समझिए हवा, उसकी रफ्तार और उसका रुख..
दोस्तो, जैसे कि आपने पढ़ा, के मेरे इस ब्लॉग का नाम है, "विंडचेक". मेरे लिए इसका मतलब है समझिए हवा का रुख..
"हवा तेज़ चलता है दिनकर राव, टोपी संभालो वरना उड़ जाएगा..." मशहूर हिंदी फ़िल्म अग्निपथ मे बच्चन साब यानी विजय दीनानाथ चौहान का यह डायलॉग आज भी उतना ही असरदार लगता है जितना कि 1990 में, जब यह फ़िल्म रीलीज हुई थी. आपने इसे सुना / देखा / पढ़ा तो जरूर होगा.
सो मुद्दा यह है कि हवा, उसका रुख, और
उसकी रफ्तार, और गंध पहले से ही भांपना बहुत जरूरी है.
एक वैमानिक से पूछो की वो इसकी कितनी अहमियत रखता है. कई हवाईमार्गो में वापसी की हवा तेज़ होती है उस वजह से समय और ईंधन की बचत होती है. या फिर किसी नाविक या कैप्टन से जानो हवा का महत्व उनके लिए क्या है. अमूमन अमावस या पूनम के दिनो मे समुंदर मे तेज़ हवा होती हैं इसी वजह से इस वक्त नौकायन खतरनाक हो जाता है.
खेलो की बात करे तो अगर आपने बचपन मे कभी पतंग उड़ाई हो तो आप खुद ही बतलाएंगे कि अच्छी हवा और अच्छा रुख क्या होता है.
क्रिकेट मे हवा के साथ और विरूद्ध बॉलिंग करने के अपने फायदे और नुकसान होते है, इस हिसाब से कप्तान को पता होना चाहिए कि हवा कैसी बह रही है. एक माहिर गेंदबाज हवा की गरमी या नरमी का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल कर सकता है. करता है. जैसे के भारतीय तेज़ गेंदबाज इरफान पठान या जहीर खान या फिर इंग्लैंड के जेम्स अंडरसन .
विश्व की बात करे तो लगभग सभी देशों में हवा नरम और ठण्डी पड़ती नजर आ रही है. आनेवाले कुछ दिनो मे ठंडी का मौसम अपनी पकड़ मजबूत करेगा. लेकिन साथ ही मे क्रिसमस की "आनंददायी गरमाहट" लाएगा. पश्चिमी राष्ट्रों में इसका मतलब छुट्टियों का मौसम भी होता है. अमूमन १५ दिसंबर से ५ जनवरी तक काम करने की रफ्तार कम से कम होती है. व्यापार और मनोरंजन के लिए मात्र यह वक्त विशेषत अनुकूल होता है. हालाँकि कई जगह बर्फबारी से हवाईअड्डे बंद करने पड़ते हैं.
इसके मद्देनजर पूरे विश्व में युद्धनीती, सामरिक और राजनईक मामलों मे कुछसी "चलते रहो (status quo) " वाली परिस्थिति होती है.
आशिया खंड की बात करें तो हवा मे फिलहाल थोड़ी अस्थिरता नजर आ रही है. मध्य आशिया मे विशेषता सऊदी अरब मे थोड़ी गरमाहट (तुर्की में सऊदी दूतावास मे एक सऊदी अमरीकी पत्रकार की हत्या के बाद से) है. हालांकि पाकिस्तान और चीन के बीच हवा पहले से भी ज्यादा सुमधुर है. इसी मिठास के साथ चीन ने पाकिस्तान को एक मोटी रकम देने का वायदा जो किया है.
हिन्दुस्तान मे उत्तरी इलाको मे ठंडी का मौसम दस्तक दे चुका है. जम्मू-कश्मीर मे बर्फबारी तो शुरू हो गई है, लेकिन इसीके साथ कट्टरपंथी और आतंकवादी संघटना भी अपने हरकतो मे मशगूल हो गई है. भारतीय सेना इसका जिस तरीके से ताबडतोब जवाब दे रही है, यह हर हिन्दुस्तानी के लिए गर्व की बात है. इस मौसम में यही से ठंडी हवा पूरे हिन्दुस्तान में नीचे की तरफ आती है. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने जबसे विधानसभा भंग कर दी है तबसे यहा के राजनैतिक हवा मे एक दुर्गंधीसी आ रही है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह सीज़न आतंकवादी और उनसे हमदर्दी रखने वाले गुटों के लिए जान का फंदा साबित हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो स्वतंत्र हिंदुस्तान की यह सबसे स्वर्णिम घटनाओं में से एक होगी.
दिल्ली की बात करें तो यहां की हवा हमेशा जैसी ही अनाकलनीय है - कभी नरम, कभी गरम, तेज़ भी और ढीली भी. आप कैसे इसे समझते हैं और अपनाते हैं इस पर आपका अस्तित्व निर्भर होगा. यहा पर आपकी हवा समझने के गुणों की कसोटी लगती है. काफी कम लोग यहां पर कामयाब हो पाते हैं. आपकी पिछली कामयाबी अगली कामयाबी हासिल करवा देंगी यह जरूरी नहीं है. इस हिसाब से हर रोज़ एक नया दाव खेलना पड़ता है.
फिलहाल तो यहा पर "रफाल" हवाई सौदे की हवा तेज़ है. इसकी हवा में कुछ लोग अपनी पतंग उड़ाने मे मशगूल है. इस बार उनके पास विदेशी "मांजा" भी है. कभी राममंदिर निर्माण में हो रही देरी की वजह से इसमें एक अजीब सी गरमाहट और अनिश्चितता नजर आ रही है. कुछ लोग यह हवा और कितनी ज्यादा दूषित होगी इस पर दिनरात व्यस्त हैं. वे सर्वोच्च न्यायालय को भी "इतनी भी क्या जल्दी है" जैसी शर्मनाक सलाह देने से बाज नहीं आते. यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है.
विदेश से आने वाली हवा की बात करे तो यह दूषित नजर आ रही है. ट्विटर के जैक डोरर्से ने जिस तरीके से ब्राह्मणवाद पर अपनी राय जाहिर की है उसके मद्देनजर यही प्रतीत होता है विदेशी संस्थाएं आज भी "तोड़ो और देखो" मे माहिर हैं. यह एक भ्रमजाल होगा अगर वे या उनके तोते ये कहते हैं कि वे इस बात से सहमति नहीं रखते. एक मल्टी बिलियन, वह भी अमरीकी कंपनी का सीईओ का कार्यक्रम कितना पूर्वनियोजित होता है यह दुनिया जानती है. वहां मक्खी को भी क्या पहन कर आना है ये शायद पहले से बता दिया जाता है. इस तरह की शर्मनाक घटनाओं से फेसबुक, ट्विटर और गूगल जैसी संस्थाओ ने बाज आना चाहिए.
ना जाने पिछले कितने सालों से एक राष्ट्रीयपार्टी के कार्यकर्ता उनके नेता "... वो तो एक आंधी है" का राग अलापने में व्यस्त हैं, लेकिन "आँधी" है कि वो आती ही नहीं. शायद अब उन्हे अब उनके नेता का नाम "फाउल आँधी " करना पड़ेगा, क्योंकि वे काफी "फाउल" करते हैं. या शायद कुछ शातिर लोग उन्हे यह करने पर मजबूर कर देते हैं.
अपनेआप को "प्रधानमंत्री का दावेदार ", "जनेऊधारी ब्राह्मण" घोषित करवा कर , सोमनाथ, कैलास मनसरोवर जैसे "टेम्पल रन" कर के भी "शिवजी" के भक्ति का उन्हें मनचाहा "प्रशाद" मिल नहीं पाया. हालांकि गुजरात, कर्नाटक मे कुछ असर जरुर गिरा लेकिन वह निर्णायक साबित नही हो पाया है. इस मामले में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मुख्य नेता "दोस्त" बन कर उन्हे मात दे सकते हैं. उत्तर प्रदेश के दावेदार को भी नजरअंदाज करना उनके "प्रधानमंत्री पद की दावेदारी" के लिए काफी महंगा साबित हो सकता है.
महाराष्ट्र में हवा गरम होती नजर आ रही है. जहा पर देवेंद्र फड़णविस सरकार ने आरक्षण के नाजुक मुद्दे को जिस दृढतासे एक निश्चिततातक लाया है, वही पर शिवसेना ने राममंदिर मुद्दे पर अयोध्या मे "महाआरती" कर के हवा में गरमाहट भर दी है. स्थानीय नेतागण किस हवा का रुख करे इसी जद्दोजहद में लगे हैं - "विश्वास" की हवा या फिर "महत्वाकांक्षाओं" की. "महत्वाकांक्षाओ" की हवा से भरे गुब्बारे ऊपर तो तेजी से जाते हैं लेकिन अगर फूटे तो उसकी गरमाहट से सकुशल और साफ़सुथरा निकलना मुश्किल ही समझो.
टेक्नोलॉजी विश्व मे हवा का रुख समझे तो बात दूर तलक जाएगी. एक तरफ एलोन मस्क और वर्जीन हाइपरलूप आनेवाले सालों में चलन-वहन में क्रांति लाने के लिए जोरशोर से काम कर रहे हैं. दूसरी जगह "आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (पूर्वजानकारी (बिग डाटा) का आकलन करके आपको क्या चाहिए इसका अनुमान लगाया जा सकता सकता है) " की उपयोगिता हर क्षेत्र में कारगर साबित हो रही है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इसका इस्तेमाल आरोग्य विषयक और सरकारी दफ्तरों में करना चाहते हैं. जल्द ही स्मार्टफोन अब मुड़ने वाले यानी" फॉलडेबल " होने वाले हैं. रिलायंस जीओ ने भारत मे" डेटा क्रांति" लाकर टेलीकॉम जगत को एक नया रूप दिया है. आने वाले समय में उनकी "गीगा फाइबर" से इसमे एक और भूचाल आएगा. "मनोरंजन आपको आपके समय पर" (एंटरटेनमेंट ऑन डिमांड) इस संकल्पना को साकार करने के लिए एक नया आयाम मिलेगा.
फ़िल्म जगत के लिए यह मौसम वैसे तो हमेशा से ही अच्छा होता है, बशर्ते आप दर्शको को "ठगना " ना चाहे तो.
व्यापार जगत में एक अनिश्चितता की हवा चल रही है, विशेषतौर पर शेयर बाजार में. पाच राज्यों मे हो रहे चुनाव और अगले साल अप्रैल मई मे होनेवाले लोकसभा के चुनाव के लिए बाजार से "गैस" सप्लाई जो करनी है. बाजार आनेवाले समय पर उतार चढ़ाव का रुख अपनाएगा.
खेलो की बात करे तो, खेलो के लिए यह मौसम एकदम सही है. समूचे महाराष्ट्र मे "CM चषक" का खेला जारी है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में ही "नाकोतले चने चबवाने" के लिए एक मौका है. हालांकि टी-ट्वेंटी और टेस्ट क्रिकेट में काफी फरक होता है. वही पर भारतीय चयनकर्ता हवा का रुख पहचान नहीं पा रहे हैं, क्योंकि वे कुछ बल्लेबाजो को बार-बार मौके दे कर अपनी महत्वाकांक्षा लाद रहे हैं. जैसे के, के एल राहुल पिछले छह महीने हर फॉर्मैट में कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं. अगर एक बल्लेबाज लगातार क्लीन बोल्ड या फिर एलबीडब्ल्यू (LBW) होता है तो इसका मतलब उसकी नजर और हाथ के तालमेल मे कोई कमी हो रही है और उसके खेल में सुधार की जरूरत है या फिर वह बल्लेबाज उसके कैरियर के आखिरी पड़ाव पर पहुंच गया है. भारतीय महिला क्रिकेट मे थोड़ा तनाव नजर आ रहा है. इनमे शामिल खिलाडियों को और बोर्ड मेंबर्स को हवा का रुख पहचानना जरूरी है. अपनी प्राथमिकता निश्चित करनी होगी. टीम की सफलता या फिर व्यक्तिगत रिकॉर्डस या सफलता.
मशहूर गझल गायक जगजीत सिंहजी की निदा फाज़ली लिखित ये ग़ज़ल हकीकत बया करती है..
"अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं |"
तो पहले महसूस किजिए हवा को, जानिए और समझिए उसका रुख और रफ्तार, उसके बाद अपना रुख तय करे..वरना टोपी उड़ जाने के बाद पछताने से कुछ नहीं होगा, दिनकर राव, क्योंकि हवा तेज़ चलता है. अपनी " हवा" बनाने से पहले उसे अच्छी तरह से जानना बहुत जरूरी होता है जनाब.
- धनंजय मधुकर देशमुख
मुंबई
27 नवंबर 2018
दोस्तो, जैसे कि आपने पढ़ा, के मेरे इस ब्लॉग का नाम है, "विंडचेक". मेरे लिए इसका मतलब है समझिए हवा का रुख..
"हवा तेज़ चलता है दिनकर राव, टोपी संभालो वरना उड़ जाएगा..." मशहूर हिंदी फ़िल्म अग्निपथ मे बच्चन साब यानी विजय दीनानाथ चौहान का यह डायलॉग आज भी उतना ही असरदार लगता है जितना कि 1990 में, जब यह फ़िल्म रीलीज हुई थी. आपने इसे सुना / देखा / पढ़ा तो जरूर होगा.
सो मुद्दा यह है कि हवा, उसका रुख, और
उसकी रफ्तार, और गंध पहले से ही भांपना बहुत जरूरी है.
एक वैमानिक से पूछो की वो इसकी कितनी अहमियत रखता है. कई हवाईमार्गो में वापसी की हवा तेज़ होती है उस वजह से समय और ईंधन की बचत होती है. या फिर किसी नाविक या कैप्टन से जानो हवा का महत्व उनके लिए क्या है. अमूमन अमावस या पूनम के दिनो मे समुंदर मे तेज़ हवा होती हैं इसी वजह से इस वक्त नौकायन खतरनाक हो जाता है.
खेलो की बात करे तो अगर आपने बचपन मे कभी पतंग उड़ाई हो तो आप खुद ही बतलाएंगे कि अच्छी हवा और अच्छा रुख क्या होता है.
क्रिकेट मे हवा के साथ और विरूद्ध बॉलिंग करने के अपने फायदे और नुकसान होते है, इस हिसाब से कप्तान को पता होना चाहिए कि हवा कैसी बह रही है. एक माहिर गेंदबाज हवा की गरमी या नरमी का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल कर सकता है. करता है. जैसे के भारतीय तेज़ गेंदबाज इरफान पठान या जहीर खान या फिर इंग्लैंड के जेम्स अंडरसन .
विश्व की बात करे तो लगभग सभी देशों में हवा नरम और ठण्डी पड़ती नजर आ रही है. आनेवाले कुछ दिनो मे ठंडी का मौसम अपनी पकड़ मजबूत करेगा. लेकिन साथ ही मे क्रिसमस की "आनंददायी गरमाहट" लाएगा. पश्चिमी राष्ट्रों में इसका मतलब छुट्टियों का मौसम भी होता है. अमूमन १५ दिसंबर से ५ जनवरी तक काम करने की रफ्तार कम से कम होती है. व्यापार और मनोरंजन के लिए मात्र यह वक्त विशेषत अनुकूल होता है. हालाँकि कई जगह बर्फबारी से हवाईअड्डे बंद करने पड़ते हैं.
इसके मद्देनजर पूरे विश्व में युद्धनीती, सामरिक और राजनईक मामलों मे कुछसी "चलते रहो (status quo) " वाली परिस्थिति होती है.
आशिया खंड की बात करें तो हवा मे फिलहाल थोड़ी अस्थिरता नजर आ रही है. मध्य आशिया मे विशेषता सऊदी अरब मे थोड़ी गरमाहट (तुर्की में सऊदी दूतावास मे एक सऊदी अमरीकी पत्रकार की हत्या के बाद से) है. हालांकि पाकिस्तान और चीन के बीच हवा पहले से भी ज्यादा सुमधुर है. इसी मिठास के साथ चीन ने पाकिस्तान को एक मोटी रकम देने का वायदा जो किया है.
हिन्दुस्तान मे उत्तरी इलाको मे ठंडी का मौसम दस्तक दे चुका है. जम्मू-कश्मीर मे बर्फबारी तो शुरू हो गई है, लेकिन इसीके साथ कट्टरपंथी और आतंकवादी संघटना भी अपने हरकतो मे मशगूल हो गई है. भारतीय सेना इसका जिस तरीके से ताबडतोब जवाब दे रही है, यह हर हिन्दुस्तानी के लिए गर्व की बात है. इस मौसम में यही से ठंडी हवा पूरे हिन्दुस्तान में नीचे की तरफ आती है. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने जबसे विधानसभा भंग कर दी है तबसे यहा के राजनैतिक हवा मे एक दुर्गंधीसी आ रही है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह सीज़न आतंकवादी और उनसे हमदर्दी रखने वाले गुटों के लिए जान का फंदा साबित हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो स्वतंत्र हिंदुस्तान की यह सबसे स्वर्णिम घटनाओं में से एक होगी.
दिल्ली की बात करें तो यहां की हवा हमेशा जैसी ही अनाकलनीय है - कभी नरम, कभी गरम, तेज़ भी और ढीली भी. आप कैसे इसे समझते हैं और अपनाते हैं इस पर आपका अस्तित्व निर्भर होगा. यहा पर आपकी हवा समझने के गुणों की कसोटी लगती है. काफी कम लोग यहां पर कामयाब हो पाते हैं. आपकी पिछली कामयाबी अगली कामयाबी हासिल करवा देंगी यह जरूरी नहीं है. इस हिसाब से हर रोज़ एक नया दाव खेलना पड़ता है.
फिलहाल तो यहा पर "रफाल" हवाई सौदे की हवा तेज़ है. इसकी हवा में कुछ लोग अपनी पतंग उड़ाने मे मशगूल है. इस बार उनके पास विदेशी "मांजा" भी है. कभी राममंदिर निर्माण में हो रही देरी की वजह से इसमें एक अजीब सी गरमाहट और अनिश्चितता नजर आ रही है. कुछ लोग यह हवा और कितनी ज्यादा दूषित होगी इस पर दिनरात व्यस्त हैं. वे सर्वोच्च न्यायालय को भी "इतनी भी क्या जल्दी है" जैसी शर्मनाक सलाह देने से बाज नहीं आते. यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है.
विदेश से आने वाली हवा की बात करे तो यह दूषित नजर आ रही है. ट्विटर के जैक डोरर्से ने जिस तरीके से ब्राह्मणवाद पर अपनी राय जाहिर की है उसके मद्देनजर यही प्रतीत होता है विदेशी संस्थाएं आज भी "तोड़ो और देखो" मे माहिर हैं. यह एक भ्रमजाल होगा अगर वे या उनके तोते ये कहते हैं कि वे इस बात से सहमति नहीं रखते. एक मल्टी बिलियन, वह भी अमरीकी कंपनी का सीईओ का कार्यक्रम कितना पूर्वनियोजित होता है यह दुनिया जानती है. वहां मक्खी को भी क्या पहन कर आना है ये शायद पहले से बता दिया जाता है. इस तरह की शर्मनाक घटनाओं से फेसबुक, ट्विटर और गूगल जैसी संस्थाओ ने बाज आना चाहिए.
ना जाने पिछले कितने सालों से एक राष्ट्रीयपार्टी के कार्यकर्ता उनके नेता "... वो तो एक आंधी है" का राग अलापने में व्यस्त हैं, लेकिन "आँधी" है कि वो आती ही नहीं. शायद अब उन्हे अब उनके नेता का नाम "फाउल आँधी " करना पड़ेगा, क्योंकि वे काफी "फाउल" करते हैं. या शायद कुछ शातिर लोग उन्हे यह करने पर मजबूर कर देते हैं.
अपनेआप को "प्रधानमंत्री का दावेदार ", "जनेऊधारी ब्राह्मण" घोषित करवा कर , सोमनाथ, कैलास मनसरोवर जैसे "टेम्पल रन" कर के भी "शिवजी" के भक्ति का उन्हें मनचाहा "प्रशाद" मिल नहीं पाया. हालांकि गुजरात, कर्नाटक मे कुछ असर जरुर गिरा लेकिन वह निर्णायक साबित नही हो पाया है. इस मामले में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मुख्य नेता "दोस्त" बन कर उन्हे मात दे सकते हैं. उत्तर प्रदेश के दावेदार को भी नजरअंदाज करना उनके "प्रधानमंत्री पद की दावेदारी" के लिए काफी महंगा साबित हो सकता है.
महाराष्ट्र में हवा गरम होती नजर आ रही है. जहा पर देवेंद्र फड़णविस सरकार ने आरक्षण के नाजुक मुद्दे को जिस दृढतासे एक निश्चिततातक लाया है, वही पर शिवसेना ने राममंदिर मुद्दे पर अयोध्या मे "महाआरती" कर के हवा में गरमाहट भर दी है. स्थानीय नेतागण किस हवा का रुख करे इसी जद्दोजहद में लगे हैं - "विश्वास" की हवा या फिर "महत्वाकांक्षाओं" की. "महत्वाकांक्षाओ" की हवा से भरे गुब्बारे ऊपर तो तेजी से जाते हैं लेकिन अगर फूटे तो उसकी गरमाहट से सकुशल और साफ़सुथरा निकलना मुश्किल ही समझो.
टेक्नोलॉजी विश्व मे हवा का रुख समझे तो बात दूर तलक जाएगी. एक तरफ एलोन मस्क और वर्जीन हाइपरलूप आनेवाले सालों में चलन-वहन में क्रांति लाने के लिए जोरशोर से काम कर रहे हैं. दूसरी जगह "आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (पूर्वजानकारी (बिग डाटा) का आकलन करके आपको क्या चाहिए इसका अनुमान लगाया जा सकता सकता है) " की उपयोगिता हर क्षेत्र में कारगर साबित हो रही है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इसका इस्तेमाल आरोग्य विषयक और सरकारी दफ्तरों में करना चाहते हैं. जल्द ही स्मार्टफोन अब मुड़ने वाले यानी" फॉलडेबल " होने वाले हैं. रिलायंस जीओ ने भारत मे" डेटा क्रांति" लाकर टेलीकॉम जगत को एक नया रूप दिया है. आने वाले समय में उनकी "गीगा फाइबर" से इसमे एक और भूचाल आएगा. "मनोरंजन आपको आपके समय पर" (एंटरटेनमेंट ऑन डिमांड) इस संकल्पना को साकार करने के लिए एक नया आयाम मिलेगा.
फ़िल्म जगत के लिए यह मौसम वैसे तो हमेशा से ही अच्छा होता है, बशर्ते आप दर्शको को "ठगना " ना चाहे तो.
व्यापार जगत में एक अनिश्चितता की हवा चल रही है, विशेषतौर पर शेयर बाजार में. पाच राज्यों मे हो रहे चुनाव और अगले साल अप्रैल मई मे होनेवाले लोकसभा के चुनाव के लिए बाजार से "गैस" सप्लाई जो करनी है. बाजार आनेवाले समय पर उतार चढ़ाव का रुख अपनाएगा.
खेलो की बात करे तो, खेलो के लिए यह मौसम एकदम सही है. समूचे महाराष्ट्र मे "CM चषक" का खेला जारी है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में ही "नाकोतले चने चबवाने" के लिए एक मौका है. हालांकि टी-ट्वेंटी और टेस्ट क्रिकेट में काफी फरक होता है. वही पर भारतीय चयनकर्ता हवा का रुख पहचान नहीं पा रहे हैं, क्योंकि वे कुछ बल्लेबाजो को बार-बार मौके दे कर अपनी महत्वाकांक्षा लाद रहे हैं. जैसे के, के एल राहुल पिछले छह महीने हर फॉर्मैट में कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं. अगर एक बल्लेबाज लगातार क्लीन बोल्ड या फिर एलबीडब्ल्यू (LBW) होता है तो इसका मतलब उसकी नजर और हाथ के तालमेल मे कोई कमी हो रही है और उसके खेल में सुधार की जरूरत है या फिर वह बल्लेबाज उसके कैरियर के आखिरी पड़ाव पर पहुंच गया है. भारतीय महिला क्रिकेट मे थोड़ा तनाव नजर आ रहा है. इनमे शामिल खिलाडियों को और बोर्ड मेंबर्स को हवा का रुख पहचानना जरूरी है. अपनी प्राथमिकता निश्चित करनी होगी. टीम की सफलता या फिर व्यक्तिगत रिकॉर्डस या सफलता.
मशहूर गझल गायक जगजीत सिंहजी की निदा फाज़ली लिखित ये ग़ज़ल हकीकत बया करती है..
"अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं |"
तो पहले महसूस किजिए हवा को, जानिए और समझिए उसका रुख और रफ्तार, उसके बाद अपना रुख तय करे..वरना टोपी उड़ जाने के बाद पछताने से कुछ नहीं होगा, दिनकर राव, क्योंकि हवा तेज़ चलता है. अपनी " हवा" बनाने से पहले उसे अच्छी तरह से जानना बहुत जरूरी होता है जनाब.
- धनंजय मधुकर देशमुख
मुंबई
27 नवंबर 2018
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