वजह से एक कलाकार का उनके कौशल्य के वजह से या फिर खिलाड़ी को उनके हुनर या कुशलता के लिए ही उनका आदर होना चाहिए. उस ऊपर नहीं. "लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम" का वे हिस्सा बनना चाहे तो ये उनका अपना भाग्य / दुर्भाग्य!
मैदान मे खेल और धर्म अलग है..
अगर कोई खिलाड़ी है तो उसे अपना धर्म खेल के मैदान मे दिखाने की क्या जरूरत है? इंग्लैंड के एक खिलाड़ी को इसके खिलाफ कार्रवाई का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने "सेव गाजा", "फ्री पॅलेस्टिन" का रिस्टबैंड अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच के दौरान पहना था.
खिलाड़ी, या कलाकार जरूर किसी धर्म का होता है, लेकिन सबसे पहले वो अपने राष्ट्र का होता है. अपने राष्ट्रकी जो संकल्पना है, पहचान है, हित है वो सभी को सर्वोपरि है. होना ही चाहिए. "राष्ट्र प्रथम" ये भावना कायम होनी चाहिए.
खेल से राष्ट्रवाद का ये सफर आपको थोड़ा अलग जरूर हुआ होगा. शायद अटपटा लगा होगा. एक तरफ क्रिकेट का खुमार, और दूसरे तरफ राष्ट्रहित!
लेकिन आज के समय की ये मांग है. इस विषय पर केंद्रित होना जरूरी है. क्यूंकि, अगर बीते कल का खिलाड़ी या कलाकार, आज देशविरोधी ताकतो का सिपहसलार हो जाए तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा.
राष्ट्र निर्माण मे सबका सहभाग जरूरी होता है. आज ही हम समझे की ये खिलाड़ी या कलाकार राष्ट्रनिर्माण मे अहम भूमिका निभा सकते है. काफी निभा भी रहें है. लेकिन उन खिलाड़ी या कलाकारों से दूर रहिए जिन्हें देशविघातक शक्तियों से हमदर्दी है.
एक सामान्य भारतीय नागरिक के जैसे उन्हें भी, भारतमाता वंदनीय और पवित्र होनी चाहिए, अपनी मातृभूमि है ये मान्य होना चाहिए. अपने मातृभूमि का इतिहास और संस्कृति और वैल्यू पर औरों की तरह समान विचार होने चाहिए.
भारत देश चिरायु है, विश्वपटल पर भारत सदा रहेगा. सदा वैभवशाली रहेगा. खेल या कला शायद रहे ना रहे.
"तेरा वैभव अमर रहे माँ,
हम दिन चार रहें ना रहें".
शुभम भवतु .
- धनंजय देशमुख, मुंबई
dhan1011@gmail.com
(इस पोस्ट के लिए जानकारी और फोटो इन्टरनेट से साभार इकठ्ठा की गई है.)
Very good sir
ReplyDelete🙏 धन्यवाद
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