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नाम मे क्या रक्खा है?

नाम मे क्या रक्खा है?

कल हमारे स्कूल साथियो के व्हाट्सप्प ग्रुप मे चर्चा अपने चरम पर थी. विषय अर्थात वही, सर्व विदित और सबका प्रिय - राजनीति, और आने वाले दिनो मे क्या होगा, होना चाहिए..

मेरे एक मित्र, जो थोड़े ज्यादा अच्छा पढ़े लिखे है, और विदेशों मे रहे हैं ( जाहिर है उनकी विचारधारा शायद थोड़ी अलग हो गयी हो. या, जबरदस्ती से रखनी पड़ती हो, ताकि उनकी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल, "अमरीका compliant " रहे) हिंदूत्व  या फिर भारतीय राजनीति पर बहुत ही अलग राय रखते है. बिल्कुल उसी तरह भड़काऊ जो आजकल अलग-अलग न्यूज चैनलों पर "Harvest" की जा रही है. 

वैसे , आप सबसे मेरी एक गुजारिश है, गूगल इमेजेस पर आप  "हिंदुत्व " सर्च कीजिए , और देखिए परिणाम। विचलित हो जाओगे। क्या "हिंदुत्व" का चित्र - काल्पनिक या यथार्थ हाथ  में  त्रिशुल ले कर घूमना या , हिन्दू आतंकवाद है ? बिल्कुल  नहीं. 
खैर , यह  एक गहन विषय है अपने आप में , और इस पर मंथन अलग से होगा। 

ख़ैर, बहस के इसी गहमागहमी के बीच किसीने मेरा नाम गलत लिख दिया, और मेरे एक मित्र ने तुरंत विश्वप्रसिद्ध लेखक शेक्सपियर का प्रसिद्ध डायलॉग जड़ दिया - "नाम मे क्या रखा है?" सच ही तो है..

फिर भी मै सोचने लगा, कि नाम मे कुछ तो खास होगा? नाम मे या फिर उस नाम की कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट कारण के लिए जानी जाती हो? दिमाग मे एक नाम आया. 

आजकल "राहुल" नाम तो सब भारतीय जानते ही हैं, मेरे खयाल से. जानना भी चाहिए..

मै कितने "राहुल " जानता हू?
सबसे पहले तो मुझे भारत के सुप्रसिद्ध व्यावसायिक श्री राहुल बजाज याद आते है. बजाज ऑटो और बजाज ग्रुप ने काफी अच्छी तरक्की की थी उनकी अगुवाई में. "बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर , हमारा बजाज" (श्री अलेक पदमसी ने बनाया था ये अविस्मरणीय विज्ञापन।  वो चल बसे चंद दिनों पहले ) तो घर-घर में पहुच गया था नब्बे के दशक में. मेरी पीढ़ी के शायद ये पहले "हीरो राहुल " थे. 
उनके बाद काफी "राहुल" आए-गए, और भी नए आ रहे हैं- हर क्षेत्र मे - उद्योग , फ़िल्म, खेल, राजनीति.. 

फिल्मो के राहुल - असली और नकली दोनों भी वैसे हिट ही थे. फ़िल्म डर का "नकली" राहुल, हालांकि निगेटिव विचारधारा का था , लेकिन "k k किररण" करते हुऐ भी लोगो के दिलो मे वो जगह बना गया. वही इसी "नकली राहुल" ने "कुछ कुछ होता है" इस फ़िल्म मे पहले जबरदस्त रोमँटिक युवा, और बाद में काफी भावनात्मक पिता, ये दोनों भूमिका को बडे ही ईमानदारी से निभाया था. इसके बाद ना जाने कितनी फिल्मो में "राहुल" किरदार निभाया गया।
"असली राहुल" की बात करे तो इनका उदय लगभग "नकली राहुल " के साथ ही हुआ था. महेश भट्ट साब की सुपरहिट फ़िल्म "आशिकी" ने इन्हे रातोरात सुपर स्टार बना दिया था. लेकिन वक्त के साथ शायद ये ज्यादा निभा नहीं पाए. "तेरे दर पर सनम" कहते हुए आज भी "फिर तेरी कहानी याद आई " राहुल रॉय की. कुछ वर्षो बाद बिग-बॉस जीत कर वे फिर से सुर्खियों में आए थे जरूर, लेकिन इसके बाद कुछ खास नहीं कर पाए. अब एकबार फिर वे भट्ट परिवार की नई फिल्म मे नजर आएंगे. वक्त ही बताएगा कि, क्या इनका सिक्का चल पाएगा फिर से?
खेलो की बात करे तो, क्रिकेट के "राहुल" तो सभी के परिचित है. सीनियर राहुल, जिनको, "The Wall" का खिताब दिया गया है, उनके बारे मे जितना लिखे कम होगा. एक कर्मयोगी की तरह उन्होने अपना कैरियर बनाया, सँवारा और एक बेहतरीन बल्लेबाज और खिलाड़ी की मिसाल बन गए. आजकल "राहुल सर" हमारी नई पीढ़ी के क्रिकेटर्स (India Juniors, U19) को ना सिर्फ क्रिकेट सिखा रहे हैं, बल्कि उन्हे "एक अच्छा" खिलाड़ी बनने की भी ट्रेनिंग दे रहे हैं. हो सकता है कि आने वाले समय में, हमारे "सीनियर" क्रिकेटर्स को "राहुल सर" की क्लास का सौभाग्य मिले.
हालांकि, हमारे युवा क्रिकेटर "के राहुल" पर  शायद वक्त खफा है, या फिर किस्मत. पिछले एक साल में ये जनाब कुछ खास नहीं कर पाए. LBW और "क्लीन बोल्ड" ने उन्हे देश-विदेश की सभी पिचो पर सता के रखा है, इसका खामियाजा उन्हे इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ निराशाजनक प्रदर्शन के जरिए भुगतना पड़ा. इससे पहले कि ये जनाब अपनी तकनिक NCA बंगलुरु मे सुधारते, "फिल्मी राहुल" के जनक, जनाब जौहर ने उनको अपने घर बुला कर कुछ ऐसी कॉफी पिलाई, के यह शानदार युवा क्रिकेट बल्लेबाज, बचपन और जवानी (शायद शास्त्री सर भी दिए होगे) की नसीहत , "ऑफ़स्टंप के बाहर जाने वाली गेंद को हमेशा छोड देना चाहिए" भूल गया, और "टाइम आउट" हो गया. इतना बुरा हुआ की, बीसीसीआय ने  "हार्दिक" रूप से कुछ वक्त के लिए इन जनाब को घर बैठने की व्यवस्था की. जनाब , ये बीसीसीआय है , जितनी जल्दबाजी से उन्होंने राहुल पर पाबन्दी लगाई ,उससे दुगुने जल्दबाजी से उन्होंने इनको खेलने की अनुमति दी। खैर, उम्मीद करते है कि यह "स्टायलिश" बल्लेबाज जल्द ही क्रिकेट मैदान में लौटेगा और अपना दम खम दिखाएगा. 

मिडिया में भी कुछ "राहुल" है जो कुछ हद तक लोकप्रिय है, हो रहे है या बनाए जा रहे है।  एक जनाब India Today के "सीनियर" है, तो दूसरे "Times Now" मे अब अपनी पैठ बना चुके हैं. आखिर अर्णब साब के "बाहर" जाने का फायदा तो होना ही था. 

ख़ैर..

उद्योग, फ़िल्म,खेल और मीडिया जगत के व्यक्ति विशेष "राहुल" पुराण होने के बाद स्वाभाविक रूप से बारी आती है राजनीति की.. 

अब, भारतीय राजनीति के "राहुल बाबा" से तो पूरा विश्व अवगत है. कभी कभी ये काफी सूझबूझ की बात करते हैं, तो कभी किसी की बताई गई राहो पर चल निकल पड़ते है. इसी खासियत की वजह से किसीने उन्हे कोई विशेषण दे दिया, लेकिन अब उसका उल्लेख करना उचित नहीं होगा शायद. 

तो, इनके रिश्तेदारों और शुभचिंतकों ने बहुत शिद्दत से काफी मशक्कत की के ये साहब, आज भारतीय राजनीति में एक शीर्ष नेता के रूप में उभरे, और जनता भी उन्हे तहेदिल से स्वीकार करे. लेकिन बात है कि अब तक बनी नहीं.

इसी जद्दोजहद मे इनके हितचिंतक (या फिर विदेशी सलाहकार) कभी उन्हे संसद भवन में प्रधानमंत्री जैसे वरिष्ठ नेता को "जादू की झप्पी" देने की सलाह देते हैं, या फिर "आंखो का खेल" करने की.

काफी समय से ये जनाब प्रधानमंत्री को उनसे सिर्फ़ आधा घंटा, तो कभी पंधरा मिनिट के लिए बहस करने के लिए उकसाते रहे, उन्हे आव्हान देते रहे, लेकिन "अनुभव" भारी पड़ गया शायद "सिखाई" पर !! अब बात "सिर्फ पाच मिनट" पर आ टिकी है. 
आजकल ये साहब नितिन गडकरीजी से ट्वीटर पर गुहार लगाते है." नौकरियां, नौकरियां, नौकरियां". देखो, क्या असर होता है, श्रीमान गडकरीजी मान जाते हैं या नहीं!!

एक अर्से से ये साहब रफेल का जहाज "उड़ानें" कि कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उसमे लगनेवाले "जेट ईंधन" मे काफी मिलावट है, कही ये "महा-मिलावटी गठबंधन" का तोहफा तो नहीं?

कुछ भी हो, ये "बाबा" एक अच्छे विद्यार्थी की तरह उनके विदेशी सलाहगारो की हर बात बखूबी पूरी तरह मानते है. फिर वो उन्ही के शीर्ष नेता की सरकार का कोई अध्यादेश फाड़ने की बात हो या "चौकीदार चोर है " का उल्टा शोर मचाने की. 

ये जरूर है कि इस बार उनके सलाहकार  "आर्टिफिकल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी " से लैस है. तो अगर आज ये साहब ट्विटर या प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ निगेटिव भी कहते हैं तो इनके सलाहकारों की "शक्ति" तुरंत "ट्रेंड स्पॉटिंग" करना शुरू करती है, और अपनी "वोटर प्रोफ़ाइल डेटाबेस" को "क्लीन" कर लेते हैं, और फिर "नई" और "अलग" चाल चलने की तैयारी करते हैं.

इन साहब के " युवा नेता (जो खुद को जींद विधानसभा उपचुनाव मे दूसरा नंबर भी नही दिला पाए) " बाबा को कभी सोमनाथ मंदिर से मानसरोवर तक का "टेम्पल रन" करवाते है, तो कभी "ये सिर्फ हिन्दूही नहीं, बल्कि जनेऊधारी हिंदू है" घोषित करते हैं. ये लोग जो भी करवाने की कोशिश करते हैं, दुर्भाग्य से वो गलती याने "फाऊल" मे तब्दील हो जाती  है. 

उनके कार्यकर्ता ना जाने कितने अरसे से नारा लगा रहे हैं, "अब आएगी असली आँधी, जब लड़ेंगे... ", लेकिन आंधी है कि वो आती ही नहीं. कही ये "फाऊल आँधी " तो नहीं? 

हाल ही में इन्होने और इनके साथियों ने संसद मे चर्चा के दौरान मे कागजी जहाज चलाने का प्रताप किया.. नतीजा ये रहा की इन्हे स्पीकर मैडम ने डाट दिया. "आप बैठिये. समझते तो हो नहीं". 
राह काफी मुश्किल नजर आ रही है. 

"डाट " पर से, उद्योग के "राहुल" की कंपनी, बजाज इलेक्ट्रिकल्स के मशहूर विग्यापन की कुछ लाइने याद आती है. 
जब मै छोटा बच्चा था
बडी शरारत करता था
मेरी चोरी पकड़ी जाती
तब रोशनी देता बजाज
उसी को थोड़ा टिवस्ट करके देखा..

"जब मै छोटा बच्चा था..
बडी शरारत करता था..
मेरी चोरी पकड़ी जाती
तब डाट देती थी दादी  

अब मै बिल्कुल बड़ा हू
तब भी गलती करता है
मेरी गलती पकड़ी जाती
अब भी डाट खाता हू .."

शायद वरिष्ठ नेताओ की "डाट" का असर इतना हो गया कि, अब इनके परिवार ने अब उन्हें अकेला ना छोड़ने का मन बना लिया है, इन्हीकी पुरानी कैबिन मे इन्ही के "परिवार" के नेता जो लाए गए हैं. 

आज फिलहाल, भारतीय राजनीति मे मुझे एक ही "राहुल" नजर मे आए. आपकी नजर मै है कोई? अरविंद नहीं जी . 

हालांकि, जैसे क्रिकेट मे राहुल के साथ सचिन भी थे. राजनीति मे भी एक "सचिन " है, जो काफी प्रतिभाशाली है, और बहुत कम वक्त में पार्टी बड़े नेता के रूप में उभरकर आ रहे हैं. कहा जाता है, 2005 मे पाकिस्तान के खिलाफ मुल्तान टेस्ट मैच मे, राहुल ने पारी घोषित कर दी - उस वक्त दुसरे छोर पर सचिन को डबल सेंचुरी बनाने के लिए महज 6 रन की जरूरत थी. कहते है वो खटास आज भी अपना रंग दिखाती है..
राजनीति के राहुल भी, क्या भविष्य मे राजनीती के सचिन के साथ कुछ ऐसा करेंगे? ये तो वक्त ही बताएगा, हालांकि राजस्थान मे हाल ही में इसकी एक झांकी जरूर देखी गई. 

वाह " राउल ", माफ करना, "राहुल" दा जवाब नहीं.

वैसे मेरा नाम धनंजय है, और जहा तक मैंने पढ़ा है कि यह नाम अर्जुन के दस नामो मे से एक है. किसीने मुझे संजय कह दिया था. भाई साहब, महाभारत मे संजय और धनंजय का कर्म तो एकदम भिन्न था. चलो छोड़ दीजिए.. 

सो मित्रो, नाम में क्या है? बहुत कुछ अगर आपका नाम राहुल हो तो !!

वैसे आपने "विजय" यह नाम भी तो सुना ही होगा? 

जय हो.खुश रहे। 
धनंजय मधुकर देशमुख ,मुंबई  
९ फ़रवरी २०१९

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